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बालोद शिक्षा विभाग में 'युक्तियुक्तकरण' के नाम पर भ्रष्टाचार का नंगा नाच: करोड़ों के घोटाले, अधिकारियों पर चुप्पी का आरोप

बालोद जिले में शिक्षा विभाग 'युक्तियुक्तकरण' प्रक्रिया के नाम पर गहरे भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। डौंडीलोहारा के ब्लॉक शिक्षा अधिकारी हिमांशु मिश्रा पर 11 गंभीर घोटालों का आरोप है, जिसमें शिक्षक समायोजन में धांधली, अवैध पदस्थापनाएं और फर्जी वेतन जारी करना शामिल है। शिकायतें होने के बावजूद उच्च अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं, जिससे शिक्षा के भविष्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।

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'युक्तियुक्तकरण' के नाम पर शिक्षा का सौदा, जिला प्रशासन की चुप्पी से गहराता भ्रष्टाचार

मोहन निषाद/बालोद:- 

बालोद: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले से शिक्षा व्यवस्था को झकझोर देने वाली खबरें आ रही हैं, जहां 'युक्तियुक्तकरण' जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया भ्रष्टाचार के गहरे दलदल में फंस गई है। यह प्रक्रिया, जिसका मूल उद्देश्य शिक्षा को संतुलित और सुदृढ़ बनाना था, अब अधिकारियों के लिए अपनी जेबें भरने का जरिया बन चुकी है। डौंडीलोहारा ब्लॉक शिक्षा अधिकारी हिमांशु मिश्रा पर लगे गंभीर आरोप और जिला प्रशासन की रहस्यमयी चुप्पी ने पूरे तंत्र पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। यह सिर्फ पैसों का खेल नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।

युक्तियुक्तकरण: एक नेक पहल, भ्रष्ट इरादों का शिकार

'युक्तियुक्तकरण' एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत शिक्षकों का उचित समायोजन कर स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित की जाती है। इसका मकसद शिक्षकों की कमी वाले स्कूलों में पदस्थापन करना और अनावश्यक रूप से अधिक शिक्षकों वाले स्कूलों से शिक्षकों को अन्यत्र स्थानांतरित करना होता है। लेकिन बालोद जिले में यह प्रक्रिया अपने मूल उद्देश्य से भटक गई है। आरोप है कि इस पूरी प्रक्रिया को नियमों और आदेशों को ताक पर रखकर, पैसों के बल पर नियंत्रित किया जा रहा है। जिन अधिकारियों ने ऊपर तक 'रकम' पहुंचाई, उन्हें मनचाही पदस्थापना मिली, जबकि ईमानदारी से काम करने वाले शिक्षकों को किनारे कर दिया गया।

यह स्थिति सीधे तौर पर छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियमों का उल्लंघन है और यह दर्शाती है कि कैसे कुछ भ्रष्ट अधिकारी व्यवस्था को अपनी व्यक्तिगत लाभ के लिए ध्वस्त कर रहे हैं।

डौंडीलोहारा के BEO हिमांशु मिश्रा: आरोपों का घेरा

इस पूरे भ्रष्टाचार के केंद्र में डौंडीलोहारा ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) हिमांशु मिश्रा का नाम प्रमुखता से आ रहा है। उन पर विभागीय आदेशों की अवहेलना करने और अपनी मनमानी चलाने के गंभीर आरोप हैं। मिश्रा के खिलाफ 11 विशिष्ट बिंदुओं पर शिकायतें दर्ज की गई हैं, जिनमें वैध दस्तावेज भी संलग्न हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि संभागायुक्त और अन्य उच्च अधिकारी इन शिकायतों पर मौन धारण किए हुए हैं।

हिमांशु मिश्रा पर लगे 11 गंभीर आरोप:

  1. शिक्षक समायोजन में धांधली: आरोप है कि मिश्रा ने शिक्षकों के समायोजन में बड़े पैमाने पर धांधली करके मोटी रकम ऐंठी है। योग्य शिक्षकों को दरकिनार कर पैसे देने वालों को लाभ पहुंचाया गया।

  2. अवैध पदस्थापना कर फायदा: नियमों के विरुद्ध जाकर कई शिक्षकों को मनचाही जगह पर पदस्थापित किया गया, जिससे व्यक्तिगत लाभ कमाया जा सके।

  3. बीमार शिक्षक को फर्जी कार्यरत दिखाना: गंभीर रूप से बीमार या अनुपस्थित शिक्षकों को फर्जी तरीके से कार्यरत दिखाकर उनके नाम पर वेतन हड़पाने का आरोप है।

  4. अपात्र उम्मीदवारों को संरक्षण: ऐसे उम्मीदवारों को संरक्षण दिया गया जो पदस्थापना के लिए अपात्र थे, लेकिन उनके पास 'पहुंच' या 'पैसे' थे।

