छत्तीसगढ़ में सौर ऊर्जा विवाद: कांग्रेस का भाजपा पर 'मुफ्त बिजली' के दावे पर हमला

छत्तीसगढ़ कांग्रेस जिला अध्यक्ष अध्यक्ष डॉ. रश्मि चंद्राकर ने भाजपा सरकार की सौर ऊर्जा नीति पर सवाल उठाते हुए इसे 'राजनीतिक इवेंट' करार दिया है। जानें क्या हैं 'मुफ्त बिजली' योजना के दावों और हकीकत के बीच के मतभेद।

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छत्तीसगढ़ में 'सौर क्रांति' या सिर्फ राजनीतिक चमक? कांग्रेस ने उठाए भाजपा सरकार की 'मुफ्त बिजली' योजना पर गंभीर सवाल

महासमुंद : क्या छत्तीसगढ़ में हर घर को मुफ्त बिजली देने का सपना सिर्फ एक दूर का ढोल है, या यह वास्तव में एक क्रांतिकारी कदम है जो प्रदेश के ऊर्जा परिदृश्य को बदल देगा? इस सवाल पर राज्य में एक तीखी राजनीतिक बहस छिड़ गई है, जब कांग्रेस की जिला अध्यक्ष डॉ. रश्मि चंद्राकर ने भाजपा सरकार की महत्वाकांक्षी सौर ऊर्जा अभियान पर कड़े प्रहार किए हैं। डॉ. चंद्राकर ने इसे 'महज एक राजनीतिक इवेंट' करार देते हुए दावा किया है कि 'हर घर मुफ्त बिजली' का वादा पूरी तरह से झूठा और भ्रामक है। उनके इन आरोपों ने प्रदेश की जनता और राजनीतिक गलियारों में एक नई चर्चा को जन्म दे दिया है कि क्या सरकार केवल चुनावी लाभ के लिए बड़े-बड़े दावे कर रही है, या उसके पास वास्तव में एक ठोस योजना है।

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दावों और हकीकत के बीच की खाई: 125 साल का लंबा इंतजार?

डॉ. रश्मि चंद्राकर ने अपने आरोपों को आंकड़ों के साथ पुष्ट किया। उन्होंने कहा कि मौजूदा बजट प्रावधानों के अनुसार, अगले दो सालों में प्रदेश के केवल 1.3 लाख घरों को ही सोलर पैनल के लिए सब्सिडी मिल पाएगी। यह आंकड़ा तब और चौंकाने वाला हो जाता है जब हम इस तथ्य पर गौर करते हैं कि छत्तीसगढ़ में 80 लाख से अधिक परिवार निवास करते हैं। डॉ. चंद्राकर के गणित के अनुसार, अगर इसी रफ्तार से काम होता रहा, तो प्रदेश के हर घर तक सौर ऊर्जा पहुंचाने में लगभग 125 साल का लंबा समय लग जाएगा। यह एक ऐसा दावा है जो सीधे तौर पर भाजपा सरकार के 'तत्काल लाभ' के वादे को चुनौती देता है और उसकी कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।

यह केवल सब्सिडी प्राप्त करने वाले घरों की संख्या का मुद्दा नहीं है, बल्कि योजना की व्यवहार्यता का भी है। डॉ. चंद्राकर ने समझाया कि एक सामान्य थ्री-फेज कनेक्शन वाले घर के लिए कम से कम 5 किलोवाट का सोलर पैनल स्थापित करना आवश्यक होगा। इसकी अनुमानित लागत लगभग 3.5 लाख रुपये आती है। इस पर सरकार द्वारा अधिकतम 1.08 लाख रुपये की सब्सिडी दी जाती है, जिसका अर्थ है कि शेष बड़ा बोझ सीधे तौर पर हितग्राही परिवार पर पड़ेगा। उन्होंने आगाह किया कि अगर कोई परिवार इस लागत को पूरा करने के लिए बैंक ऋण लेता है, तो उसकी मासिक किस्तें वर्तमान बिजली बिल की तुलना में कई गुना अधिक होंगी। ऐसे में, 'मुफ्त बिजली' का दावा एक कड़वी सच्चाई में बदल सकता है, जहां उपभोक्ता को पहले से कहीं अधिक भुगतान करना पड़े।

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बिजली दरों में वृद्धि और 'हाफ बिल' योजना का अंत: जनता को मिली दोहरी मार?

