बिहार चुनाव 2025: जीतन राम मांझी का NDA को अल्टीमेटम, 100 सीटों पर अकेले लड़ने की चेतावनी

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले NDA में सीट बंटवारे को लेकर घमासान तेज हो गया है। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के प्रमुख जीतन राम मांझी ने 15-20 सीटें न मिलने पर 100 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की धमकी दी है। जानें मांझी की रणनीति, NDA की मुश्किलें और बिहार की राजनीति पर इसका असर।

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बिहार चुनाव 2025: NDA में भूचाल, मांझी का 'अल्टीमेटम' और 100 सीटों का 'मास्टरस्ट्रोक'

 

बोधगया, बिहार: बिहार की राजनीति में 2025 विधानसभा चुनाव से पहले ही तपिश महसूस की जाने लगी है। सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के भीतर सीट बंटवारे को लेकर सुगबुगाहट तेज है, और इसी बीच एक घटक दल के मुखिया ने अपनी धमाकेदार एंट्री से सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) यानी 'हम' के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने खुलेआम NDA को अल्टीमेटम दे दिया है। बोधगया में अपने आवास पर पत्रकारों से मुखातिब मांझी ने दो टूक शब्दों में कहा कि अगर उनकी पार्टी को 15 से 20 सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं, तो 'हम' 100 सीटों पर अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी। यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि बिहार की जटिल जातीय और राजनीतिक समीकरणों के बीच अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का एक सधा हुआ दांव प्रतीत होता है, जिसने NDA के रणनीतिकारों की नींद उड़ा दी है।

कौन हैं जीतन राम मांझी और क्या है उनका इतिहास?

जीतन राम मांझी बिहार की राजनीति का एक जाना-पहचाना नाम हैं। दलित समुदाय से आने वाले मांझी ने अपने लंबे राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। वे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक भी पहुंचे, लेकिन बाद में नीतीश कुमार से मतभेद के चलते अलग हो गए और अपनी पार्टी 'हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा' का गठन किया। मांझी की राजनीति मुख्य रूप से महादलित वोटों के इर्द-गिर्द घूमती है, और इस समुदाय में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। वे अक्सर गरीबों और वंचितों की आवाज बुलंद करते नजर आते हैं, और ब्राह्मणवाद विरोधी बयान भी उनकी राजनीतिक शैली का हिस्सा रहे हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में, 'हम' ने NDA के साथ गठबंधन में 7 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटों पर जीत हासिल कर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था। वर्तमान में वे केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं, जो NDA में उनके बढ़ते कद को दर्शाता है।

मांझी का 'मास्टरस्ट्रोक': 100 सीटों का दांव और मान्यता प्राप्त दल बनने का लक्ष्य

मांझी का 100 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का बयान महज एक धमकी नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है। उन्होंने साफ किया कि उनकी पार्टी का लक्ष्य 2025 में एक मान्यता प्राप्त दल बनना है। इसके लिए किसी भी दल को या तो 8 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करनी होती है, या फिर राज्य में कुल वैध मतों का 6% वोट शेयर प्राप्त करना होता है। मांझी का तर्क है कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में उनके पास 10-15 हजार वोटर हैं। ऐसे में, अगर NDA उन्हें मनमुताबिक सीटें नहीं देती, तो 100 सीटों पर चुनाव लड़कर वे 6% वोट शेयर हासिल कर सकते हैं। यह आंकड़ा भले ही बड़ा लगे, लेकिन 'हम' के पास अपने कोर वोटर बेस और मांझी की राजनीतिक पैठ को देखते हुए, यह असंभव भी नहीं है।

इससे पहले 2 सितंबर को मांझी ने 30-40 सीटों पर लड़ने का दावा करते हुए कम से कम 20 विधायक विधानसभा भेजने की बात कही थी। उनका लक्ष्य विधानसभा में अपनी स्थिति मजबूत करते हुए भूमि और आवास योजना जैसे मुद्दों पर सरकार पर दबाव बनाना है, जो उनके गरीब और वंचित वोटरों के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह दिखाता है कि मांझी सिर्फ सीट बंटवारे के लिए दबाव नहीं बना रहे, बल्कि बिहार की सत्ता में अपनी राजनीतिक हैसियत और प्रभाव को बढ़ाना चाहते हैं।

