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छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में जंग लगे सर्जिकल ब्लेड और रीएजेंट की कमी पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। जानें कैसे इस गंभीर लापरवाही ने मरीजों की जान को जोखिम में डाला और अब सरकार को इस पर जवाब देना होगा।

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छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में 'जानलेवा' लापरवाही पर हाईकोर्ट सख्त, सरकार को लगाई फटकार
छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में 'जानलेवा' लापरवाही पर हाईकोर्ट सख्त, सरकार को लगाई फटकार

छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में 'जानलेवा' लापरवाही पर हाईकोर्ट सख्त, सरकार को लगाई फटकार

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और प्रबंधन पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। हाल ही में सामने आए जंग लगे सर्जिकल ब्लेड्स की सप्लाई और रीएजेंट की कमी के मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। इस घटना ने न केवल स्वास्थ्य विभाग की लचर व्यवस्था को उजागर किया है, बल्कि हजारों गरीब और लाचार मरीजों की जान को भी सीधे तौर पर खतरे में डाल दिया है। यह मामला सिर्फ एक तकनीकी खामी नहीं, बल्कि मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है, जिस पर अब न्यायपालिका ने अपनी पैनी नज़र डाली है।

मामले की जड़: महासमुंद से उठे सवाल

इस पूरे विवाद की शुरुआत महासमुंद मेडिकल कॉलेज सह जिला अस्पताल से हुई, जहां कुछ समय पहले ऑपरेशन थियेटर में 50 से अधिक सर्जिकल ब्लेड्स जंग लगे हुए पाए गए। यह एक चौंकाने वाला खुलासा था, क्योंकि सर्जिकल ब्लेड्स की गुणवत्ता सीधे तौर पर ऑपरेशन की सफलता और मरीज की सुरक्षा से जुड़ी होती है। जंग लगे ब्लेड्स का इस्तेमाल न केवल संक्रमण का खतरा बढ़ाता है, बल्कि ऑपरेशन के दौरान गंभीर जटिलताएं भी पैदा कर सकता है। नर्सिंग स्टाफ ने इस गंभीर खामी को उजागर करते हुए अस्पताल अधीक्षक को लिखित शिकायत दी थी, जिसमें इन ब्लेड्स को "मरीजों के लिए जानलेवा" बताया गया। यह शिकायत स्वास्थ्य विभाग के भीतर पसरी गहरी लापरवाही का एक स्पष्ट प्रमाण थी।

रीएजेंट की कमी: एक और गंभीर चुनौती

जंग लगे ब्लेड्स के साथ-साथ, सरकारी अस्पतालों में रीएजेंट (जांच रसायनों) की कमी भी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। विशेषकर बिलासपुर जिला अस्पताल से रीएजेंट की कमी की लगातार शिकायतें मिल रही थीं। रीएजेंट विभिन्न प्रकार की रक्त जांचों, मूत्र जांचों और अन्य नैदानिक ​​परीक्षणों के लिए आवश्यक होते हैं। इनकी अनुपलब्धता का सीधा मतलब है कि मरीजों की आवश्यक जांचें नहीं हो पा रही हैं, जिससे उनके इलाज में देरी हो रही है और सही बीमारी का पता लगाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में, मरीज या तो निजी पैथोलॉजी लैब में महंगे टेस्ट कराने को मजबूर होते हैं, या फिर बिना सही निदान के इलाज से वंचित रह जाते हैं। यह स्थिति उन गरीब मरीजों के लिए और भी दयनीय है जो सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर पूरी तरह निर्भर हैं।

हाईकोर्ट का स्वतः संज्ञान: न्यायपालिका की सक्रियता

इस गंभीर मामले की जानकारी मिलते ही बिलासपुर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और इसे जनहित याचिका (PIL) के रूप में स्वीकार कर सुनवाई शुरू की। चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने मामले की गंभीरता को समझते हुए राज्य सरकार से विस्तृत जवाब मांगा है। न्यायपालिका का यह सक्रिय रुख सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की जवाबदेही तय करने और आम जनता के स्वास्थ्य के अधिकारों की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि मरीजों के जीवन से खिलवाड़ किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

