सुर्खियों में जैन परिवार: एक हृदयविदारक त्रासदी से जन्मा अंगदान का प्रेरक संकल्प
नई दिल्ली: शनिवार की सुबह, जो वंदना और आशीष जैन के लिए एक सामान्य रूटीन चेकअप का दिन होने वाला था, वह जीवन के सबसे दर्दनाक मोड़ में बदल गया। जिस नन्हे मेहमान का वे बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, उसकी धड़कनें थम चुकी थीं। चार महीने के गर्भ को खोने का सदमा पूरे परिवार को झकझोर गया, लेकिन इस अभूतपूर्व दुख की घड़ी में, जैन परिवार ने एक ऐसा निर्णय लिया जिसने उन्हें पूरे देश की सुर्खियों में ला दिया है – मृत भ्रूण का दान। यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना, निःस्वार्थ सेवा और अंगदान के प्रति गहरी जागरूकता की एक प्रेरक गाथा है।
वंदना जैन (32) और उनके पति आशीष जैन (34) पहले से ही एक पांच साल की बेटी के माता-पिता हैं। दूसरी संतान की उम्मीद से पूरा परिवार खुशी से झूम रहा था। वंदना, अपनी नौकरी के साथ-साथ गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनल उतार-चढ़ाव को भी बखूबी संभाल रही थीं। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। रूटीन अल्ट्रासाउंड में जो सामने आया, उसने उनके पैरों तले से जमीन खिसका दी – गर्भ में पल रहे शिशु की धड़कन नहीं थी।
आशीष जैन आज भी उस क्षण को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं। "डॉक्टर ने कहा कि हमें अबॉर्शन कराना होगा, वरना संक्रमण फैल सकता है। यह सुनकर ऐसा लगा जैसे मेरे पैरों तले से किसी ने जमीन खींच ली हो। हम दोनों पूरी तरह टूट चुके थे।" इस दुखद खबर ने आशीष के पिता सुरेश चंद्र जैन को भी गहरा आघात पहुंचाया। परिवार एकजुट हुआ, आंसू बहते रहे, लेकिन इसी बीच एक विचार कौंधा, जिसने उनकी त्रासदी को एक नेक कार्य में बदलने का मार्ग प्रशस्त किया। क्यों न इस मृत भ्रूण को दान कर दिया जाए?
एक पिता की दूरदृष्टि और परिवार का संकल्प
सुरेश चंद्र जैन, जो स्वयं अंगदान के एक मुखर समर्थक और 'आगम श्री फाउंडेशन' के संस्थापक हैं, ने इस विचार को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने परिवार को समझाया, "अगर डॉक्टर इस भ्रूण पर रिसर्च करेंगे, तो शायद यह पता चल सके कि बच्चे की धड़कन क्यों नहीं आई। यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए सहायक हो सकता है।" यह एक ऐसी सोच थी जिसने उनके निजी दुख को व्यापक सामाजिक कल्याण की भावना में बदल दिया।
वंदना, जो अपनी गर्भावस्था के दौरान किसी भी असामान्य परेशानी का सामना नहीं कर रही थीं, इस अप्रत्याशित घटना से स्तब्ध थीं। लेकिन उनके परिवार के समर्थन और भ्रूण दान के निर्णय ने उन्हें इस कठिन घड़ी में हिम्मत दी। "मुझे यह समझ नहीं आया कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। लेकिन मेरे पूरे परिवार ने मुझे संभाला और साथ ही उन्होंने मुझे भ्रूण दान जैसा दैवीय कार्य करने का अवसर दिया, यह बहुत बड़ी बात है," वंदना ने कहा। उनके लिए यह सिर्फ एक सामाजिक योगदान था, जिसकी इतनी प्रशंसा होगी, उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। "हमारे गुरु हमें यही सिखाते हैं कि अपने लिए तो हर कोई सोचता है, लेकिन जो समाज के लिए सोचते हैं, सच्चे अर्थों में उनका जीवन ही सफल है।"
अंगदान की विरासत और 'आगम श्री फाउंडेशन'
जैन परिवार के लिए अंगदान कोई नया विषय नहीं है। सुरेश चंद्र जैन गर्व से बताते हैं कि उनके पूरे परिवार में अंगदान को लेकर गहरी जागरूकता है। उनकी पत्नी, बच्चों और भाइयों के परिवारों सहित कुल 26 लोग अंगदान कर चुके हैं। वे 'आगम श्री फाउंडेशन' नामक एक संस्था चलाते हैं, जो विशेष रूप से अंगदान के लिए समर्पित है। इस फाउंडेशन के माध्यम से वे अब तक 4400 से अधिक नेत्रदान करा चुके हैं, जिससे अनगिनत लोगों के जीवन में रोशनी आई है।