NDA के भीतर की खामोश जंग: सीट बंटवारा और बढ़ते तनाव

जीतन राम मांझी का यह अल्टीमेटम ऐसे समय में आया है जब NDA के भीतर सीट बंटवारे को लेकर अंदरूनी चर्चाएं अपने चरम पर हैं। सूत्रों के अनुसार, सीटों के बंटवारे पर अंतिम सहमति लगभग बन चुकी है, लेकिन आधिकारिक घोषणा अभी बाकी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जनता दल (यूनाइटेड) को 102 सीटें, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 101 सीटें, और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 20 सीटें मिलने की उम्मीद है। वहीं, जीतन राम मांझी की 'हम' और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) को 10-10 सीटें मिल सकती हैं।

यह आंकड़ा मांझी की 15-20 सीटों की मांग से काफी कम है, जो इस टकराव का मूल कारण है। NDA के भीतर अन्य छोटे सहयोगियों की भी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। उपेंद्र कुशवाहा भी अपनी पार्टी के लिए सम्मानजनक सीटों की उम्मीद कर रहे हैं। ऐसे में, मांझी का तेवर NDA के लिए एक नई चुनौती खड़ी करता है। अगर मांझी अपनी मांग पर अड़े रहते हैं, तो NDA को या तो उनकी शर्तों को मानना होगा, या फिर उन्हें खोने का जोखिम उठाना होगा। दोनों ही सूरतों में, गठबंधन के भीतर तनाव बढ़ना तय है।

ब्राह्मणवाद पर हमला और गरीबों को प्रोत्साहन: मांझी की सामाजिक-राजनीतिक अपील

अपने बयान के दौरान, मांझी ने सामाजिक न्याय के मुद्दे पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने बिना नाम लिए कुछ नेताओं पर टिकट बेचने और पाला बदलने का आरोप लगाया। मांझी ने कहा कि उनकी पार्टी गरीबों को टिकट देती है, जबकि कुछ नेता पैसा देकर टिकट लेते हैं और बाद में दल बदल लेते हैं। उन्होंने ब्राह्मणवाद का विरोध करते हुए अपने समाज से चिन्हित उम्मीदवार को वोट देने की अपील की। यह उनकी पुरानी रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वे महादलित समुदाय के बीच अपनी पैठ मजबूत करते हैं और उन्हें यह अहसास दिलाते हैं कि वे ही उनके सच्चे प्रतिनिधि हैं। महादलितों के साथ बूथ स्तर पर अन्याय की बात कहकर उन्होंने अपने कोर वोट बैंक को लामबंद करने का प्रयास किया।

2020 का प्रदर्शन और 2025 की उम्मीदें

पिछले विधानसभा चुनाव (2020) में 'हम' ने NDA गठबंधन के तहत 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यह प्रदर्शन उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता को दर्शाता है। इस बार मांझी न सिर्फ प्रत्याशियों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं, बल्कि विधानसभा में अपने विधायकों की संख्या भी दोगुनी करना चाहते हैं। 2025 में 'हम' को मान्यता प्राप्त दल बनाने का उनका लक्ष्य, उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षाओं का स्पष्ट संकेत है।

बिहार की राजनीति का एक नया अध्याय

जीतन राम मांझी का यह अल्टीमेटम बिहार की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत देता है। NDA के भीतर सीट बंटवारे को लेकर चल रही खामोश जंग अब सार्वजनिक हो गई है। मांझी का 100 सीटों पर अकेले लड़ने का दांव, भले ही एक जुआ लगे, लेकिन यह NDA पर दबाव बनाने का उनका अंतिम प्रयास है।

अगर NDA मांझी को मनाने में विफल रहता है, तो 'हम' का अकेले चुनाव लड़ना बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल सकता है। यह न केवल NDA के वोट बैंक में सेंध लगाएगा, बल्कि महागठबंधन को भी इसका अप्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है। दूसरी ओर, अगर NDA मांझी की मांगों को स्वीकार करता है, तो उसे अन्य घटक दलों की महत्वाकांक्षाओं से निपटना होगा, और सीट बंटवारे का संतुलन बिठाना और भी मुश्किल हो जाएगा।

आने वाले दिन बिहार की राजनीति के लिए काफी दिलचस्प रहने वाले हैं। जीतन राम मांझी ने अपनी चाल चल दी है, अब देखना यह होगा कि NDA के रणनीतिकार इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं। क्या मांझी को उनकी मनचाही सीटें मिलेंगी, या वे बिहार की सियासी रणभूमि में अकेले उतरने का जोखिम उठाएंगे? इसका जवाब आने वाले महीनों में ही मिल पाएगा, लेकिन एक बात तय है कि 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव, सीट बंटवारे के इस 'अल्टीमेटम' के बाद और भी रोमांचक हो गया है।

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

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