चमोली में बादल फटने से भारी तबाही: जानें लापता लोगों और बचाव अभियान का हर अपडेट

उत्तराखंड के चमोली जिले में बादल फटने से कुंतरी, सरपाणी और धुर्मा गांवों में भारी विनाश हुआ है। 10 लोग लापता हैं, 6 घर तबाह हो गए हैं। SDRF और NDRF टीमें युद्धस्तर पर बचाव कार्य में जुटी हैं। ताजा अपडेट्स और मौसम विभाग की चेतावनी यहां पढ़ें।

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उत्तराखंड के चमोली में प्रकृति का तांडव: तीन गांव तबाह, दस लोग लापता

चमोली, उत्तराखंड: हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड, अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, लेकिन अक्सर यही सुंदरता प्रकृति के रौद्र रूप का गवाह भी बनती है। बुधवार (17 सितंबर 2025) देर रात, चमोली जिले के नंदानगर तहसील में एक ऐसी ही हृदय विदारक घटना सामने आई, जब अचानक बादल फटने से कुंतरी लगाफाली, सरपाणी और धुर्मा गांव में भीषण तबाही मच गई। इस अप्रत्याशित आपदा ने छह घरों को पूरी तरह निगल लिया और कम से कम 10 लोगों को लापता कर दिया है, जिससे पूरे क्षेत्र में मातम पसरा हुआ है।

प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, आधी रात के बाद हुई मूसलाधार बारिश ने ऐसी भयावह स्थिति पैदा कर दी कि स्थानीय लोगों को संभलने का भी मौका नहीं मिला। पहाड़ी ढलानों से अचानक आए मलबे और पानी के तेज बहाव ने घरों को ताश के पत्तों की तरह ढहा दिया। घटना की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई मवेशी भी इस आपदा की भेंट चढ़ गए।

राहत और बचाव कार्य युद्धस्तर पर

आपदा की सूचना मिलते ही राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF), राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और स्थानीय प्रशासन की टीमें तुरंत हरकत में आईं। अंधेरे और खराब मौसम के बावजूद, बचाव दल तुरंत प्रभावित क्षेत्रों की ओर रवाना हुए और सुबह होते-होते बचाव कार्य युद्धस्तर पर शुरू कर दिया गया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) ने बताया कि घायलों और प्रभावितों को तत्काल सहायता प्रदान करने के लिए मेडिकल टीमें और तीन एम्बुलेंस (108 सेवा) मौके पर भेजी गई हैं।

अब तक की जानकारी के अनुसार, बचाव दल ने दो लोगों को मलबे से सुरक्षित निकालने में सफलता प्राप्त की है, जिससे कुछ उम्मीद जगी है। हालांकि, लापता 10 लोगों की तलाश अभी भी जारी है और टीमें मलबे के हर एक कण को खंगाल रही हैं।

कुंतरी और धुर्मा: तबाही के निशान

नंदानगर नगर पंचायत के अंतर्गत आने वाला कुंतरी लगाफाली वार्ड इस आपदा से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। यहां के स्थानीय निवासियों ने बताया कि रात के सन्नाटे में अचानक हुई इस घटना ने उनके जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। छह घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जिससे कई परिवार बेघर हो गए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने ऐसी भयावह बारिश और उसके बाद की तबाही पहले कभी नहीं देखी थी।

इसी तरह की त्रासदी चमोली जिले के धुर्मा गांव में भी देखने को मिली है, जहां बादल फटने से पांच मकान क्षतिग्रस्त हो गए। प्रशासनिक टीमों ने यहां भी मवेशियों के बड़े पैमाने पर हताहत होने की आशंका जताई है। ये दोनों गांव अब मलबे के ढेर में तब्दील हो चुके हैं, जो प्रकृति के अप्रत्याशित प्रकोप की कहानी बयां कर रहे हैं।

लापता लोगों की तलाश जारी, अनिश्चितता का माहौल

SDRF और NDRF की विशेष रूप से प्रशिक्षित टीमें, अत्याधुनिक उपकरणों की मदद से मलबे में दबे और लापता लोगों की तलाश में जुटी हैं। चुनौतीपूर्ण पहाड़ी इलाका और लगातार बारिश बचाव कार्यों में बाधा डाल रही है, लेकिन जवानों का हौसला अडिग है। स्थानीय प्रशासन ने स्वीकार किया है कि इस समय नुकसान का पूरा आकलन करना मुश्किल है और वास्तविक स्थिति बचाव कार्य पूरा होने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगी।

प्रभावित गांवों में जहां एक ओर जीवन बचाने की जद्दोजहद चल रही है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय लोग अपने प्रियजनों की सलामती के लिए दुआएं कर रहे हैं। चारों ओर अनिश्चितता का माहौल है, और हर गुजरते पल के साथ लापता लोगों के सकुशल मिलने की उम्मीदें धूमिल होती जा रही हैं।

मौसम विभाग की चेतावनी और भविष्य की चुनौतियां

इस दुखद घटना के बीच, मौसम विभाग ने उत्तराखंड के कई जिलों के लिए भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। देहरादून, हरिद्वार, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, मसूरी, चंबा और ऋषिकेश सहित कई क्षेत्रों में गरज-चमक के साथ भारी बारिश और तूफान की आशंका जताई गई है। यह चेतावनी बचाव कार्यों में लगे कर्मियों और स्थानीय निवासियों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है। प्रशासन ने नागरिकों से विशेष सावधानी बरतने और सुरक्षित स्थानों पर रहने की अपील की है।

उत्तराखंड, विशेषकर हिमालयी क्षेत्र, भूस्खलन और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास ने इस संवेदनशीलता को और बढ़ा दिया है। चमोली की यह घटना एक बार फिर हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने और आपदा प्रबंधन प्रणालियों को और अधिक सुदृढ़ करने की आवश्यकता की याद दिलाती है।

यह आपदा केवल कुछ घरों या व्यक्तियों का नुकसान नहीं है, बल्कि यह पूरे समुदाय की सामूहिक चेतना पर गहरा घाव छोड़ गई है। आने वाले दिन बचाव कार्यों, पुनर्वास और प्रभावित परिवारों के पुनर्निर्माण के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होंगे। सरकार और स्वयंसेवी संगठनों को मिलकर इस संकट से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करनी होगी, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके और उत्तराखंड के इन दूरदराज के गांवों में जीवन फिर से पटरी पर आ सके।


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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

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