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छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नि:शक्त जन संस्थान अस्पताल घोटाला मामले में हाईकोर्ट ने CBI जांच का आदेश दिया। 6 IAS सहित 15 अधिकारियों पर लगे हैं गंभीर आरोप। जानें कैसे हुआ यह 'कागजी' घोटाला और क्या हैं इसके दूरगामी परिणाम।

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छत्तीसगढ़ का 'हजार करोड़' एनजीओ घोटाला: हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, CBI जांच के घेरे में 6 IAS
छत्तीसगढ़ का 'हजार करोड़' एनजीओ घोटाला: हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, CBI जांच के घेरे में 6 IAS

छत्तीसगढ़ के 'स्टेट रिसोर्स सेंटर' की परतें उघेड़ेंगी CBI: हजार करोड़ के घोटाले में हाईकोर्ट का ऐतिहासिक आदेश, 6 IAS सहित 15 अधिकारी जांच के दायरे में

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में हलचल मचा देने वाले 'राज्य स्त्रोत नि:शक्त जन संस्थान अस्पताल घोटाला' मामले में आज छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने इस बहुचर्चित और हजारों करोड़ रुपये के कथित घोटाले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपने का आदेश दिया है। इस फैसले के बाद राज्य के छह वर्तमान और सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारियों सहित कुल 15 उच्च पदस्थ अफसर सीबीआई जांच के घेरे में आ गए हैं, जिसने प्रदेश में भूचाल ला दिया है।

'कागजी' अस्पताल और 'फर्जी' संस्था: कैसे बुना गया हजारों करोड़ का जाल?

यह मामला सिर्फ वित्तीय अनियमितता का नहीं, बल्कि एक संगठित और सुनियोजित अपराध का जीवंत उदाहरण प्रतीत होता है, जहां एक ऐसी संस्था के नाम पर करोड़ों रुपये का गबन किया गया, जिसका वास्तव में कोई अस्तित्व ही नहीं था। 'राज्य स्त्रोत नि:शक्त जन संस्थान' नामक एक कथित अस्पताल के नाम पर दस्तावेजों में खेल किया गया, करोड़ों की मशीनें खरीदी गईं, और उनके रखरखाव के नाम पर भी सरकारी खजाने से बड़ी रकम खर्च की गई, जबकि जमीन पर ऐसा कोई संस्थान सक्रिय रूप से कार्यरत नहीं था।

इस पूरे घोटाले की नींव 2017 में रायपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर द्वारा दायर एक जनहित याचिका से पड़ी। ठाकुर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि राज्य के कुछ वर्तमान और सेवानिवृत्त IAS अधिकारियों ने एक एनजीओ के नाम पर करोड़ों रुपये का घोटाला किया है। उनकी याचिका में जो तथ्य सामने आए, वे चौंकाने वाले थे।

याचिकाकर्ता की चौंकाने वाली खोज: खुद को मिला 'कागजी' वेतन

कुंदन सिंह ठाकुर को शुरुआत में खुद भी यह जानकारी मिली कि उन्हें इसी कथित अस्पताल में कर्मचारी बताकर वेतन तक दिया जा रहा है, जबकि वह वहां कार्यरत नहीं थे। इस पर संदेह होने पर उन्होंने सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत जानकारी मांगी। जो खुलासा हुआ, वह बेहद भयावह था। RTI से पता चला कि नया रायपुर में जिस अस्पताल की बात की जा रही थी, उसे एक एनजीओ चला रहा है, और इस एनजीओ के नाम पर बैंक ऑफ इंडिया और एसबीआई मोतीबाग की शाखाओं में फर्जी आधार कार्डों के जरिए खाते खोलकर करोड़ों रुपये निकाले गए थे। यह धोखाधड़ी का एक ऐसा जाल था, जिसमें सरकार के शीर्ष अधिकारी भी कथित तौर पर शामिल थे।

