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बिलासपुर नगर निगम: अनुकंपा नियुक्तियों पर बड़ा फैसला, 22 कर्मचारी प्रभावित
बिलासपुर नगर निगम में 22 कर्मचारियों की अनुकंपा नियुक्ति रद्द होने से हड़कंप मच गया है। यह फैसला इन कर्मचारियों के लिए एक बड़ा झटका है, जो पिछले कई सालों से नियमितीकरण की उम्मीद लगाए बैठे थे। इस निर्णय ने न केवल इन कर्मचारियों के भविष्य पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है, बल्कि नगर निगम की कार्यप्रणाली और अनुकंपा नियुक्ति नीतियों पर भी बहस छेड़ दी है।
एक अधूरी उम्मीद
यह मामला 2018 से चला आ रहा है, जब इन कर्मचारियों को अनुकंपा के आधार पर नगर निगम में नियुक्त किया गया था। अनुकंपा नियुक्ति का मूल उद्देश्य सरकारी सेवा में रहते हुए दिवंगत हुए कर्मचारी के परिवार को आर्थिक सहारा देना है। इन 22 कर्मचारियों ने भी इसी उम्मीद के साथ निगम में कार्यभार संभाला था कि एक दिन उन्हें नियमित कर दिया जाएगा और वे अपने दिवंगत परिजनों की जगह सरकारी सेवा का लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
हालांकि, उनकी यह उम्मीद कभी पूरी नहीं हो पाई। निगम प्रशासन ने उन्हें 'शासन से स्वीकृति की प्रत्याशा में' नियुक्त किया था, जिसका अर्थ था कि उनकी नियुक्ति तब तक अस्थाई मानी जाएगी जब तक राज्य सरकार से अंतिम अनुमोदन नहीं मिल जाता। दुर्भाग्यवश, यह अनुमोदन कभी नहीं आया।
वेतन का संकट और कानूनी लड़ाई
स्वीकृति न मिलने के कारण इन कर्मचारियों को नियमित वेतन का लाभ नहीं मिल पा रहा था। उन्हें प्लेसमेंट कर्मचारी के रूप में केवल 8-9 हजार रुपये प्रति माह मिल रहे थे, जबकि नियमित नियुक्ति पर उन्हें 22 हजार रुपये वेतन और पेंशन की सुविधा मिलती। इस विसंगति के कारण उन्हें गंभीर आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा।
आठ महीने तक वेतन न मिलने से उनकी स्थिति और भी दयनीय हो गई। बच्चों की स्कूल फीस और घरेलू खर्चों के लिए उन्हें ब्याज पर पैसे उधार लेने पड़े। बार-बार निगम प्रशासन से गुहार लगाने के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला, जिसके बाद कर्मचारियों ने न्याय के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने नियमित नियुक्ति और सेवा पुस्तिका संधारण की मांग को लेकर याचिका दायर की।
हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से पहले का निर्णय
उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई सोमवार को होनी थी। लेकिन इससे ठीक पहले, शनिवार को कर्मचारियों को डाक के माध्यम से उनकी नियुक्ति रद्द करने का आदेश भेज दिया गया। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब कर्मचारियों को न्यायिक राहत मिलने की उम्मीद थी, जिससे उन्हें गहरा सदमा पहुंचा है।
निगम कमिश्नर अमित कुमार ने पुष्टि की है कि इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया है क्योंकि शासन से स्वीकृति नहीं मिली थी। उन्होंने यह भी बताया कि जुलाई महीने तक का उनका लंबित वेतन प्लेसमेंट कर्मचारी के रूप में उनके खातों में जमा कर दिया गया है।
प्रभावित कर्मचारी: नाम और उनकी कहानी
जिन कर्मचारियों की अनुकंपा नियुक्ति रद्द की गई है, उनमें नीता ठाकुर, रन्नू उर्फ क्षमता, अन्नपूर्णा सोनी, प्रवेश परिहार, लक्ष्मी जानोकर, गीता श्रीवास, हसीना बानो, निलेश श्रीवास, अजीत कुमार, मोहम्मद युनूस खान, मीना पाल, बीना समुद्रे, शेख अमीन, विनोद डागोर, मीना तिवारी, रजनी गुप्ता, प्रदीप बघेल, शेखर मार्को, मोहम्मद युनूस, संजय कुमार और रेशमा मलिक शामिल हैं।
इनमें से प्रत्येक नाम के पीछे एक परिवार की कहानी है, जिसने अपने एक सदस्य को खोया है और दूसरे सदस्य ने सरकारी नौकरी के माध्यम से परिवार को सहारा देने की कोशिश की है। अब उनकी यह कोशिश अधूरी रह गई है।
आगे क्या? कर्मचारियों का भविष्य
इस निर्णय के बाद इन 22 कर्मचारियों का भविष्य अधर में लटक गया है। उन्हें प्लेसमेंट कर्मचारी के रूप में काम जारी रखना होगा, जिसमें उन्हें कम वेतन और कोई अन्य लाभ नहीं मिलेगा। नियमितीकरण की उनकी उम्मीदें टूट गई हैं।
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उच्च न्यायालय इस मामले पर क्या रुख अपनाता है, खासकर अब जब नियुक्ति रद्द करने का आदेश जारी कर दिया गया है। क्या कर्मचारी इस निर्णय को चुनौती देंगे? क्या उन्हें फिर से नियमितीकरण की कोई उम्मीद मिलेगी? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर आने वाले समय में स्पष्ट होंगे।
एक व्यापक मुद्दा: अनुकंपा नियुक्ति नीति
यह घटना केवल इन 22 कर्मचारियों का ही मुद्दा नहीं है, बल्कि यह अनुकंपा नियुक्ति की व्यापक नीति पर भी सवाल उठाती है। जब किसी कर्मचारी को 'प्रत्याशा में' नियुक्त किया जाता है, तो क्या इसकी कोई समय-सीमा होनी चाहिए? क्या सरकार को ऐसी नियुक्तियों को जल्द से जल्द अनुमोदित करना चाहिए ताकि कर्मचारियों को अनिश्चितता में न रहना पड़े?
यह मामला यह भी दर्शाता है कि सरकारी प्रक्रियाओं में देरी और लालफीताशाही कैसे व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित कर सकती है। यदि सरकार समय पर अपनी स्वीकृति दे देती, तो इन कर्मचारियों को इस स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता।
न्याय और मानवीय दृष्टिकोण की आवश्यकता
बिलासपुर नगर निगम का यह फैसला इन 22 परिवारों के लिए एक कड़वी सच्चाई है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि सरकारी नीतियों को लागू करते समय मानवीय दृष्टिकोण भी आवश्यक है। यह उम्मीद की जाती है कि सरकार और संबंधित अधिकारी इस मामले पर पुनर्विचार करेंगे और इन कर्मचारियों को न्याय दिलाने का प्रयास करेंगे, जिन्होंने सालों तक निगम की सेवा की है और अब खुद को अनिश्चित भविष्य के सामने खड़ा पा रहे हैं।
यह देखना बाकी है कि उच्च न्यायालय की आगामी सुनवाई में क्या होता है और क्या इन कर्मचारियों को अंततः राहत मिल पाती है। तब तक, यह घटना छत्तीसगढ़ में अनुकंपा नियुक्ति नीतियों और सरकारी कार्यप्रणाली पर एक महत्वपूर्ण बहस का विषय बनी रहेगी।
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