छत्तीसगढ़ कांग्रेस में अंदरूनी कलह: गुटबाजी और बयानों की 'आग' से सुलगती पार्टी का भविष्य

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर घमासान तेज, महंत, सिंहदेव और चौबे के बयानों ने बढ़ाई गुटबाजी। जानें कैसे 'सामूहिक नेतृत्व' का नारा बिखर रहा है और लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की चुनौतियां।

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छत्तीसगढ़ कांग्रेस में नेतृत्व की 'खींचतान': हार के बाद और गहराया घमासान, क्या एकजुटता एक मिथक?

रायपुर : नवंबर 2023 के विधानसभा चुनावों और हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस एक बार फिर गहरे आंतरिक संकट से जूझ रही है। प्रदेश में नेतृत्व को लेकर चल रही वर्चस्व की लड़ाई, शीर्ष नेताओं के बीच सार्वजनिक बयानबाजी और गुटबाजी ने पार्टी को इस कदर जकड़ लिया है कि उसकी वापसी की राह और भी कठिन होती दिख रही है। जिस समय विपक्ष के रूप में कांग्रेस को एक मजबूत और एकजुट आवाज बनकर उभरना चाहिए, उसी समय उसके अपने नेता एक-दूसरे पर परोक्ष रूप से निशाना साध रहे हैं, जिससे सत्ताधारी भाजपा को हमला करने का एक और अवसर मिल रहा है।

सार्वजनिक मंच पर फूट की तस्वीरें

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पिछले कुछ महीनों में, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं - नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, और पूर्व मंत्री रविंद्र चौबे - के बयानों ने प्रदेश कांग्रेस में जारी गुटबाजी को जबरदस्त हवा दी है। इन बयानों ने न केवल कार्यकर्ताओं के मनोबल को प्रभावित किया है, बल्कि आलाकमान के लिए भी एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है, जो 'सामूहिक नेतृत्व' के मंत्र को दोहराता रहा है।

घटनाओं की एक श्रृंखला ने इस आंतरिक संघर्ष को सार्वजनिक कर दिया है:

  • महंत का 'सिंहदेव' दांव (4 फरवरी): निकाय चुनाव प्रचार के लिए अंबिकापुर पहुंचे डॉ. चरणदास महंत ने खुलकर कहा कि अगला विधानसभा चुनाव 'महाराज' (टीएस सिंहदेव) के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। उन्होंने हार का ठीकरा 'एकजुटता न होने' पर फोड़ा। यह बयान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पीसीसी चीफ दीपक बैज के नेतृत्व पर एक परोक्ष सवाल था।

  • चौबे का 'भूपेश' प्रेम (23 अगस्त): पूर्व सीएम भूपेश बघेल के जन्मदिन पर पूर्व मंत्री रविंद्र चौबे ने सार्वजनिक रूप से इच्छा व्यक्त की कि भूपेश बघेल ही कांग्रेस का नेतृत्व करें। उन्होंने दावा किया कि जनता चाहती है कि बघेल ही भाजपा के 'कुशासन' और 'मोदी की गारंटी' का मुकाबला करें। यह बयान सीधे तौर पर पीसीसी चीफ दीपक बैज के अधिकार को चुनौती देता प्रतीत हुआ।

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    बैज का 'महाज्ञानी' पलटवार (24 अगस्त): इन बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए पीसीसी चीफ दीपक बैज ने रविंद्र चौबे को 'वरिष्ठ और महाज्ञानी नेता' करार देते हुए तंज कसा। उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष के बयान का हवाला दिया कि कांग्रेस 'कलेक्टिव लीडरशिप' के साथ ही आगे बढ़ेगी। यह स्पष्ट रूप से नेताओं को व्यक्तिगत बयानबाजी से बचने की नसीहत थी।

  • सिंहदेव की 'घोषणा पत्र' पर हार (1 सितंबर): पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव ने महासमुंद में अपनी और पार्टी की हार का एक बड़ा कारण 'घोषणा पत्र के वादों को पूरा न कर पाना' बताया, जिसमें एनएचएम के नियमितीकरण का मुद्दा प्रमुख था। यह बयान सीधे तौर पर पूर्व भूपेश बघेल सरकार के कामकाज पर एक सवाल था।

