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छत्तीसगढ़ शराब घोटाला: EOW की बड़ी कार्रवाई, पूर्व आबकारी आयुक्त निरंजन दास सलाखों के पीछे
रायपुर: छत्तीसगढ़ के राजनीतिक गलियारों और प्रशासनिक हलकों में भूचाल लाने वाले बहुचर्चित शराब घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (EOW) ने एक और बड़ी कार्रवाई करते हुए, कांग्रेस सरकार के दौरान आबकारी आयुक्त रहे रिटायर्ड आईएएस अधिकारी निरंजन दास को गिरफ्तार कर लिया है। इस गिरफ्तारी के साथ ही, कथित तौर पर राज्य को 1200 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने वाले इस महाघोटाले की परतें और खुलने की उम्मीद है। दास की गिरफ्तारी ऐसे समय में हुई है, जब जांच एजेंसियां इस सिंडिकेट के हर सदस्य तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं, जिसने राज्य के खजाने को चूना लगाकर अपनी जेबें भरीं।
कौन हैं निरंजन दास और क्या हैं आरोप?
निरंजन दास, जो कांग्रेस शासनकाल में आबकारी विभाग के सर्वोच्च पद पर आसीन थे, पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। EOW द्वारा दर्ज अपराध क्रमांक-04/2024 के तहत उन पर धारा-7, 12 (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 यथा संशोधित अधिनियम 2018) के साथ 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज का उपयोग) और 120 बी (आपराधिक साजिश) भादवि के तहत आरोप लगाए गए हैं।
जांच एजेंसियों के मुताबिक, निरंजन दास पर विभाग प्रमुख के तौर पर सक्रिय सिंडिकेट को कई तरीकों से सहयोग करने का आरोप है। इसमें मुख्य रूप से सरकारी शराब दुकानों में अन-अकाउंटेड (बिना हिसाब) शराब की बिक्री को बढ़ावा देना, अधिकारियों के तबादलों में हेरफेर, टेंडर प्रक्रियाओं में अनियमितताएं, और एक दोषपूर्ण शराब नीति को लागू करने में सहयोग देना शामिल है। इन सभी गतिविधियों के माध्यम से, दास ने कथित तौर पर सिंडिकेट को अनुचित लाभ पहुंचाया और इसके एवज में करोड़ों रुपये का असम्यक लाभ स्वयं प्राप्त किया।
सिंडिकेट का जाल और करोड़ों का हेरफेर
इस पूरे घोटाले की जांच कर रही एजेंसियों ने पहले भी अपनी चार्जशीट में कई बड़े नामों का खुलासा किया है। निरंजन दास को पूर्व आईएएस अनिल टुटेजा (जिसे सिंडिकेट का कथित संरक्षक बताया गया है), अरुणपति त्रिपाठी (तत्कालीन विशेष सचिव आबकारी), अनवर ढेबर (रायपुर मेयर एजाज ढेबर के भाई और एक प्रमुख व्यवसायी) के साथ मिलकर इस सिंडिकेट को चलाने का आरोपी बनाया गया है।
यह सिंडिकेट आबकारी विभाग की मिलीभगत से कई स्तरों पर भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहा था, जिससे राज्य के राजस्व को भारी नुकसान हो रहा था। इसमें शामिल मुख्य अनियमितताएं थीं:
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कमीशनखोरी: सरकारी शराब दुकानों में बेची जाने वाली प्रत्येक बोतल पर कमीशन तय करना।
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अतिरिक्त उत्पादन: डिस्टिलरियों से अतिरिक्त शराब का उत्पादन करवाकर उसे अवैध रूप से बेचना।
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विदेशी ब्रांड की वसूली: विदेशी ब्रांड की शराब की अवैध सप्लाई पर भारी वसूली करना।
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डुप्लीकेट होलोग्राम: सबसे गंभीर आरोप डुप्लीकेट होलोग्राम (शराब की बोतल पर लगे सुरक्षा फीचर) का उपयोग कर अनियमित और अवैध शराब की बिक्री को वैध दिखाना था।
होलोग्राम घोटाला: 1200 करोड़ का नुकसान
इस घोटाले का सबसे चौंकाने वाला पहलू 'होलोग्राम घोटाला' है, जिससे राज्य को अनुमानित 1200 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। जांच एजेंसियों ने अपनी चार्जशीट में बताया है कि नोएडा स्थित कंपनी 'प्रिज्म होलोग्राफी सिक्योरिटी फिल्म्स' (जिसके मालिक विधु गुप्ता हैं) को टेंडर देने में निरंजन दास की भूमिका थी। आरोप है कि यह कंपनी टेंडर के लिए निर्धारित योग्यता मानदंडों को पूरा नहीं करती थी, लेकिन निरंजन दास ने अरुणपति त्रिपाठी और अनिल टुटेजा के साथ मिलकर टेंडर की शर्तों में हेरफेर किया और इसे अवैध रूप से इस कंपनी को आवंटित किया।
इस अवैध आवंटन का मकसद डुप्लीकेट होलोग्राम बनवाना था, जिनका उपयोग अवैध शराब की बोतलों पर किया जाता था ताकि उन्हें वैध दिखाया जा सके। जांच के अनुसार, प्रत्येक डुप्लीकेट होलोग्राम पर 8 पैसे का कमीशन लिया गया, जिससे कुल मिलाकर 1200 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया। यह बताता है कि कैसे आबकारी विभाग के शीर्ष पर बैठे अधिकारियों ने संगठित तरीके से राज्य के राजस्व को लूटा और अपने निजी लाभ के लिए जनता के पैसे का दुरुपयोग किया।
न्यायिक प्रक्रिया और आगे की राह
निरंजन दास की गिरफ्तारी के साथ, इस घोटाले में शामिल अन्य बड़े नामों पर भी शिकंजा कसने की उम्मीद है। EOW और अन्य जांच एजेंसियां इस मामले की गहराई तक जाकर सभी दोषियों को कटघरे में लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह मामला न केवल वित्तीय अनियमितताओं का है, बल्कि यह सार्वजनिक विश्वास और प्रशासनिक ईमानदारी पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न भी लगाता है।
यह घोटाला छत्तीसगढ़ के नागरिकों के लिए एक बड़ा सबक है, जो यह दर्शाता है कि कैसे सत्ता के गलियारों में बैठे कुछ लोग अपने पद का दुरुपयोग करके राज्य के संसाधनों को लूट सकते हैं। न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि न केवल दोषियों को कड़ी सजा मिले, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
निरंजन दास की गिरफ्तारी इस विशाल घोटाले की जांच में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह दिखाता है कि कानून की पहुंच कितनी व्यापक है और भ्रष्टाचार करने वालों को अंततः अपने कृत्यों का हिसाब देना पड़ता है। आने वाले समय में इस मामले में और भी बड़े खुलासे होने की संभावना है, जो छत्तीसगढ़ की राजनीति और प्रशासन में एक नई बहस छेड़ सकते हैं। राज्य की जनता को उम्मीद है कि इस जांच का परिणाम न्याय और ईमानदारी की जीत के रूप में सामने आएगा।
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