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छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए नया नियम: ₹3100 प्रति क्विंटल धान बेचने को एग्रीस्टैक पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य! जानें पूरी प्रक्रिया और चुनौतियाँ

छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य पर धान बेचने के लिए अब किसानों को राज्य पंजीयन के साथ केंद्र के एग्रीस्टैक पोर्टल पर भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा। जानिए क्या है एग्रीस्टैक, इसकी अनिवार्यता और किसानों के सामने आ रही चुनौतियाँ। कोरबा के किसानों की शिकायतों और समाधान की कहानी।

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किसानों की राह पर 'डिजिटल' रोड़ा? छत्तीसगढ़ में धान बेचने को एग्रीस्टैक पर नया पंजीयन अनिवार्य, ₹3100 का समर्थन मूल्य पाने के लिए अब 'डबल रजिस्ट्रेशन' की जद्दोजहद

रायपुर : अन्नदाता को फसल का उचित मूल्य मिले, यह सुनिश्चित करना सरकारों की प्राथमिकता रही है। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ सरकार किसानों से ₹3100 प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदती है, जो देश में सर्वाधिक समर्थन मूल्यों में से एक है। लेकिन अब इस आकर्षक मूल्य को प्राप्त करने की प्रक्रिया में एक नया मोड़ आ गया है। राज्य सरकार के सहकारिता विभाग में पहले से पंजीकृत किसानों को अब केंद्र सरकार के एग्रीस्टैक पोर्टल पर भी नया पंजीयन कराना अनिवार्य होगा। यह दोहरी पंजीयन प्रक्रिया किसानों के लिए एक नई चुनौती बनकर उभरी है, खासकर उन ग्रामीण और आदिवासी अंचलों के किसानों के लिए, जो डिजिटल साक्षरता की कमी और तकनीकी जटिलताओं से जूझ रहे हैं।

'एक भारत, एक कृषि डेटा' की ओर एग्रीस्टैक: क्या है इसका मकसद?

भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एग्रीस्टैक पोर्टल दरअसल भारतीय कृषि क्षेत्र के डिजिटलीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसका मुख्य उद्देश्य देश भर के किसानों का एक एकीकृत डिजिटल डेटाबेस तैयार करना है। इस डेटाबेस में किसानों की पहचान, उनके स्वामित्व वाली भूमि का रिकॉर्ड, उनकी आय का विवरण, लिए गए ऋण और फसल बीमा संबंधी सभी महत्वपूर्ण जानकारी एक जगह संग्रहीत होती है।

यह पोर्टल हर किसान को एक विशिष्ट डिजिटल पहचान प्रदान करता है, जिससे सरकार को कृषि-केंद्रित योजनाओं को अधिक कुशलता से बनाने और लागू करने में मदद मिलती है। इसका लक्ष्य है कि योजनाओं का लाभ सीधे और सही लाभार्थी तक पहुंचे, पारदर्शिता बढ़े और कृषि क्षेत्र में डेटा-आधारित निर्णय लेने को बढ़ावा मिले। सिद्धांत रूप में, यह एक प्रगतिशील पहल है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसके क्रियान्वयन में किसानों को कई व्यवहारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

छत्तीसगढ़ में अनिवार्यता: क्यों और कब से?

छत्तीसगढ़ में धान और अन्य खरीफ फसलों को समर्थन मूल्य पर बेचने वाले किसानों के लिए एग्रीस्टैक पोर्टल पर पंजीकरण कराना अब अनिवार्य कर दिया गया है। बिना इस नए पंजीकरण के, किसान अपनी फसलें समर्थन मूल्य पर नहीं बेच पाएंगे, जिससे उन्हें बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह निर्देश ऐसे समय में आया है जब राज्य में धान खरीदी की तैयारियां शुरू होने वाली हैं, और किसानों को जल्द से जल्द यह नया पंजीकरण कराना होगा।

डबल इंजन की सरकार में 'डबल पंजीयन' का सवाल!

किसानों का एक बड़ा वर्ग इस दोहरी पंजीयन प्रक्रिया पर सवाल उठा रहा है। कोरबा जिले के खरमोरा गांव के किसान भोजराम देवांगन कहते हैं, "मेरा पहले से ही कृषि और सहकारिता विभाग में पंजीयन है। मैंने पिछले साल धान बेचा था और इस साल भी समिति से खाद-बीज लिया है। जब मेरा सारा डेटा पहले से ही सरकार के पास है, तो बार-बार नए-नए पोर्टल पर पंजीयन की क्या जरूरत है? डबल इंजन की सरकार में जब एक बार पंजीयन हो गया, तो वही डेटा केंद्र सरकार को भेज देना चाहिए।"

यह सवाल वाजिब है। जब राज्य सरकार के पास किसानों का पूरा डेटा मौजूद है, तो उसे केंद्र के पोर्टल से सीधे एकीकृत क्यों नहीं किया जा सकता? इस जटिलता से खासकर कोरबा जैसे आदिवासी बहुल जिलों में किसानों को काफी परेशानी हो रही है, जहां ऑनलाइन माध्यम से पंजीयन कराना एक दुर्गम प्रक्रिया बन जाती है। अधिकांश किसान हाईटेक नहीं होते और खेती-किसानी में ही व्यस्त रहते हैं, ऐसे में उनके लिए साइबर कैफे या कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) पर जाकर यह प्रक्रिया पूरी करना समय और पैसे दोनों की बर्बादी जैसा है।

कोरबा के 9 गांवों की शिकायत: जब पोर्टल पर ही नहीं था गांव का नाम!

