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अंबेडकरनगर में गहराया एचआईवी संकट - छह माह में 112 नए मामले, प्रवासी मजदूर बने वाहक
अंबेडकरनगर, उत्तर प्रदेश: लखनऊ से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित अंबेडकरनगर जिले में एक गंभीर जनस्वास्थ्य संकट उभरकर सामने आया है। पिछले छह महीनों के दौरान एचआईवी संक्रमण के 112 नए मामले सामने आने से स्वास्थ्य अधिकारियों में हड़कंप मच गया है। इन आंकड़ों ने न केवल जिले की स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव बढ़ाया है, बल्कि भविष्य की चुनौतियों का भी संकेत दिया है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन नए मामलों में एक बड़ा हिस्सा उन प्रवासी मजदूरों का है जो विभिन्न राज्यों से काम करके लौटे हैं, और अनजाने में इस घातक बीमारी को अपने साथ वापस ले आए हैं।
एक अनकही त्रासदी की आहट
अंबेडकरनगर में 2005 में स्थापित संपूर्ण सुरक्षा केंद्र (Integrated Counselling and Testing Centre - ICTC) के आंकड़े एक चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं। शुरुआत से लेकर अब तक, जिले में कुल 2,040 लोग एचआईवी से संक्रमित पाए गए हैं, जिनमें से 160 ने अपनी जान गंवाई है। लेकिन पिछले 180 दिनों में 112 नए मामलों का सामने आना, एक ऐसी वृद्धि है जिसने सभी को स्तब्ध कर दिया है। यह सिर्फ संख्याएं नहीं हैं, यह परिवारों की टूटी उम्मीदें, माताओं की चिंता और एक समुदाय पर मंडराते खतरे की कहानी है।
प्रवासी मजदूरों की वापसी और संक्रमण की नई श्रृंखला
स्वास्थ्य विशेषज्ञों और स्थानीय अधिकारियों का मानना है कि इस अचानक उछाल का मुख्य कारण वे प्रवासी मजदूर हैं जो देश के अन्य हिस्सों से काम करके अपने घरों को लौटे हैं। बड़े शहरों में काम के दौरान, अक्सर असुरक्षित यौन व्यवहार के कारण वे एचआईवी से संक्रमित हो जाते हैं। जब वे वापस अपने गांव आते हैं, तो अनजाने में अपने पार्टनर्स को भी संक्रमित कर देते हैं, जिससे संक्रमण की एक नई और खतरनाक श्रृंखला शुरू हो जाती है।
जिला अस्पताल के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हमने देखा है कि जो लोग बाहर से लौटे हैं, उनमें से कई पॉजिटिव पाए गए हैं। दुखद बात यह है कि ये लोग अपने साथ सिर्फ पैसा और अनुभव नहीं, बल्कि एक जानलेवा बीमारी भी ले आए हैं, जिसका खामियाजा अब उनके परिवार और समुदाय को भुगतना पड़ रहा है।"
महिलाओं और गर्भवती माताओं पर भारी असर
इस संक्रमण ने महिलाओं को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। कई महिलाएं अपने संक्रमित पतियों के कारण एचआईवी पॉजिटिव पाई गई हैं। सबसे हृदय विदारक पहलू यह है कि हाल ही में चार गर्भवती महिलाएं भी इस बीमारी की चपेट में आ गई हैं। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग की त्वरित कार्रवाई और समर्पण से एक गर्भवती महिला का प्रसव सुरक्षित रूप से कराया गया और नवजात शिशु को संक्रमण से बचाया जा सका। यह एक छोटी सी जीत है, लेकिन यह दर्शाता है कि खतरा कितना बड़ा और बहुआयामी है। भविष्य में और अधिक ऐसे मामले सामने आने की आशंका है, जो बच्चों के स्वास्थ्य पर भी सीधा असर डालेंगे।
मौतों का बढ़ता आंकड़ा: एक भयावह संकेत
पिछले साल जहां पूरे 12 महीनों में एचआईवी से केवल दो मौतें दर्ज की गई थीं, वहीं इस साल के पहले छह महीनों में ही यह आंकड़ा दोगुना होकर चार तक पहुंच गया है। यह न केवल संक्रमण के बढ़ते प्रसार का संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि बीमारी की गंभीरता और इसका सामना करने में चुनौतियां कितनी बड़ी हैं।
