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जींद के सौरभ गर्ग ने 2012 में 11 जानें बचाकर शहादत दी, पर 13 साल बाद भी उन्हें शहीद का दर्जा नहीं मिला। उनके पिता चंद्रभान की लंबी लड़ाई के बाद अब मानवाधिकार आयोग ने सरकार से जवाब मांगा है। जानें पूरी कहानी और आयोग की सिफारिशें।

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13 साल बाद भी अधूरा सम्मान: शहीद सौरभ गर्ग के पिता की न्याय की लड़ाई, मानवाधिकार आयोग का कड़ा रुख
13 साल बाद भी अधूरा सम्मान: शहीद सौरभ गर्ग के पिता की न्याय की लड़ाई, मानवाधिकार आयोग का कड़ा रुख

एक पिता का 13 साल का अनवरत संघर्ष: शहीद सौरभ गर्ग को न्याय दिलाने की मानवीय पुकार पर मानवाधिकार आयोग का ऐतिहासिक हस्तक्षेप

जींद, हरियाणा: 8 दिसंबर 2012 की वह रात आज भी पिल्लूखेड़ा की फिजाओं में गूंजती है, जब एक युवा, सौरभ गर्ग, ने अपनी जान की परवाह किए बिना 11 जिंदगियों को अग्नि की लपटों से बचाया और स्वयं शहादत को प्राप्त हो गया। यह सिर्फ एक त्रासदी नहीं थी, बल्कि मानवता और निस्वार्थ सेवा का एक ऐसा अदम्य उदाहरण था, जिसकी गूंज आज भी भारतीय समाज में सुनाई देती है। लेकिन विडंबना यह है कि इस अतुलनीय साहस को राष्ट्रीय और राजकीय स्तर पर उचित सम्मान दिलाने के लिए उनके वृद्ध पिता चंद्रभान गर्ग को पिछले 13 वर्षों से अथक संघर्ष करना पड़ रहा है। अब इस लंबी और हृदयविदारक लड़ाई में हरियाणा मानव अधिकार आयोग (एचएचआरसी) ने एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप करते हुए सरकार से इस प्रशासनिक उदासीनता पर जवाब तलब किया है, जिसने एक शहीद के सम्मान को दशकों तक अधर में लटकाए रखा है।

अदम्य साहस की वह रात: जब सौरभ गर्ग बने नायक

सौरभ गर्ग, पिल्लूखेड़ा के एक सामान्य नागरिक, ने 8 दिसंबर 2012 की उस भयावह रात को असाधारण साहस का परिचय दिया। एक घर में रसोई गैस सिलेंडर से रिसाव के कारण भीषण आग लग गई थी, और अंदर 11 लोग फंसे हुए थे। पड़ोस में रहने वाले सौरभ ने बिना एक पल भी हिचके, सीढ़ी लगाकर एक-एक करके सभी 11 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला। यह एक ऐसा कार्य था, जो केवल अदम्य साहस और मानवीय संवेदना का धनी व्यक्ति ही कर सकता था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। जैसे ही सभी लोग सुरक्षित बाहर निकल आए, एक जोरदार धमाका हुआ और सौरभ गर्ग स्वयं आग की लपटों में समा गए। उन्होंने अपनी जान देकर दूसरों की जान बचाई, और इस तरह वे एक सच्चे राष्ट्रनायक बन गए।

सम्मान के लिए 13 वर्षों का इंतजार: प्रशासनिक उदासीनता का स्याह अध्याय

13 साल बाद भी अधूरा सम्मान: शहीद सौरभ गर्ग के पिता की न्याय की लड़ाई, मानवाधिकार आयोग का कड़ा रुख

