छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: मेडिकल प्रोफेसरों की सीधी भर्ती पर रोक, जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों पर भी सरकार तलब
बिलासपुर : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: मेडिकल प्रोफेसरों की सीधी भर्ती पर रोक, जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों पर भी सरकार तलब, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने हाल ही में दो महत्वपूर्ण मामलों में हस्तक्षेप कर राज्य सरकार को बड़े झटके दिए हैं। एक तरफ, जहां सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसरों के पदों पर सीधी भर्ती को रद्द कर दिया गया है, वहीं दूसरी ओर, राज्य की जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों और सहायता कल्याण अधिकारियों की कमी को लेकर सरकार से जवाब तलब किया गया है। ये दोनों ही फैसले राज्य की प्रशासनिक कार्यप्रणाली और जनहित के मुद्दों पर हाईकोर्ट की सक्रियता को दर्शाते हैं।
मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसरों की सीधी भर्ती पर रोक: पदोन्नति ही एकमात्र रास्ता
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा जारी उस अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसके तहत सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसरों के पदों पर सीधी भर्ती का प्रावधान किया गया था। इस फैसले ने राज्य के चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में एक नई बहस छेड़ दी है।
न्यायालय का स्पष्टीकरण: हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ तौर पर कहा है कि सेवा नियमों में ढील का उपयोग भर्ती की मूल प्रक्रिया को बदलने के लिए नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने जोर दिया कि प्रोफेसर के पद केवल पदोन्नति के माध्यम से ही भरे जाने चाहिए, न कि सीधी भर्ती से। यह फैसला उन अनुभवी और योग्य सहायक प्रोफेसरों और एसोसिएट प्रोफेसरों के लिए एक बड़ी राहत है जो लंबे समय से पदोन्नति का इंतजार कर रहे थे।
प्रभाव और आगे की राह: इस निर्णय के बाद छत्तीसगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसरों के पदों पर सीधी भर्ती अब संभव नहीं होगी। राज्य सरकार को अब इस मामले में अपने नियमों की समीक्षा करनी होगी और पदोन्नति प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाना होगा। इस फैसले का दूरगागामी असर चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता और डॉक्टरों की करियर प्रगति पर भी पड़ सकता है।
जेलों में क्षमता से अधिक कैदी और अधिकारी कमी: हाईकोर्ट ने सरकार को घेरा
एक अन्य महत्वपूर्ण सुनवाई में, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्य की जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों और वरिष्ठ सहायता कल्याण अधिकारियों की कमी के मामले पर राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। यह मामला मानवाधिकारों और जेल सुधारों की दिशा में गंभीर सवाल खड़े करता है।
सरकार का जवाब और हाईकोर्ट का रुख: मंगलवार को हुई सुनवाई में, राज्य शासन ने हाईकोर्ट को बताया कि प्रदेश की पांच सेंट्रल जेलों में से केवल दो में ही सहायता कल्याण अधिकारी कार्यरत हैं, जबकि शेष तीन में नियुक्तियां की जानी हैं। याचिकाकर्ता शिवराज सिंह के अधिवक्ता ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि नियमानुसार प्रदेश के सभी जिला जेलों में सहायता अधिकारी होना अनिवार्य है।
मुख्य न्यायाधीश की डिवीजन बेंच का निर्देश: इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की डिवीजन बेंच ने राज्य शासन को "उचित कदम उठाने" का निर्देश दिया है। इसके साथ ही, न्यायालय ने सरकार से 8 दिसंबर तक एक शपथ पत्र के माध्यम से विस्तृत जवाब भी मांगा है।
अंडरग्राउंड समस्या: यह मुद्दा तब और गंभीर हो जाता है जब पता चलता है कि राज्य की जेलों में, जिनकी कुल क्षमता लगभग 15,000 कैदियों की है, वर्तमान में 20,500 से अधिक कैदी बंद हैं। यह स्थिति न केवल कैदियों के लिए अमानवीय है बल्कि जेल प्रशासन के लिए भी एक बड़ी चुनौती है।
न्यायालय का स्वतः संज्ञान: जनहित में सक्रियता
जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के बंद होने के मामले को बिलासपुर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान में लिया है, जो कि न्यायालय की जनहित में सक्रियता को दर्शाता है।
जनहित याचिका के रूप में सुनवाई: मुख्य न्यायाधीश की डिवीजन बेंच ने बुधवार को इस मामले को एक जनहित याचिका के रूप में सुना। इस दौरान, हाईकोर्ट ने सरकार से एक "ताजा हलफनामा" (फ्रेस एफिडेविट) प्रस्तुत करने की मांग की, जिसमें इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए उठाए गए कदमों का विस्तृत ब्यौरा हो।
अगली सुनवाई: अब इस मामले में अगली सुनवाई तीन सप्ताह के बाद होगी, जिसमें राज्य सरकार को अपने जवाब और समाधान के साथ उपस्थित होना होगा। उम्मीद है कि हाईकोर्ट के इस हस्तक्षेप से राज्य की जेलों की स्थिति में सुधार आएगा और कैदियों के मानवाधिकारों का उचित संरक्षण सुनिश्चित हो पाएगा।