एग्रीस्टैक पोर्टल की जटिलता और शुरुआती तकनीकी खामियों का एक बड़ा उदाहरण कोरबा जिले से सामने आया है। नगर पालिक निगम क्षेत्र के 9 गांव, जहां बड़ी संख्या में किसान खेती करते हैं, उनके नाम शुरुआत में एग्रीस्टैक पोर्टल पर दर्ज ही नहीं थे। इससे इन गांवों के किसानों का पंजीयन नहीं हो पा रहा था और वे धान विक्रय को लेकर असमंजस की स्थिति में थे।

इन गांवों के किसानों ने एकजुट होकर कलेक्टर अजीत वसंत से लिखित शिकायत की थी। शिकायत में दादरखुर्द, खरमोरा, ढेलवाडीह, बरबसपुर, रिस्दी, झगरहा, रिस्दा, रूमगरा और रामपुर जैसे गांवों के नाम का उल्लेख करते हुए बताया गया था कि कृषि एवं राजस्व अधिकारियों से भी उन्हें कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पा रही है।

प्रशासनिक पहल से समस्या का समाधान:

कलेक्टर से शिकायत मिलने के बाद कृषि विभाग और जिला प्रशासन हरकत में आया। कृषि विकास विस्तार अधिकारी संजय पटेल ने बताया कि कलेक्टर के निर्देश पर इस समस्या का समाधान किया गया है। अब ये गांव के नाम एग्रीस्टैक पोर्टल से संबंधित समितियों में प्रदर्शित हो रहे हैं, जिससे किसानों का पंजीयन संभव हो पाएगा। हालांकि, इस प्रक्रिया में किसानों को जो मानसिक तनाव और भागदौड़ करनी पड़ी, वह उनकी परेशानी को दर्शाता है।

पंजीयन कैसे करें? उपलब्ध विकल्प:

एग्रीस्टैक पोर्टल पर पंजीयन के लिए किसानों के पास कुछ विकल्प उपलब्ध हैं:

  • कॉमन सर्विस सेंटर (CSC): किसान अपने नजदीकी कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) पर जाकर अपना पंजीकरण करा सकते हैं। यहाँ उन्हें मामूली शुल्क पर आवश्यक सहायता मिल जाएगी।

  • धान खरीदी केंद्र: सरकार ने धान खरीदी केंद्रों पर भी यह सुविधा उपलब्ध कराने का दावा किया है। किसान इन केंद्रों पर भी जाकर अपना पंजीकरण करवा सकते हैं।

आगे की राह और उम्मीदें:

एग्रीस्टैक पोर्टल का मूल विचार प्रशंसनीय है, जो भारतीय कृषि को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने की क्षमता रखता है। लेकिन इसके सफल क्रियान्वयन के लिए जमीनी स्तर पर किसानों की चुनौतियों को समझना और उन्हें दूर करना आवश्यक है।

  • जागरूकता अभियान: किसानों को इस नए पंजीयन के महत्व और प्रक्रिया के बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।

  • सरल प्रक्रिया: पंजीयन प्रक्रिया को यथासंभव सरल और सुलभ बनाया जाना चाहिए, खासकर उन किसानों के लिए जो डिजिटल रूप से कम साक्षर हैं।

  • एकल खिड़की समाधान: भविष्य में ऐसी व्यवस्था बनाने की आवश्यकता है जहां किसानों को बार-बार अलग-अलग पोर्टलों पर पंजीयन न कराना पड़े, बल्कि राज्य और केंद्र के डेटाबेस का एकीकरण हो।

  • तकनीकी सहायता: ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को ऑनलाइन पंजीयन में मदद करने के लिए पर्याप्त तकनीकी सहायता और मानव संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

छत्तीसगढ़ में ₹3100 प्रति क्विंटल धान का समर्थन मूल्य किसानों के लिए एक बड़ी राहत है, लेकिन इस लाभ को प्राप्त करने की प्रक्रिया को जटिल नहीं बनाना चाहिए। एग्रीस्टैक जैसे डिजिटल उपकरण तभी सफल होंगे जब वे किसानों के जीवन को आसान बनाएं, न कि उनकी परेशानी का कारण बनें। सरकार को इस दिशा में और अधिक संवेदनशील होकर काम करने की आवश्यकता है ताकि 'डिजिटल इंडिया' का लाभ सही मायने में 'किसानों के इंडिया' तक पहुंच सके।

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

Dr. Tarachand Chandrakar is a respected journalist with decades of experience in reporting and analysis. His deep knowledge of politics, society, and regional issues brings credibility and authority to Nidar Chhattisgarh. Known for his unbiased reporting and people-focused journalism, he ensures that readers receive accurate and trustworthy news.

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