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छत्तीसगढ़ नान घोटाला - आलोक शुक्ला का सरेंडर अस्वीकृत, अब सोमवार को अगली सुनवाई
रायपुर: एक ऐसे मामले में जिसने छत्तीसगढ़ के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में भूचाल ला दिया है, पूर्व प्रमुख सचिव और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी आलोक शुक्ला के सरेंडर को शुक्रवार को अदालत ने फिलहाल स्वीकार नहीं किया है। नागरिक आपूर्ति निगम (नान) से जुड़े इस बहुचर्चित घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने केस डायरी दिल्ली में होने का हवाला देते हुए फिलहाल कस्टडी लेने से इनकार कर दिया। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम के बाद अब इस हाई-प्रोफाइल मामले में अगली सुनवाई सोमवार, 22 सितंबर को होगी, जिस पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हुई हैं।
यह घटनाक्रम छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े वित्तीय घोटालों में से एक 'नान घोटाले' में एक नया मोड़ लेकर आया है, जो राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही लड़ाई का प्रतीक बन गया है। आलोक शुक्ला, जो इस पूरे प्रकरण के केंद्र में रहे हैं, के आत्मसमर्पण के प्रयास और ईडी की हिचकिचाहट ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
न्यायालय में क्या हुआ?
शुक्रवार को जब आलोक शुक्ला ने अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का प्रयास किया, तो प्रवर्तन निदेशालय की ओर से एक महत्वपूर्ण आपत्ति दर्ज की गई। ईडी के वकीलों ने तर्क दिया कि इस मामले से संबंधित 'केस डायरी' वर्तमान में दिल्ली में है। दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता का हवाला देते हुए, ईडी ने अदालत से कहा कि वे इस समय आलोक शुक्ला को अपनी हिरासत में लेने में असमर्थ हैं।
अदालत ने ईडी की इस दलील को स्वीकार करते हुए, एक अंतरिम आदेश जारी किया। अदालत ने निर्देश दिया कि 22 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई तक आलोक शुक्ला को किसी भी तरह की हिरासत में नहीं रखा जाएगा। यह आदेश आलोक शुक्ला के लिए एक अस्थायी राहत के रूप में आया है, लेकिन यह मामले की जटिलता और ईडी की रणनीति पर भी प्रकाश डालता है। ईडी द्वारा केस डायरी की अनुपलब्धता का कारण देना और हिरासत लेने से इनकार करना, कई पर्यवेक्षकों के लिए चौंकाने वाला था, खासकर तब जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज की थी।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और ईडी की तैयारी
इस पूरे प्रकरण की पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला है। हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने आलोक शुक्ला और एक अन्य पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय से मिली अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की डबल बेंच ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया था कि दोनों आरोपियों ने 2015 में दर्ज हुए इस मामले और ईडी की चल रही जांच को प्रभावित करने की कोशिश की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने कड़े रुख में यह आदेश दिया था कि दोनों अधिकारियों को पहले दो हफ्ते प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत में रहना होगा और उसके बाद दो हफ्ते न्यायिक हिरासत में भेजा जाएगा। इस अनिवार्य हिरासत अवधि को पूरा करने के बाद ही वे नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकेंगे। यह फैसला ईडी के लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही थी, जिसने उन्हें इस मामले में गहराई से जांच करने का अधिकार दिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के ठीक दूसरे दिन, यानी 18 सितंबर को, प्रवर्तन निदेशालय की एक टीम ने डॉ. आलोक शुक्ला के भिलाई स्थित तालपुरी कॉलोनी के आवास पर दबिश दी थी। यह कार्रवाई ईडी की आगामी गिरफ्तारी की तैयारियों का संकेत थी। हालांकि, उस समय उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था, जिससे कई अटकलें लगाई जा रही थीं। शुक्रवार का घटनाक्रम, जहां ईडी ने खुद हिरासत लेने से इनकार कर दिया, इन अटकलों को और हवा देता है।
नान घोटाला: एक विस्तृत इतिहास
नान घोटाला, जिसे नागरिक आपूर्ति निगम घोटाला भी कहा जाता है, का खुलासा वर्ष 2015 में हुआ था। यह उस समय की बात है जब आलोक शुक्ला खाद्य विभाग के सचिव के पद पर कार्यरत थे। आरोप है कि इस घोटाले में चावल, नमक और अन्य आवश्यक वस्तुओं की खरीद और वितरण में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं की गईं, जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ। इसमें अधिकारियों और राजनेताओं की मिलीभगत से कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार का खेल चला।
तत्कालीन आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) ने दिसंबर 2018 में आलोक शुक्ला और अन्य आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इसके बाद, वर्ष 2019 में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत मिलने के बाद, तत्कालीन भूपेश बघेल सरकार ने आलोक शुक्ला को एक बार फिर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंप दी थीं, जिससे राजनीतिक हलकों में काफी हंगामा हुआ था। उनके विरोधी दल ने इसे भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का आरोप लगाया था। इस घटनाक्रम ने राज्य की राजनीति में गहरी दरार पैदा कर दी थी और विपक्ष ने लगातार इस मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की थी।
राजनीतिक हलकों में हलचल और आगामी संभावनाएं
आलोक शुक्ला के सरेंडर को फिलहाल स्वीकार न किए जाने और ईडी द्वारा हिरासत से इनकार के बाद छत्तीसगढ़ के राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। यह मामला, जिसकी जड़ें पिछली सरकारों तक जाती हैं, आगामी चुनावों से पहले एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। जहां एक ओर ईडी लगातार इस मामले में अपनी कार्रवाई तेज करने की तैयारी में है, वहीं दूसरी ओर इस मुद्दे को लेकर सियासी बयानबाजी भी चरम पर है। सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों इस मामले को अपने-अपने तरीके से भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि सोमवार, 22 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई इस मामले की दिशा तय करेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि ईडी अपनी केस डायरी के साथ अदालत में पेश होती है या नहीं और क्या वे तब आलोक शुक्ला की हिरासत की मांग करते हैं। न्यायिक प्रक्रिया में यह नया मोड़ न केवल आलोक शुक्ला के भविष्य के लिए बल्कि छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही लड़ाई के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यह मामला दर्शाता है कि कैसे भ्रष्टाचार के आरोप उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों को भी जवाबदेह ठहराने में सक्षम हैं, भले ही इसमें समय लगे।
इस पूरे प्रकरण में, न केवल आलोक शुक्ला का करियर बल्कि छत्तीसगढ़ के नागरिक आपूर्ति प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही भी दांव पर लगी है। इस मामले की सुनवाई पर सिर्फ कानूनी विशेषज्ञ ही नहीं, बल्कि आम जनता भी करीब से नजर रख रही है, जो यह जानने को उत्सुक है कि इस बहुचर्चित घोटाले का अंत क्या होगा। क्या सोमवार को आलोक शुक्ला को ईडी की हिरासत में भेजा जाएगा, या फिर यह मामला और जटिल होता जाएगा? इन सभी सवालों के जवाब सोमवार को ही सामने आ पाएंगे।
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