वर्तमान में अंबेडकरनगर में 1880 सक्रिय एचआईवी मरीज हैं। इनमें से 1689 मरीज जिला अस्पताल के संपूर्ण सुरक्षा केंद्र से नियमित दवाएं और परामर्श ले रहे हैं। शेष मरीज लखनऊ या अन्य जिलों के केंद्रों से अपना इलाज करवा रहे हैं। हालांकि इलाज और सहायता तंत्र मौजूद है, फिर भी नए मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि चिंता का विषय बनी हुई है।
जागरूकता की कमी और लापरवाही: मुख्य चुनौतियाँ
सरकार एचआईवी/एड्स की रोकथाम के लिए विभिन्न जागरूकता अभियान चला रही है। मुफ्त जांच, दवाइयां और परामर्श सेवाएं भी उपलब्ध हैं। इसके बावजूद, संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसका मुख्य कारण असुरक्षित यौन व्यवहार, जागरूकता की कमी और स्वास्थ्य प्रोटोकॉल के प्रति लापरवाही है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी एचआईवी को लेकर कई भ्रांतियां और सामाजिक कलंक जुड़े हुए हैं, जिसके कारण लोग जांच कराने या अपनी स्थिति का खुलासा करने में हिचकिचाते हैं। यह छिपाव संक्रमण को और अधिक फैलने का मौका देता है।
एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया, "हमें सिर्फ दवाएं नहीं, बल्कि गहरी सामाजिक जागरूकता की जरूरत है। लोगों को खुलकर बात करने और अपनी जिम्मेदारी समझने की आवश्यकता है। जब तक डर और अज्ञानता रहेगी, यह बीमारी फैलती रहेगी।"
आगे की राह: क्या हैं तत्काल कदम?
इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए अंबेडकरनगर को तत्काल और व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। इसमें शामिल हो सकते हैं:
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सघन जागरूकता अभियान: विशेषकर ग्रामीण और प्रवासी मजदूर बहुल क्षेत्रों में।
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प्रवासी मजदूरों की अनिवार्य स्क्रीनिंग: वापसी पर एचआईवी जांच को प्राथमिकता देना।
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सामुदायिक स्तर पर परीक्षण केंद्र: लोगों को घर के करीब और आसानी से जांच सुविधाएं उपलब्ध कराना।
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गर्भवती महिलाओं की विशेष देखभाल: उन्हें और उनके शिशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए अतिरिक्त उपाय।
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परामर्श और सहायता सेवाओं का विस्तार: मरीजों और उनके परिवारों को भावनात्मक और चिकित्सीय सहायता प्रदान करना।
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भागीदारी को बढ़ावा: गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और स्थानीय नेताओं को इस अभियान में शामिल करना।
अंबेडकरनगर में एचआईवी का यह प्रकोप सिर्फ एक जिले की समस्या नहीं है, यह एक राष्ट्रीय चिंता का विषय है जो दिखाता है कि कैसे सामाजिक-आर्थिक कारक जनस्वास्थ्य पर सीधा असर डालते हैं। इस अदृश्य शत्रु से लड़ने के लिए सिर्फ स्वास्थ्य विभाग ही नहीं, बल्कि पूरा समाज, एकजुट होकर काम करे, यही समय की मांग है। अगर तत्काल और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट एक बड़े जनस्वास्थ्य आपदा में तब्दील हो सकता है, जिसके परिणाम भयावह होंगे।
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