  5. शिकायत दबाने के लिए रिश्वत: अपने खिलाफ या विभाग में उठने वाली अन्य शिकायतों को दबाने के लिए रिश्वत लेने का आरोप।

  6. शासनादेशों की अवहेलना: राज्य शासन द्वारा जारी महत्वपूर्ण आदेशों और निर्देशों को कूड़ेदान में फेंककर अपनी मनमानी चलाना।

  7. राजनीतिक नेताओं से मिलीभगत: स्थानीय राजनीतिक नेताओं के साथ मिलकर अवैध गतिविधियों को अंजाम देना और उनका संरक्षण प्राप्त करना।

  8. दस्तावेजों में कूट रचना और फर्जी प्रमाणपत्र: आवश्यक दस्तावेजों में हेरफेर और फर्जी प्रमाणपत्रों का उपयोग कर लाभ प्राप्त करना।

  9. पदस्थापना तय करने में बोली लगाना: यह आरोप सबसे गंभीर है कि शिक्षकों की पदस्थापना के लिए खुलेआम बोली लगाई गई, जो सीधे-सीधे भ्रष्टाचार को दर्शाता है।

  10. आरटीआई से उजागर प्रमाणों को छिपाना: सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारियों और उजागर हुए प्रमाणों को छिपाने का प्रयास करना।

  11. जनहित याचिकाओं पर जानबूझकर देरी: जनहित में दायर याचिकाओं और शिकायतों पर जानबूझकर कार्रवाई में देरी करना या उन्हें ठंडे बस्ते में डाल देना।

ये आरोप केवल एक अधिकारी पर नहीं, बल्कि उस पूरे तंत्र पर सवाल उठाते हैं जो शिक्षा के पवित्र क्षेत्र में इस तरह की गतिविधियों को पनपने दे रहा है।

उच्च अधिकारियों की चुप्पी: मिलीभगत या उदासीनता?

इन गंभीर आरोपों और दस्तावेजी शिकायतों के बावजूद संभागायुक्त और अन्य उच्च अधिकारियों की चुप्पी हैरान करने वाली है। यह स्थिति कई सवाल खड़े करती है: क्या उच्च अधिकारी इस भ्रष्टाचार से अनजान हैं? या फिर इस पूरे खेल में उनकी भी मिलीभगत है, जैसा कि आरोप है कि "ऊपर तक पेटी भरने का धंधा" चल रहा है?

जब शिकायतों को, जो पुख्ता सबूतों के साथ पेश की गई हैं, नजरअंदाज किया जाता है, तो यह जनता के विश्वास को तोड़ता है और भ्रष्ट तत्वों को और मजबूत करता है। शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इस तरह की उदासीनता अस्वीकार्य है।

भ्रष्टाचार का शिक्षा और भविष्य पर प्रभाव

जब शिक्षकों की पदस्थापना का पैमाना ईमानदारी और योग्यता नहीं, बल्कि पैसों की बोरी हो जाए, तो इसका सीधा असर शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ता है। अयोग्य शिक्षक गलत जगहों पर पहुंच जाते हैं, जबकि योग्य और समर्पित शिक्षक हताश हो जाते हैं। इससे बच्चों को मिलने वाली शिक्षा का स्तर गिरता है और उनका भविष्य अंधकारमय होता है। यह सिर्फ एक घोटाला नहीं, बल्कि एक अपराध है जो आने वाली पीढ़ियों के साथ किया जा रहा है।

जनता का आक्रोश और आगे की राह

इस पूरे प्रकरण ने बालोद की जनता में भारी आक्रोश भर दिया है। जब शिकायतें और प्रमाण भी कचरे की तरह फेंक दिए जाते हैं, तब जनता के पास सड़क पर उतरने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। धरना, प्रदर्शन और आमरण अनशन जैसे कदम ही इस लूटतंत्र के खिलाफ आवाज उठाने का एकमात्र हथियार हो सकते हैं।

शिक्षा विभाग के इस सड़े चेहरे को साफ करने के लिए यह आवश्यक है कि न केवल भ्रष्ट अधिकारियों की 'पेटी' की जांच की जाए, बल्कि उनके गंदे कारनामों का हिसाब भी जनता के सामने रखा जाए। यह समय है कि शासन-प्रशासन अपनी गहरी नींद से जागे और इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल, निष्पक्ष और कड़ी कार्रवाई करे। यदि ऐसा नहीं होता है, तो 'युक्तियुक्तकरण' सिर्फ एक और सरकारी योजना बन जाएगी जो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई, और इसका खामियाजा बच्चों के भविष्य को भुगतना पड़ेगा। यह सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को तुरंत रोका जाना चाहिए, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

Dr. Tarachand Chandrakar is a respected journalist with decades of experience in reporting and analysis. His deep knowledge of politics, society, and regional issues brings credibility and authority to Nidar Chhattisgarh. Known for his unbiased reporting and people-focused journalism, he ensures that readers receive accurate and trustworthy news.

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