अमेरिकी फेड रेट कट: वैश्विक बाजारों में उछाल, भारतीय शेयर बाजार में रिकॉर्ड तेज़ी

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ऐतिहासिक ब्याज दर कटौती के फैसले ने वैश्विक शेयर बाजारों में उत्साह भर दिया है। जानें कैसे इस कदम ने सेंसेक्स और निफ्टी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और भारत पर इसके दूरगामी आर्थिक प्रभाव।

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अमेरिकी फेड के ऐतिहासिक कदम से झूमा विश्व बाजार, भारत में रिकॉर्ड तोड़ तेज़ी

मुंबई: एक ऐसा दिन जब न्यूयॉर्क से टोक्यो तक, हर व्यापारिक डेस्क पर उत्साह की लहर दौड़ गई। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की कटौती के ऐतिहासिक फैसले ने वैश्विक वित्तीय परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया है। इस घोषणा के तत्काल बाद दुनिया भर के शेयर बाजारों में अभूतपूर्व तेज़ी दर्ज की गई, जिसकी गूंज भारतीय दलालों के ट्रेडिंग फ्लोर पर भी साफ़ सुनाई दी। भारतीय बेंचमार्क सूचकांक, एसएंडपी बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी-50, रिकॉर्ड नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए, जिससे निवेशकों में जबरदस्त उत्साह का माहौल है।

अचानक आया आर्थिक ज्वार: फेड का चौंकाने वाला फैसला

गुरुवार को, जब दुनिया भर के निवेशक अपनी स्क्रीन से चिपके हुए थे, अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपने नीतिगत रुख में एक महत्वपूर्ण बदलाव की घोषणा की। ब्याज दरों में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती, जो कि मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों में कई लोगों के लिए अप्रत्याशित थी, ने तत्काल प्रभाव से वैश्विक तरलता में इजाफा किया। यह कदम ऐसे समय में आया है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दबावों से जूझ रही थी, और इसने तत्काल एक उत्प्रेरक का काम किया। फेड का यह निर्णय, जैसा कि विश्लेषकों का मानना है, अर्थव्यवस्था को गति देने और निवेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लिया गया है।

विश्व बाजार में जश्न: डाउ जोंस से निक्केई तक

फेड के फैसले का पहला और सबसे स्पष्ट प्रभाव अमेरिकी बाजारों पर पड़ा। डाउ जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज 260 अंकों की शानदार बढ़त के साथ बंद हुआ, जो निवेशकों के आत्मविश्वास का प्रमाण था। डाउ फ्यूचर्स भी 136 अंकों की मजबूती के साथ ग्रीन ज़ोन में रहा, जो आने वाले दिनों के लिए सकारात्मक संकेत दे रहा था।

लेकिन अमेरिका तक ही यह उत्साह सीमित नहीं था। प्रशांत पार, एशिया के बाजारों में भी जश्न का माहौल था। जापान का निक्केई इंडेक्स सबसे आगे रहा, जिसने 487 अंकों की भारी छलांग के साथ 45,277.43 पर कारोबार किया। दक्षिण कोरिया का कोस्पी इंडेक्स भी 1% से अधिक बढ़कर 3448.69 पर पहुंच गया। सिडनी से सिंगापुर तक, हर प्रमुख सूचकांक ने महत्वपूर्ण बढ़त दर्ज की, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने का संकेत दिया।

भारतीय बाजारों पर तत्काल प्रभाव: सेंसेक्स, निफ्टी ने छुआ आसमान

भारतीय शेयर बाजार, जो वैश्विक रुझानों के प्रति हमेशा संवेदनशील रहा है, इस तेजी से अछूता नहीं रहा। सुबह के शुरुआती घंटों से ही भारतीय बाजारों में उत्साह साफ दिख रहा था। गिफ्ट निफ्टी ने 50 अंकों की मजबूती के साथ 25,524 के स्तर पर कारोबार शुरू किया, जो भारतीय शेयर बाजार के लिए एक सकारात्मक शुरुआत का संकेत था।

जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, खरीदारी का सिलसिला तेज होता गया। दोपहर तक, एसएंडपी बीएसई सेंसेक्स 400 अंकों से अधिक की छलांग लगाकर 83,108.92 के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। वहीं, एनएसई निफ्टी-50 ने भी 25,400 का महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक स्तर पार कर लिया, जिससे यह इक्विटी निवेशकों के लिए एक ऐतिहासिक दिन बन गया। व्यापक बाजार सूचकांकों में भी उत्साह देखने को मिला, हालांकि उतार-चढ़ाव नियंत्रित रहा, जो एक स्वस्थ बाजार रैली का संकेत है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। निवेशकों का बढ़ता विश्वास और विदेशी पूंजी का संभावित प्रवाह देश की आर्थिक वृद्धि को और गति दे सकता है।
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रुपये पर दबाव: डॉलर के मुकाबले फिसला भारतीय रुपया

जहां एक ओर वैश्विक स्टॉक मार्केट में तेज़ी देखने को मिली, वहीं भारतीय रुपये पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ा। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 16 पैसे गिरकर 88.01 पर पहुंच गया। यह गिरावट चिंता का विषय है, खासकर तब जब डॉलर में वैश्विक नरमी और भारत में बढ़ते विदेशी निवेश की उम्मीद है।

विश्लेषकों का मानना है कि यह गिरावट अल्पकालिक हो सकती है और कई कारकों से प्रभावित हो सकती है, जिसमें कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें या कुछ विशेष आर्थिक नीतियां शामिल हो सकती हैं। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक की इस पर कड़ी नज़र होगी ताकि रुपये की स्थिरता सुनिश्चित की जा सके और आयात महंगाई का दबाव कम किया जा सके।

भारत पर दूरगामी प्रभाव: निवेश, महंगाई और आर्थिक विकास

अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती का भारतीय बाजारों और अर्थव्यवस्था पर कई तरह का असर पड़ सकता है:

  1. विदेशी निवेश में इजाफा: अमेरिका में रिटर्न कम होने पर निवेशक उभरते बाजारों का रुख करते हैं, और भारत उनमें से एक प्रमुख गंतव्य है। उम्मीद है कि विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भारतीय इक्विटी और ऋण बाजारों में अपना निवेश बढ़ाएंगे, जिससे बाजार को और गति मिलेगी।

  2. आईटी और मेटल सेक्टर को लाभ: अमेरिका में पूंजीगत खर्च बढ़ने की संभावना है, जिससे भारतीय आईटी और मेटल सेक्टर की कंपनियों को सीधा लाभ मिल सकता है, जो अमेरिकी बाजार पर काफी हद तक निर्भर करते हैं।

  3. आयात महंगाई में कमी: डॉलर में नरमी से भारत के आयात बिल पर दबाव घट सकता है, जिससे आयात महंगाई नियंत्रित रह सकती है। रुपये की स्थिरता से व्यापार संतुलन में सुधार हो सकता है।

  4. ऋण सस्ता होने की उम्मीद: यदि वैश्विक केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीतियों को नरम करते हैं, तो भारतीय रिजर्व बैंक पर भी घरेलू ब्याज दरों में कटौती का दबाव बढ़ सकता है, जिससे ऋण सस्ता होगा और उपभोक्ता खर्च तथा निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

एक नई आर्थिक सुबह की आहट

अमेरिकी फेडरल रिजर्व का यह फैसला सिर्फ एक नीतिगत घोषणा से कहीं अधिक है; यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक नई सुबह की आहट है। इसने दुनिया भर के बाजारों में नई ऊर्जा भर दी है और विशेष रूप से भारतीय शेयर बाजार को रिकॉर्ड ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। हालांकि, रुपये पर दबाव जैसी कुछ चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं, लेकिन कुल मिलाकर, यह कदम भारत के लिए एक मजबूत आर्थिक पथ प्रशस्त करने की क्षमता रखता है। आने वाले महीने यह तय करेंगे कि यह गति कितनी टिकाऊ है और भारतीय अर्थव्यवस्था इस वैश्विक अवसर का कितना लाभ उठा पाती है। निश्चित रूप से, आज का दिन इतिहास में एक ऐसे दिन के रूप में दर्ज किया जाएगा जब एक अमेरिकी निर्णय ने भारत की आर्थिक नियति को एक नई दिशा दी।

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

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