वंदना जैन भी अंगदान के महत्व को बखूबी समझती हैं। पिछले साल ही उनके परिवार पर एक और दुखद घटना घटी थी, जब उनके भाई का देहांत लिवर न मिल पाने के कारण हो गया था। उस दर्दनाक अनुभव ने वंदना को और भी दृढ़ संकल्पित कर दिया था कि हर किसी को अंगदान के प्रति जागरूक होना चाहिए, ताकि दूसरों का भला हो सके। यह व्यक्तिगत त्रासदी ही थी जिसने वंदना के मन में अंगदान के प्रति गहरी आस्था जगाई।
एक मृत भ्रूण, एक जीवित आशा
जब अबॉर्शन के बाद उन्हें पता चला कि गर्भ में पल रहा शिशु एक बेटा था, तो आशीष और वंदना का दुख और गहरा हो गया। लेकिन भ्रूण दान के निर्णय ने उनके मन में एक अजीब सी शांति और आशा जगाई। आशीष कहते हैं, "हमें बहुत दुख हो रहा था, लेकिन भ्रूण दान के निर्णय से मन में एक आस थी कि मेरी औलाद भले ही इस संसार में जीवन नहीं पा सकी, लेकिन उसकी मृत देह कम से कम मेडिकल साइंस रिसर्च के क्षेत्र में हमेशा यादगार रहेगी। इस रिसर्च से आने वाली पीढ़ियों का भला हो सकेगा।" यह एक ऐसा बयान है जो पितृत्व के दर्द से परे जाकर, मानवता के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा को दर्शाता है।
इस परिवार का यह कदम न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी को एक महान सामाजिक योगदान में बदलता है, बल्कि अंगदान और मेडिकल रिसर्च के महत्व पर भी प्रकाश डालता है। भारत में अंगदान की दर अभी भी अपेक्षाकृत कम है, और ऐसे प्रेरक उदाहरण लोगों को इस नेक कार्य के लिए आगे आने को प्रेरित कर सकते हैं। जैन परिवार ने न केवल अपने दुख को संभाला, बल्कि उसे एक ऐसे अवसर में बदल दिया, जिससे शायद भविष्य में कई जिंदगियां बच सकें या कम से कम कई सवालों के जवाब मिल सकें।
समाज पर प्रभाव और आगे का मार्ग
यह घटना केवल एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है। यह हमें सिखाती है कि दुख की घड़ी में भी हम कैसे दूसरों के लिए आशा का किरण बन सकते हैं। यह मेडिकल साइंस की रिसर्च के महत्व को भी रेखांकित करती है, जहां हर छोटा सा योगदान बड़ी खोजों का आधार बन सकता है।
जैन परिवार का यह निःस्वार्थ कार्य निश्चित रूप से अंगदान के प्रति लोगों की सोच को प्रभावित करेगा। यह लोगों को अंगदान के विभिन्न रूपों, जिसमें ऊतक और भ्रूण दान भी शामिल हैं, के बारे में जागरूक करेगा। 'आगम श्री फाउंडेशन' जैसी संस्थाएं पहले से ही इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही हैं, और जैन परिवार का यह कदम उनके प्रयासों को और मजबूती प्रदान करेगा।
यह घटना हमें याद दिलाती है कि जीवन क्षणभंगुर है, और हमारे कार्य ही हमें अमर बनाते हैं। वंदना और आशीष ने अपने बेटे को खो दिया, लेकिन उसके माध्यम से उन्होंने एक ऐसी विरासत छोड़ दी है जो अनगिनत लोगों को प्रेरित करेगी और शायद कई जीवन भी बचाएगी। उनका यह कार्य एक शांत क्रांति का प्रतीक है, जो प्रेम, त्याग और आशा के मूल्यों पर आधारित है।
जैन परिवार की यह कहानी एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि करुणा और निस्वार्थ सेवा की भावना किसी भी त्रासदी से बड़ी हो सकती है। उनका यह कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश बनेगा, यह दर्शाता है कि सबसे कठिन परिस्थितियों में भी, मानव आत्मा में अच्छाई और दान की क्षमता असीमित होती है। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि "अपने लिए तो हर कोई जीता है, लेकिन जो समाज के लिए जीते हैं, सच्चा जीवन उन्हीं का है।"