Article Body
डिजिटल युग के इनोवेटिव शिक्षक: बच्चों को दिखा रहे तकनीक की राह, आज का समय डिजिटल क्रांति का है, और शिक्षा भी अब केवल किताबों तक सीमित नहीं रही। स्मार्टफोन, इंटरनेट और डिजिटल उपकरणों ने शिक्षण पद्धति को पूरी तरह बदल दिया है। इस बदलाव के केंद्र में हैं वे इनोवेटिव शिक्षक, जो बच्चों को केवल पढ़ा ही नहीं रहे, बल्कि उन्हें तकनीक-सक्षम भविष्य की राह भी दिखा रहे हैं। शिक्षक दिवस के इस अवसर पर, आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही गुरुओं के बारे में जो अपने छात्र-छात्राओं के भविष्य को संवारने में लगे हुए हैं।
तकनीक से शिक्षा को नई दिशा: शिक्षकों की बदलती भूमिका
रायपुर में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट और विभिन्न विश्वविद्यालयों में कई ऐसे प्रोफेसर कार्यरत हैं जो अपने नवाचारों से छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इनमें से कुछ ने विद्यार्थियों को बेहतर ढंग से समझाने के लिए किताबें लिखी हैं, तो कुछ छात्रों के नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए नई सुविधाओं के विकास में लगे हुए हैं।
कंप्यूटर शिक्षा के अग्रदूत: डॉ. ओपी व्यास
ट्रिपलआईटी के निदेशक डॉ. ओपी व्यास उन अग्रदूतों में से एक हैं, जिनके प्रयासों से आज राजधानी में कंप्यूटर पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। डॉ. व्यास ने 1990 के दशक में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर में कंप्यूटर विज्ञान स्कूल की सफलतापूर्वक स्थापना की। उन्होंने विश्वविद्यालय और संबद्ध कॉलेजों में कई कंप्यूटर पाठ्यक्रम शुरू करवाए, जिससे छत्तीसगढ़ क्षेत्र में कंप्यूटर विज्ञान और आईटी शिक्षा को बढ़ावा मिला। वे डेटा विज्ञान, सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग और प्रक्रिया विज्ञान के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध शिक्षक और शोधकर्ता हैं।
ज्ञान को सरल बनाने वाली किताबें: डॉ. राजेश सिंह
आयुर्वेद कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेश सिंह अपनी अनूठी शिक्षण शैली के लिए जाने जाते हैं। पिछले 17 वर्षों से शिक्षण के क्षेत्र में कार्यरत डॉ. सिंह छात्रों को शोध-आधारित शिक्षा प्रदान करते हैं। उन्होंने जटिल विषयों को समझाने के लिए 7 किताबें प्रकाशित की हैं। वे वर्तमान में ब्रेस्ट और यूटेराइन कैंसर पर शोध कर रहे हैं, और उन्होंने मोरिंगा, नाग लिंगम, ढूहर जैसे 7 से अधिक पौधों में कैंसर रोधी क्षमता का पता लगाया है।
कृषि में नवाचार: डॉ. दीपक शर्मा की उपलब्धियां
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रोफेसर डॉ. दीपक शर्मा पिछले 37 वर्षों से कृषि के क्षेत्र में कार्यरत हैं। वे कृषि जैव विविधता संरक्षण, संवर्धन, उपयोग, सुधार और पंजीकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। उनके मार्गदर्शन में 10 वर्षों में धान की 100 से अधिक स्थानीय प्रजातियों में सुधार कार्य किया गया है, जिनमें से 7 उन्नत किस्में भारत सरकार द्वारा किसानों के लिए जारी की जा चुकी हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ की 2000 से अधिक स्थानीय प्रजातियों को पौध किस्म संरक्षण एवं कृषक अधिकार प्राधिकरण, दिल्ली में पंजीकरण के लिए जमा किया है।
शोध और शिक्षण का समन्वय: डॉ. कल्लोल घोष
पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. कल्लोल घोष 37 वर्षों से शिक्षण कार्य कर रहे हैं। वे मूल विज्ञान केंद्र के निदेशक भी हैं। उन्होंने कीटनाशकों और जहरीले रसायनों को खत्म करने के लिए कई विधियाँ विकसित की हैं। उनके मार्गदर्शन में अब तक 33 से अधिक शोधार्थियों ने पीएचडी की है, जिनमें से अधिकांश अब शिक्षक हैं। उनके नाम से 240 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। वे मानते हैं कि यह व्यावहारिक ज्ञान का युग है, इसलिए वे शोध-उन्मुख शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपने 85 से अधिक लेक्चर वीडियो अपलोड किए हैं, जो विश्वभर में देखे जा सकते हैं।