सौरभ की शहादत के बाद, उनके पिता चंद्रभान गर्ग ने अपने बेटे को उचित सम्मान दिलाने की ठानी। उनकी लड़ाई कोई सामान्य लड़ाई नहीं थी; यह एक शहीद के सम्मान और सरकारी तंत्र की जवाबदेही के लिए लड़ी जा रही थी। घटना के एक सप्ताह के भीतर ही, जींद के उपायुक्त ने मामले की संस्तुति हरियाणा सरकार के गृह विभाग को भेज दी थी। इसके बाद, अगले 13 वर्षों में, पत्राचार का एक अंतहीन सिलसिला चला। 14 दिसंबर 2012 से लेकर 13 अगस्त 2024 तक, बार-बार सरकार से संपर्क किया गया। हरियाणा विधानसभा में 22 फरवरी 2013 को इस घटना पर चर्चा भी हुई, जहां सदस्यों ने सौरभ की स्मृति में मौन धारण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री कार्यालय तक से गृह मंत्रालय, भारत सरकार को पत्र भेजे गए, जो इस घटना की राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता को दर्शाते थे।

लेकिन, इन सभी प्रयासों के बावजूद, सौरभ गर्ग को न तो राष्ट्रीय स्तर पर 'प्रधानमंत्री जीवन रक्षा पदक' जैसा कोई सम्मान मिला और न ही राज्य स्तर पर। उस समय भारत सरकार की साहसिक कार्यों और जीवन-रक्षा के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार देने की एक सुव्यवस्थित नीति मौजूद थी, जिसके तहत हरियाणा सरकार नामांकन भेज सकती थी। दुखद यह है कि संबंधित अधिकारियों द्वारा निर्धारित समय-सीमा में फाइल आगे न बढ़ाने के कारण यह अवसर चूक गया। यह प्रशासनिक लापरवाही और उदासीनता का एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसने एक परिवार और पूरे समाज को अन्याय का दंश झेलने पर मजबूर कर दिया।

मानवाधिकार आयोग का कड़ा रुख: "यह प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम"

न्यायमूर्ति ललित बत्रा की अध्यक्षता में हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने इस मामले पर अत्यंत गंभीर टिप्पणी की है। आयोग ने कहा, "प्रारंभ में ही हरियाणा मानव अधिकार आयोग अत्यंत भावविभोर होकर यह दर्ज करता है कि ऐसा शौर्य, जहां एक युवा नागरिक स्वेच्छा से दूसरों की सुरक्षा हेतु अपने जीवन का बलिदान करता है, मानवता के उच्चतम आदर्शों का प्रतीक है। उसे राष्ट्र द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए।" आयोग ने स्पष्ट किया कि सौरभ गर्ग का बलिदान केवल उनके परिवार का निजी शोक नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण समाज और राज्य का गौरव भी है।

आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि "यह देरी पूरी तरह प्रशासनिक लापरवाही एवं उदासीनता का परिणाम है और इससे न केवल परिवार बल्कि पूरे समाज के साथ अन्याय हुआ है।" स्पष्ट संस्तुतियों और मामले की असाधारण योग्यता के बावजूद, यह मामला समय पर निपटाया नहीं गया और प्रशासनिक विलंब में फंसा रहा।

नए नियम और सम्मान का विकल्प नहीं आर्थिक सहायता

मामले की सुनवाई के दौरान, हरियाणा के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने आयोग को सूचित किया कि गृह मंत्रालय, भारत सरकार की 1 अप्रैल 2024 की अधिसूचना के अनुसार, केवल पिछले दो वर्षों के मामलों को ही 'प्रधानमंत्री जीवन रक्षा पदक' के लिए नामित किया जा सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि सौरभ गर्ग का नाम इस पुरस्कार हेतु विचाराधीन नहीं हो सकता। आयोग ने इस नए नियम को चुनौती देते हुए कहा है कि यह एक विशेष मामला है और इसमें छूट प्रदान की जानी चाहिए।

इसके अतिरिक्त, आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता उनके बलिदान के सम्मान का विकल्प नहीं हो सकती। एक शहीद को मिलने वाला सम्मान केवल आर्थिक मदद तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह उनके बलिदान को राष्ट्रीय और सामाजिक स्मृति में चिरस्थायी बनाने का प्रतीक होता है।