शासन का जवाब और भविष्य की रणनीति

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान शासन की ओर से बताया गया कि सभी खराब और जंग लगे ब्लेड्स को वापस मंगा लिया गया है। यह एक तत्काल कदम है, लेकिन यह सवाल अभी भी कायम है कि आखिर ये खराब ब्लेड्स शुरू में सप्लाई कैसे हुए। इसके साथ ही, शासन ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि रीएजेंट की खरीद अब सीधे खुले बाजार से की जा रही है, ताकि मरीजों की जांच और इलाज में कोई बाधा न आए। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSCLL), जो चिकित्सा सामग्री की खरीद और सप्लाई के लिए जिम्मेदार है, ने भी कोर्ट को आश्वासन दिया कि भविष्य में ऐसी कमियों को दूर किया जाएगा।

हालांकि, इन आश्वासनों के बावजूद, कई सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं:

  • जिम्मेदारी तय करना: इन खराब ब्लेड्स की खरीद और सप्लाई के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या किसी अधिकारी या सप्लायर के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी?

  • गुणवत्ता नियंत्रण: चिकित्सा सामग्री की खरीद प्रक्रिया में गुणवत्ता नियंत्रण के क्या उपाय किए जाते हैं? क्या सप्लायर्स की जाँच की जाती है?

  • दीर्घकालिक समाधान: खुले बाजार से खरीद एक अस्थायी समाधान हो सकता है। क्या सरकार एक मजबूत और पारदर्शी सप्लाई चेन सिस्टम विकसित करने की योजना बना रही है?

  • नियमित ऑडिट: क्या सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सामग्री के स्टॉक और गुणवत्ता की नियमित ऑडिटिंग की जाती है?

स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा और जनता का आक्रोश

यह घटना छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में व्याप्त अव्यवस्था और भ्रष्टाचार की एक बानगी मात्र है। प्रदेशभर में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की लचर हालत को लेकर लगातार शिकायतें मिलती रही हैं। डॉक्टर और विशेषज्ञ स्टाफ की कमी, उपकरणों का अभाव, दवाओं की अनुपलब्धता और स्वच्छता की कमी जैसी समस्याएं आम हैं। इन सबके बीच, जंग लगे ब्लेड्स और रीएजेंट की कमी जैसे मामले जनता के भरोसे को और कमज़ोर करते हैं।

इस मामले ने आम जनता के बीच भी आक्रोश पैदा किया है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब सरकार आम जनता के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार है, तो इस तरह की लापरवाही कैसे हो सकती है? यह स्थिति उन हजारों परिवारों के लिए बेहद चिंताजनक है जो निजी अस्पतालों का महंगा खर्च वहन नहीं कर सकते और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर ही आश्रित हैं।

आगे क्या? न्याय और जवाबदेही की उम्मीद

हाईकोर्ट की अगली सुनवाई इस मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगी। उम्मीद है कि न्यायालय सरकार से केवल आश्वासनों से संतुष्ट नहीं होगा, बल्कि ठोस कार्य योजना और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेगा। यह मामला एक अवसर है कि छत्तीसगढ़ सरकार अपनी स्वास्थ्य सेवाओं में व्यापक सुधार लाए, एक पारदर्शी और जवाबदेह सिस्टम बनाए और यह सुनिश्चित करे कि प्रदेश के हर नागरिक को गुणवत्तापूर्ण और सुरक्षित चिकित्सा सुविधाएं मिल सकें। न्यायपालिका की सक्रियता ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित कराया है, और अब यह देखना होगा कि सरकार इस फटकार से क्या सबक लेती है और जमीनी स्तर पर क्या बदलाव लाती है ताकि भविष्य में कोई भी मरीज सरकारी अस्पताल में जानलेवा लापरवाही का शिकार न हो।

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