छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट सख्त: हाईवे पर मवेशियों से हो रहे हादसों पर सरकार को लगाई फटकार, स्थायी समाधान के निर्देश

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाईवे और शहरों में आवारा मवेशियों के कारण लगातार हो रही दुर्घटनाओं और मौतों पर कड़ी नाराजगी जताई है। चीफ जस्टिस ने सरकार से केवल कागजी योजनाओं के बजाय ठोस और स्थायी समाधान निकालने को कहा है। जानें कोर्ट के सख्त निर्देश और समस्या की गंभीरता।

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"सिर्फ कागजों पर नहीं, सड़कों पर दिखें इंतजाम!" - हाईकोर्ट ने आवारा मवेशियों से हादसों पर सरकार को लताड़ा

चीफ जस्टिस बोले- "योजनाएं बनाकर बैठने से नहीं चलेगा काम, स्थायी समाधान करे सरकार", बिलासपुर में सुनवाई के दौरान कड़ा रुख

बिलासपुर, छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शहर और राष्ट्रीय राजमार्गों पर आवारा मवेशियों के कारण लगातार बढ़ रहे हादसों और बेगुनाह मौतों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए राज्य सरकार और प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सरकार केवल योजनाएं (schemes) और मानक संचालन प्रक्रियाएं (SOPs) बनाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती। जब तक इन योजनाओं का धरातल पर सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं होगा, तब तक सड़कें हादसों का जाल बनी रहेंगी और इंसान व मवेशियों दोनों की अकाल मृत्यु का सिलसिला जारी रहेगा।

क्यों आई हाईकोर्ट की नाराजगी?

दरअसल, प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से लगातार यह खबरें आ रही हैं कि हाईवे और शहरी सड़कों पर अचानक मवेशियों के आ जाने से गंभीर दुर्घटनाएं हो रही हैं। इन हादसों में न केवल वाहन चालक और यात्री अपनी जान गंवा रहे हैं, बल्कि सैकड़ों बेसहारा मवेशी भी कुचलकर मर रहे हैं। हाल के दिनों में ऐसी कई दर्दनाक घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें जयरामनगर रोड पर ट्रेलर से 14 मवेशियों का कुचला जाना (10 की मौत), गतौरा में 8 मवेशियों की मौत और बोदरी क्षेत्र में मवेशियों के झुंड से ट्रैफिक जाम और दुर्घटनाओं का बढ़ना शामिल है। इन घटनाओं ने जनमानस को झकझोर कर रख दिया है और सरकार के ढीले रवैये पर सवाल खड़े किए हैं।

कोर्ट ने पूछे तीखे सवाल:

सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने अधिकारियों के काम करने के तरीके पर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि अधिकारी केवल "दिखाने के लिए" पेट्रोलिंग और मवेशी हटाने की कार्रवाई न करें, बल्कि इस गंभीर समस्या का एक स्थायी समाधान खोजें। हाईकोर्ट ने सवाल किया कि मवेशियों को गौठान या चारागाह में भेजने की व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सभी चीजें सिर्फ कागजों पर हो रही हैं, जबकि जमीन पर "प्रैक्टिकली कुछ नहीं" हो रहा है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि मवेशियों को हटाने के लिए जिस SOP की बात की गई थी, उसका पालन क्यों नहीं किया जा रहा है? प्रदेश में बने चारागाह और गौठान जैसी सुविधाओं का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा?

कोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI), छत्तीसगढ़ शासन, बिलासपुर कलेक्टर और नगर निगम को इस संबंध में शपथपत्र पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

शासन के जवाब और कोर्ट के निर्देश:

शासन की ओर से सुनवाई के दौरान बताया गया कि रतनपुर से होकर NH-130 पर मवेशी मंच और शेड का निर्माण किया गया है। इसी तरह बिलासपुर-पथरापाली खंड के भीतर पेंड्रीडीह में भी मवेशी मंच बनाया गया है। इन मंचों का उद्देश्य आवारा मवेशियों के लिए एक निर्धारित सुरक्षित क्षेत्र प्रदान करना है, ताकि उन्हें राजमार्गों पर भटकने से रोका जा सके।

राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने यह भी तर्क दिया कि मवेशी हटाने और जियो-टैगिंग की शुरुआत चरणबद्ध तरीके से नगर पालिका स्तर से करनी पड़ेगी, जैसा कि उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में सफलतापूर्वक किया गया है।

हालांकि, हाईकोर्ट इन दलीलों से संतुष्ट नहीं दिखा। कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं, जिनका पालन करने के लिए सरकार को कहा गया है। इन निर्देशों में शामिल हो सकते हैं:

  • आवारा मवेशियों को सड़कों से हटाकर निर्धारित गौठानों या चारागाहों तक पहुंचाने के लिए एक प्रभावी और सतत तंत्र विकसित करना।

  • मवेशियों की जियो-टैगिंग और उनकी पहचान सुनिश्चित करने की प्रक्रिया को तेज करना।

  • सड़कों पर मवेशियों की उपस्थिति को रोकने के लिए पेट्रोलिंग और निगरानी को मजबूत करना, खासकर रात के समय।

  • गौठान और चारागाह योजनाओं को केवल कागजों पर नहीं, बल्कि धरातल पर सफलतापूर्वक लागू करना और उनकी नियमित निगरानी करना।

  • इस समस्या से निपटने के लिए विभिन्न विभागों (नगर निगम, राजस्व, पशुधन विभाग, पुलिस) के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना।

किसानों की नाराजगी और ठप योजनाएं:

इस समस्या से सिर्फ सड़क उपयोगकर्ता ही नहीं, बल्कि किसान भी परेशान हैं। किसानों ने आवारा मवेशियों द्वारा फसल नुकसान और राज्य की कई गौशाला योजनाओं के ठप होने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। उनका कहना है कि जब मवेशियों के लिए पर्याप्त चारागाह या गौठान नहीं होंगे, तो वे सड़कों पर भटकने को मजबूर होंगे।

हाईकोर्ट की यह सख्त टिप्पणी और निर्देश, राज्य सरकार के लिए एक वेक-अप कॉल है। अब यह सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वे केवल बयानबाजी या कागजी कार्रवाई तक सीमित न रहें, बल्कि एक ठोस और प्रभावी कार्ययोजना के साथ इस विकट समस्या का स्थायी समाधान निकालें। यह न केवल सड़क सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि बेसहारा मवेशियों के कल्याण और किसानों की फसलों की सुरक्षा के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। उम्मीद है कि हाईकोर्ट की इस सख्ती के बाद सड़कों से मवेशियों का खतरा कम होगा और "सांप मरा नहीं, पर उसका डंक निकल गया" की तर्ज पर भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के खिलाफ भी एक नजीर पेश होगी।

 

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

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