आयोग की ऐतिहासिक सिफारिशें: न्याय की नई उम्मीद

इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, न्यायमूर्ति ललित बत्रा की अध्यक्षता वाले पूर्ण आयोग ने कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें जारी की हैं, जो इस मामले में न्याय की नई उम्मीद जगाती हैं:

  1. देरी की जिम्मेदारी: मुख्य सचिव, हरियाणा को छह सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें 2012 से अब तक हुई देरी की जिम्मेदारी तय की जाए। यह कदम प्रशासनिक जवाबदेही तय करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।

  2. केंद्र सरकार से अनुरोध: राज्य सरकार को भारत सरकार के गृह मंत्रालय से अनुरोध करना चाहिए कि 1 अप्रैल 2024 की अधिसूचना में छूट प्रदान की जाए ताकि सौरभ गर्ग के मामले पर विशेष विचार किया जा सके।

  3. राज्य स्तर पर सम्मान: राज्य सरकार स्वयं भी शहीद सौरभ गर्ग को राज्य स्तर पर उपयुक्त साहसिक पुरस्कार प्रदान करने पर विचार करे। यह राज्य की ओर से उनके बलिदान को पहचानने का एक महत्वपूर्ण प्रतीक होगा।

  4. मुख्यमंत्री का संज्ञान: आदेश की प्रति मुख्यमंत्री, हरियाणा को भी भेजी जाए ताकि वे स्वयं संज्ञान लेकर सर्वोच्च स्तर पर उचित कार्रवाई सुनिश्चित कर सकें। यह इस मामले की गंभीरता को रेखांकित करता है।

शहीद स्मारक की दुर्दशा पर भी आयोग के निर्देश

चंद्रभान गर्ग ने आयोग को यह भी अवगत कराया कि शहीद सौरभ गर्ग के सम्मान में बने स्मारक का रखरखाव ठीक से नहीं हो रहा है। इस पर भी आयोग ने मार्केट कमेटी पिल्लूखेड़ा के सचिव को विस्तृत निर्देश दिए हैं:

  • रखरखाव योजना: सफाई, प्रकाश व्यवस्था, बागवानी और समग्र देखरेख के लिए एक विस्तृत मेंटेनेंस प्लान तैयार किया जाए।

  • पृथक बजट: स्मारक के रखरखाव के लिए एक पृथक बजट हेड बनाया जाए।

  • कर्मचारी नियुक्ति: एक माली और एक सफाई कर्मचारी की नियुक्ति की जाए।

  • सुविधाएं: कूड़ेदान, पीने के पानी की सुविधा, बेंच और सौर/एलईडी लाइटें लगाई जाएं।

  • सूचना प्रदर्शित करें: स्मारक की महत्ता और जिम्मेदार प्राधिकरण का नाम स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया जाए।

  • नियमित निरीक्षण: नियमित निरीक्षण के लिए एक अधिकारी नामित किया जाए।

एक प्रेरणादायक गाथा: साहस और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक

हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है कि शहीद सौरभ गर्ग की बहादुरी को केवल उनके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणास्रोत के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए। उनकी शहादत यह संदेश देती है कि साहस, मानवता और निस्वार्थ सेवा कभी अनदेखी नहीं की जाएगी।

चंद्रभान गर्ग की 13 साल की यह लड़ाई, सरकारी उदासीनता के खिलाफ एक पिता के अटूट संकल्प की कहानी है। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि हमारे देश के नायकों को सम्मान दिलाना केवल सरकार का नहीं, बल्कि पूरे समाज का सामूहिक कर्तव्य है। मानवाधिकार आयोग का हस्तक्षेप इस लंबी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो आशा जगाता है कि अंततः शहीद सौरभ गर्ग को वह सम्मान मिलेगा जिसके वे वास्तव में हकदार हैं। यह सुनिश्चित करना अब सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है कि ऐसे नायकों के बलिदान को कभी भुलाया न जाए और उनके परिजनों को न्याय के लिए इतना लंबा इंतजार न करना पड़े।

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