जनजातीय भाषाओं के लिए AI ऐप: डॉ. संतोष कुमार
ट्रिपलआईटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संतोष कुमार ने 10 से अधिक पेटेंट फाइल किए हैं, जिनमें से लगभग 5 उन्हें मिल चुके हैं। कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के फैकल्टी डॉ. संतोष कंप्यूटर विजन, डिवाइस डिजाइन और एप्लीकेशन डेवलपमेंट जैसे विषयों पर काम करते हैं। हाल ही में उन्होंने एक ऐसा ऐप विकसित किया है, जो गोंडी और कई अन्य जनजातीय भाषाओं के बीच अनुवाद की सुविधा प्रदान करता है। राज्य सरकार द्वारा 'आदि वाणी' नाम से लॉन्च किया गया यह AI संचालित ऐप, कई अन्य भाषाओं पर भी काम कर रहा है। इसके अलावा, वे बीमारियों के शुरुआती निदान के लिए एक AI टूल विकसित कर रहे हैं, जो सिटी स्कैन, चेस्ट स्कैन और फेफड़ों की ध्वनियों की जांच कर सकता है। वे चैटजीपीटी की तरह ही एक लार्ज लैंग्वेज मॉडल भी तैयार कर रहे हैं। डॉ. संतोष कक्षा में पहले व्यावहारिक ज्ञान और फिर सिद्धांत पर जोर देते हैं, जिससे छात्रों को बेहतर प्लेसमेंट मिल सके।
शिक्षण में तकनीकी समावेश: डॉ. पीपी पल्तानी
ट्रिपलआईटी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पीपी पल्तानी पिछले 15 वर्षों से शिक्षण क्षेत्र में हैं। वे बच्चों को पढ़ाने के लिए पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ नवीन और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। उनका मानना है कि सीखना केवल किताबों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि अनुभव, प्रयोग और खोज के माध्यम से होना चाहिए। वे हर विषय को बच्चों के आस-पास की दुनिया और उनके अनुभवों से जोड़ने की कोशिश करते हैं। वे चर्चा, क्विज़ और समूह गतिविधियाँ आयोजित करते हैं ताकि बच्चे स्वयं सोचें और जवाब ढूंढें। वे सिमुलेशन टूल्स, मल्टीमीडिया प्रेजेंटेशन और इंटरेक्टिव प्लेटफॉर्म का उपयोग करके बच्चों की समझ को गहरा करते हैं। उनके नाम पर 4 पेटेंट हैं। वे शोध और पढ़ाई को एक-दूसरे का पूरक मानते हैं और छात्रों को छोटे शोध समस्याओं और नवाचार चुनौतियों के माध्यम से महत्वपूर्ण सोच और व्यावहारिक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करते हैं। वे वर्तमान में नए और किफायती मैटेरियल्स पर शोध कर रहे हैं जो सेमीकंडक्टर और सोलर सेल्स की दक्षता बढ़ा सकते हैं और लागत कम कर सकते हैं।
नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माता: डॉ. सौरभ गुप्ता
एनआईटी में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सौरभ गुप्ता स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी में लगभग 20 वर्षों से काम कर रहे हैं। उन्होंने एनआईटी में 'मेकर स्पेस', इनक्यूबेशन सेंटर और उद्यमिता पाठ्यक्रम शुरू करवाए। मेकर स्पेस राज्य का पहला ऐसा केंद्र था। उनका ध्यान एक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बनाने और छात्रों के लिए सुविधाएँ विकसित करने पर रहता है। वे अब राज्य में बायोडिजाइन पर काम शुरू कर रहे हैं, जिसमें स्वास्थ्य सेवा और स्पेस टेक से संबंधित पाठ्यक्रम और सुविधाएँ विकसित की जाएंगी। वे अपनी कक्षा में अनुभवात्मक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जहाँ छात्र करके सीखते हैं। वे छात्रों को अपने विषय से संबंधित नवीनतम वैश्विक कार्यों की जानकारी भी देते हैं। वे छात्रों को प्रत्येक कक्षा का पांच मिनट का वीडियो बनाने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं, जिससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ता है और वे केंद्रित रहते हैं। वे दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का समाधान करने के लिए लागत प्रभावी, पोर्टेबल चिकित्सा उपकरण विकसित कर रहे हैं।
Comments