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छत्तीसगढ़ पुलिस को हाईकोर्ट की कड़ी फटकार: "रसूखदारों के सामने 'बेबस बाघ' बन जाते हैं"
मस्तूरी रोड पर स्टंट के मामले में कोर्ट ने पुलिस की कार्रवाई पर जताई नाराजगी, कहा - गरीब और मध्यम वर्ग पर ही क्यों सख्ती? मुख्य सचिव से मांगा जवाब।
बिलासपुर, छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट ने मस्तूरी रोड पर खतरनाक स्टंट करने वाले युवकों के मामले में पुलिस की कार्रवाई पर गंभीर नाराजगी व्यक्त की है। अदालत ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि पुलिस गरीब और मध्यम वर्ग पर तो सख्ती दिखाती है, लेकिन पैसे और रसूख वाले लोगों के सामने 'बेबस बाघ' बन जाती है। यह टिप्पणी राज्य में कानून प्रवर्तन की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करती है और सामाजिक न्याय के एक बड़े मुद्दे को उजागर करती है।
मामले की पृष्ठभूमि: खतरनाक स्टंट और पुलिस कार्रवाई
यह पूरा मामला 19 सितंबर को हरिभूमि डॉट कॉम में प्रकाशित एक खबर के बाद सुर्खियों में आया था। रिपोर्ट के अनुसार, कुछ युवक मस्तूरी रोड पर फार्म हाउस पार्टी के लिए जाते समय 18 कारों में खतरनाक स्टंट कर रहे थे। वे गाड़ियों की खिड़कियों और सनरूफ से निकलकर जानलेवा तरीके से उछल-कूद कर रहे थे, जिससे हाईवे पर जाम की स्थिति बन गई थी। राहगीरों ने इन खतरनाक स्टंट का वीडियो बनाकर पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद मस्तूरी पुलिस ने 18 कारों को जब्त किया।
हाईकोर्ट का स्वतः संज्ञान और कड़े निर्देश
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और इस पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान, महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने कोर्ट को बताया कि वाहनों को जब्त कर लिया गया है और संबंधित ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने की सिफारिश भी की गई है।
हालांकि, कोर्ट ने पुलिस की इस कार्रवाई को 'आंखों में धूल झोंकने जैसा' बताया और इसे अपर्याप्त करार दिया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसे मामलों में केवल मोटर व्हीकल एक्ट की धाराओं के तहत कार्रवाई काफी नहीं है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि इन अपराधियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (पहले भारतीय दंड संहिता) की कठोर धाराओं में भी केस दर्ज होना चाहिए, ताकि यह कार्रवाई आरोपियों के लिए जीवन भर का सबक बन सके।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी: "पुलिस का प्रकोप केवल गरीबों पर"
जब्त की गई 18 कारों के संबंध में हाईकोर्ट ने कड़े निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने आदेश दिया है कि इन जब्त की गई कारों को कोर्ट की अनुमति के बिना किसी भी हालत में रिहा नहीं किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव को एक शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें उन्हें यह बताना होगा कि इन अपराधियों के खिलाफ अब तक क्या ठोस कार्रवाई की गई है।
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, "पुलिस का प्रकोप केवल गरीब, मध्यम वर्ग और दलितों पर ही पड़ता है। लेकिन जब अपराधी कोई संपन्न व्यक्ति होता है, चाहे वह बाहुबल, धन या राजनीतिक समर्थन के मामले में हो, तो पुलिस अधिकारी नख-दंतहीन बाघ बन जाते हैं, ऐसे अपराधियों को मामूली जुर्माना भरकर छोड़ दिया जाता है, उनके वाहन भी मालिकों को सौंप दिए जाते हैं।" यह टिप्पणी पुलिस की दोहरी कार्यप्रणाली पर गहरा प्रहार करती है।
अगली सुनवाई और भविष्य की दिशा
हाईकोर्ट की यह फटकार निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ पुलिस के लिए एक चेतावनी है। यह मामला न केवल ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन का है, बल्कि कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत से भी जुड़ा है। अदालत ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि कानून का पालन सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।
इस मामले की अगली सुनवाई अब 23 सितंबर को निर्धारित की गई है। सभी की निगाहें मुख्य सचिव द्वारा दायर किए जाने वाले शपथ पत्र पर टिकी होंगी, जिससे यह स्पष्ट हो पाएगा कि सरकार और पुलिस इस गंभीर टिप्पणी के बाद क्या ठोस कदम उठाती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या हाईकोर्ट की इस सख्ती से पुलिस की कार्यप्रणाली में वाकई कोई बदलाव आता है और क्या रसूखदार अपराधियों पर भी उतनी ही सख्ती से कार्रवाई की जाती है, जितनी गरीब और मध्यम वर्ग पर। यह मामला राज्य में कानून व्यवस्था और न्यायपालिका की भूमिका के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।
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