  • बघेल का 'वोट चोरी' तर्क (10 सितंबर): इसी कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सार्वजनिक मंचों से अपनी हार के लिए 'कामकाज की कमी' के बजाय 'वोट चोरी' को जिम्मेदार ठहराने की अपील की। यह सिंहदेव के बयान का सीधा खंडन था और यह दिखाता है कि हार के कारणों पर भी नेता एकमत नहीं हैं।

  • महंत की 'चमचा' टिप्पणी (3 सितंबर): नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने राजीव भवन में बैठक की बातें बाहर जाने पर नाराजगी जताई और कहा कि ऐसी चीजें नेताओं के 'चमचों' के कारण होती हैं, जो किसी को प्रदेश अध्यक्ष तो किसी को मुख्यमंत्री बना रहे हैं।

  • डहरिया का 'कांग्रेस के चमचे' बयान (9 सितंबर): इसके जवाब में, पूर्व मंत्री शिव डहरिया ने प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट की मौजूदगी में कहा कि कार्यकर्ता किसी नेता के नहीं, बल्कि 'कांग्रेस के चमचे' हैं। यह बयान चमचा संस्कृति की आलोचना के साथ-साथ नेताओं को संयम बरतने की भी नसीहत थी।

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    बिलासपुर में 'माइक छीने जाने' की घटना (9 सितंबर): बिलासपुर में एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व मंत्री अमरजीत भगत से माइक छीनने की घटना ने गुटबाजी को सार्वजनिक रूप से उजागर कर दिया, जब विजय जांगिड़ ने उनसे माइक छीन ली और भगत मंच से दूर चले गए।

हार के बाद बढ़ी रस्साकशी

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में 2018 में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में उसे सत्ता गंवानी पड़ी। इसके बाद 2024 के लोकसभा चुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जहां वह राज्य की 11 में से केवल 1 सीट ही जीत पाई। इन लगातार हारों ने पार्टी के भीतर आत्मनिरीक्षण और बदलाव की मांग को तेज कर दिया है। पीसीसी चीफ दीपक बैज को बदलने की चर्चाएं लगातार हो रही हैं, और यही वह बिंदु है जहां से वर्चस्व की लड़ाई और मुखर हो गई है।

कार्यकर्ताओं के एक बड़े वर्ग का मानना है कि इन गुटबाजी और बयानों से पार्टी की छवि को नुकसान पहुंच रहा है। एक तरफ भाजपा 'परिवारवाद' और 'अंतर्कलह' को लेकर कांग्रेस पर हमलावर है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के अपने नेता उसे ऐसे मौके दे रहे हैं।

आगे की राह: क्या आलाकमान हस्तक्षेप करेगा?

वर्तमान स्थिति कांग्रेस आलाकमान के लिए एक बड़ी चुनौती है। 'सामूहिक नेतृत्व' का नारा तब तक खोखला लगता है जब तक कि प्रमुख नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते रहें। यदि कांग्रेस को 2025 के नगरीय निकाय चुनावों और उसके बाद 2028 के विधानसभा चुनावों में वापसी करनी है, तो उसे सबसे पहले अपनी आंतरिक कलह पर लगाम लगानी होगी।

पार्टी के भीतर एक मजबूत और प्रभावी नेतृत्व की आवश्यकता है जो सभी गुटों को एक साथ ला सके और एक साझा रणनीति के साथ आगे बढ़ सके। राष्ट्रीय नेतृत्व को इस मुद्दे पर तत्काल और निर्णायक हस्तक्षेप करना होगा, ताकि छत्तीसगढ़ कांग्रेस एकजुट होकर विपक्षी की भूमिका निभा सके और जनता का विश्वास फिर से जीत सके। अन्यथा, यह अंदरूनी कलह पार्टी के लिए एक स्थायी समस्या बन सकती है, जो उसके भविष्य की संभावनाओं को धूमिल कर देगी।

सवाल यह है कि क्या कांग्रेस इस चुनौती से उबर पाएगी या फिर यह गुटबाजी उसकी बची-खुची राजनीतिक पूंजी को भी स्वाहा कर देगी? इसका जवाब अगले कुछ महीनों में नेताओं के आचरण और आलाकमान के फैसलों में छिपा है।

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

Dr. Tarachand Chandrakar is a respected journalist with decades of experience in reporting and analysis. His deep knowledge of politics, society, and regional issues brings credibility and authority to Nidar Chhattisgarh. Known for his unbiased reporting and people-focused journalism, he ensures that readers receive accurate and trustworthy news.

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