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न्याय के मंदिर में अन्याय का थप्पड़, सब इंस्पेक्टर निलंबित, जांच के आदेश
बरेली, उत्तर प्रदेश: न्याय के लिए थाने पहुंचे एक युवक को पुलिसकर्मी के गुस्से का शिकार होना पड़ा, जब एक सब इंस्पेक्टर ने कथित तौर पर उसकी जाति पूछने के बाद उसे थप्पड़ जड़ दिया. यह घटना बरेली के सिरौली थाना क्षेत्र की है, जहां मोबाइल चोरी की शिकायत लेकर आए एक युवक के साथ पुलिसकर्मी के इस अमानवीय व्यवहार का वीडियो सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया है. वीडियो सामने आते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया और आनन-फानन में एसएसपी बरेली अनुराग आर्य ने आरोपी सब इंस्पेक्टर सत्येंद्र सिंह यादव को निलंबित कर दिया. इस घटना ने एक बार फिर पुलिस के मानवीय चेहरे पर सवालिया निशान लगा दिया है.
क्या हुआ उस दिन?
मामला गुरुवार का है. संग्रामपुर गांव निवासी शीशपाल अपना मोबाइल चोरी होने की शिकायत दर्ज कराने सिरौली थाने पहुंचे थे. एक आम नागरिक की तरह वह भी पुलिस से न्याय की उम्मीद लेकर आया था, लेकिन उसे क्या पता था कि न्याय के इस मंदिर में उसे अपमान और हिंसा का सामना करना पड़ेगा. आरोप है कि थाने के मुख्य द्वार पर तैनात सब इंस्पेक्टर सत्येंद्र सिंह यादव ने शीशपाल से पहले उसके आने का कारण पूछा और फिर उसकी जाति जानने के बाद अपना आपा खो बैठे. प्रत्यक्षदर्शियों और वायरल वीडियो के अनुसार, एसआई ने गुस्से में शीशपाल के बाल पकड़े और उसे थप्पड़ जड़ दिए. इतना ही नहीं, उन्होंने पीड़ित युवक को 'नशेड़ी' कहकर भी अपमानित किया. यह पूरी घटना किसी ने अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर ली, और चंद घंटों में यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.
पुलिस प्रशासन की तत्काल कार्रवाई
वीडियो के वायरल होते ही, पुलिस विभाग में खलबली मच गई. बरेली के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) अनुराग आर्य ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्काल संज्ञान लिया. उन्होंने बिना किसी देरी के आरोपी सब इंस्पेक्टर सत्येंद्र सिंह यादव को निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया. एसएसपी आर्य ने इस बात पर जोर दिया कि पुलिस बल में किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार और खासकर जातिगत भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने मामले की गहन जांच के आदेश भी दिए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो.
क्षेत्राधिकारी (सीओ) अजय कुमार ने भी घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि सिरौली थाने में एक युवक को सब इंस्पेक्टर द्वारा थप्पड़ मारे जाने का मामला उनके संज्ञान में आया है. उन्होंने कहा, "वीडियो भी वायरल हुआ है, वीडियो को देखते हुए एसएसपी बरेली ने तत्काल उपनिरीक्षक सत्येंद्र सिंह को निलंबित कर दिया है और आगे की कार्रवाई की जा रही है."
एसआई सत्येंद्र सिंह यादव का रिकॉर्ड और पृष्ठभूमि
यह भी जानकारी सामने आई है कि सब इंस्पेक्टर सत्येंद्र सिंह यादव लंबे समय से सिरौली थाने में तैनात थे. हाल ही में उन्हें हेड कांस्टेबल से पदोन्नत कर दरोगा बनाया गया था. दो महीने पहले उनका तबादला मुरादाबाद हो गया था, लेकिन वह अभी भी सिरौली थाने में ही अपनी ड्यूटी कर रहे थे. यह सवाल भी उठता है कि आखिर ट्रांसफर होने के बावजूद वह इतने समय तक उसी थाने में क्यों बने रहे. क्या यह विभाग की लापरवाही है या फिर कुछ और? यह भी जांच का विषय है.
सार्वजनिक प्रतिक्रिया और स्थानीय लोगों का गुस्सा
इस घटना ने स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है. संग्रामपुर और आसपास के गांवों के लोगों ने पुलिस के इस व्यवहार की कड़ी निंदा की है और आरोपी दरोगा के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग की है. उनका कहना है कि पुलिस का काम जनता की रक्षा करना और उन्हें न्याय दिलाना है, न कि उनके साथ दुर्व्यवहार करना. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर भी अपनी नाराजगी व्यक्त की है, और न्याय की मांग की है. एक आम नागरिक ने अपनी पहचान न बताने की शर्त पर कहा, "अगर पुलिस ही जाति पूछकर थप्पड़ मारेगी तो हम न्याय के लिए किसके पास जाएंगे? यह बेहद शर्मनाक है."
न्याय की उम्मीद और भविष्य की दिशा
पुलिस ने आश्वासन दिया है कि मामले की जांच निष्पक्ष रूप से की जाएगी और दोषी पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई होगी. यह देखना होगा कि इस मामले में क्या कार्रवाई होती है और क्या पीड़ित शीशपाल को न्याय मिल पाता है. यह घटना सिर्फ एक सब इंस्पेक्टर के दुर्व्यवहार का मामला नहीं है, बल्कि यह पुलिस बल में व्याप्त कुछ गहरी समस्याओं की ओर भी इशारा करती है. जातिगत भेदभाव और सत्ता का दुरुपयोग, ये ऐसी बुराइयां हैं जिन्हें पुलिस विभाग से जड़ से खत्म करने की आवश्यकता है.
पुलिस को 'मित्र पुलिस' बनाने के लिए ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई करना और पुलिसकर्मियों को संवेदनशीलता का पाठ पढ़ाना अत्यंत आवश्यक है. इस घटना से यह सबक मिलता है कि जनता के प्रति सम्मान और निष्पक्षता ही पुलिस की सबसे बड़ी शक्ति है. अब देखना यह है कि पुलिस प्रशासन इस मामले में किस हद तक पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित कर पाता है, और क्या यह घटना पुलिस बल में एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत बन पाती है.
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