कांग्रेस ने सरकार पर जनता को मिली कीमतों की मार से ध्यान भटकाने का भी आरोप लगाया है। डॉ. रश्मि चंद्राकर ने कहा कि भाजपा सरकार ने पिछले 20 महीनों के कार्यकाल में चार बार बिजली दरों में वृद्धि की है। इसके अतिरिक्त, पूर्व कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई '400 यूनिट तक की हाफ बिल योजना' को भी बंद कर दिया गया है। इन फैसलों ने आम जनता की जेब पर सीधा असर डाला है, जिससे बिजली महंगी हो गई है। ऐसे में, डॉ. चंद्राकर का तर्क है कि 'मुफ्त बिजली' का झांसा देकर सरकार केवल जनता का ध्यान इन वास्तविक मुद्दों से भटकाने का प्रयास कर रही है। यह आरोप सरकार पर दोहरे मापदंड अपनाने और जनता को गुमराह करने का दबाव डालता है।

पर्यावरण बनाम विकास: हसदेव अरण्य का विवाद और बिजली कटौती का संकट

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सौर ऊर्जा अभियान केवल आर्थिक पहलुओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के दावों से भी जुड़ा है। डॉ. रश्मि चंद्राकर ने इस पर भी सरकार को घेरा। उन्होंने सवाल किया कि यदि सरकार को वास्तव में प्रदूषण और पर्यावरण की चिंता है, तो अडानी समूह को हसदेव अरण्य जैसे संवेदनशील वन क्षेत्र में नए कोयला ब्लॉक क्यों आवंटित किए जा रहे हैं? उन्होंने बताया कि इन परियोजनाओं के कारण लाखों पेड़ों की कटाई हो रही है, जिससे पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंच रही है। यह सवाल सरकार के पर्यावरण प्रेम के दावों को संदिग्ध बनाता है और उसकी प्राथमिकताओं पर सवाल उठाता है।

बिजली आपूर्ति की स्थिति पर बोलते हुए डॉ. चंद्राकर ने कहा कि एक समय छत्तीसगढ़ 'सरप्लस पावर स्टेट' (अतिरिक्त बिजली वाला राज्य) के रूप में जाना जाता था। लेकिन भाजपा के शासनकाल में, प्रदेश में अघोषित बिजली कटौती एक आम बात हो गई है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि किसान, उद्योग और आम उपभोक्ता तीनों ही बिजली संकट का सामना कर रहे हैं। धान के सीजन में किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त बिजली नहीं मिल रही, उद्योगों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है और घरों में गर्मी में लोग बिजली कटौती से जूझ रहे हैं। यह स्थिति उस समय और भी गंभीर हो जाती है जब सरकार 'मुफ्त बिजली' के बड़े-बड़े दावे कर रही है।

क्या 'मुफ्त बिजली' का वादा केवल चुनावी स्टंट है?

डॉ. रश्मि चंद्राकर के बयानों ने छत्तीसगढ़ में सौर ऊर्जा अभियान को लेकर एक गंभीर बहस छेड़ दी है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार 'सौर सब्सिडी' की बात कर केवल असल मुद्दों से भाग रही है और जनता को गुमराह कर रही है। यह राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप ऐसे समय में हो रहा है जब प्रदेश में बिजली की मांग बढ़ रही है और आपूर्ति एक चुनौती बनी हुई है।

सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि वह इन आरोपों का ठोस जवाब दे और यह स्पष्ट करे कि 'हर घर मुफ्त बिजली' का वादा कैसे पूरा किया जाएगा, विशेष रूप से जब वित्तीय और व्यावहारिक चुनौतियां स्पष्ट रूप से सामने हैं। क्या सरकार के पास कोई रोडमैप है जो 125 साल के अनुमानित समय को कम कर सके? क्या सब्सिडी योजना को और अधिक प्रभावी और जनता के लिए सुलभ बनाया जा सकता है? ये ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर छत्तीसगढ़ की जनता जानना चाहती है।

आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा सरकार इन आरोपों का कैसे जवाब देती है और क्या वह अपनी सौर ऊर्जा नीति को लेकर जनता और विपक्ष के बीच विश्वास स्थापित कर पाती है। फिलहाल, 'सौर क्रांति' का सपना राजनीतिक घमासान में उलझता दिख रहा है, और जनता को यह इंतजार है कि कब उन्हें वास्तव में 'मुफ्त' या कम से कम 'सस्ती' और 'स्थिर' बिजली मिल पाएगी। यह केवल एक राजनीतिक बहस नहीं, बल्कि प्रदेश के ऊर्जा भविष्य और आम नागरिक के जीवन से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

Dr. Tarachand Chandrakar is a respected journalist with decades of experience in reporting and analysis. His deep knowledge of politics, society, and regional issues brings credibility and authority to Nidar Chhattisgarh. Known for his unbiased reporting and people-focused journalism, he ensures that readers receive accurate and trustworthy news.

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