मुख्य सचिव की स्वीकारोक्ति और कोर्ट का कड़ा रुख

इस मामले की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सुनवाई के दौरान राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने अदालत में एक शपथ पत्र दाखिल कर यह स्वीकार किया था कि इस मामले में 150 से 200 करोड़ रुपये तक की गड़बड़ियां हुई हैं। हाईकोर्ट ने इस स्वीकारोक्ति को बेहद गंभीरता से लिया। जस्टिस पीपी साहू और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि जिसे राज्य के मुख्य सचिव 'गलतियां' और 'त्रुटियां' बता रहे हैं, वह वास्तव में एक संगठित और सुनियोजित अपराध है। यह टिप्पणी इस बात को रेखांकित करती है कि अदालत ने इस मामले को कितनी गंभीरता से लिया है।

कौन हैं वो 'अधिकारी' जो सीबीआई के रडार पर?

याचिका में जिन छह IAS अधिकारियों के नाम प्रमुखता से उजागर किए गए हैं, उनमें आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती शामिल हैं। इनके अलावा सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा जैसे कई अन्य अधिकारियों पर भी प्रारंभिक तौर पर गंभीर आरोप सही पाए गए हैं। इन सभी अधिकारियों ने हाईकोर्ट के निर्देश पर अपने जवाब भी प्रस्तुत किए थे।

कोर्ट ने इस मामले को स्थानीय एजेंसियों या पुलिस से जांच कराने के लिए अनुपयुक्त माना। अदालत ने कहा कि इतने बड़े पैमाने पर हुए घोटाले और इसमें शामिल उच्च पदस्थ अधिकारियों को देखते हुए, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई ही एकमात्र विकल्प है।

CBI जांच की राह: 15 दिनों में दस्तावेज जब्त कर शुरू होगी कार्रवाई

हाईकोर्ट ने सीबीआई को 15 दिनों के भीतर इस मामले से संबंधित सभी आवश्यक दस्तावेज जब्त कर जांच शुरू करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न केवल घोटाले की गहराई तक जाने का मार्ग प्रशस्त करेगा, बल्कि उन सभी दोषियों को कटघरे में खड़ा करने की उम्मीद जगाता है, जिन्होंने निःशक्तजनों के नाम पर सरकारी खजाने को चूना लगाया।

यह घोटाला, जो 2004 से 2018 के बीच 10 साल से अधिक समय तक चला, अनुमानतः 1000 करोड़ रुपये से अधिक का वित्तीय नुकसान राज्य को पहुंचा चुका है। याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ठाकुर ने लगातार इस लड़ाई को लड़ा है, और आज हाईकोर्ट का यह फैसला उनकी मेहनत और न्याय प्रणाली पर भरोसे की जीत है।

आगे क्या? राजनीतिक गलियारों में खलबली और प्रशासनिक सुधार की उम्मीद

इस फैसले के बाद छत्तीसगढ़ के राजनीतिक गलियारों में खलबली मच गई है। जिन अधिकारियों के नाम सामने आए हैं, उनमें से कुछ वर्तमान में भी महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं या सेवानिवृत्त होने के बाद भी उनका प्रभाव बना हुआ है। सीबीआई जांच शुरू होने से कई और चौंकाने वाले खुलासे होने की संभावना है, जिससे राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है।

यह मामला केवल भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को भी उजागर करता है। उम्मीद है कि सीबीआई की गहन जांच इस संगठित अपराध के हर पहलू को उजागर करेगी और भविष्य में ऐसे घोटालों को रोकने के लिए एक मजबूत संदेश देगी। निःशक्तजनों के कल्याण के लिए आवंटित धन का दुरुपयोग करने वालों को न्याय के कटघरे में खड़ा करना अत्यंत आवश्यक है, और हाईकोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब सभी की निगाहें सीबीआई पर टिकी हैं कि वह कितनी जल्द और कितनी प्रभावी तरीके से इस जटिल मामले की तह तक पहुंच पाती है।

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