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आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल के आवेदन पर दिल्ली हाई कोर्ट ने बताया कि रिटायरमेंट या ट्रांसफर के बाद सरकारी बंगला न खाली करने वाले जजों के खिलाफ कोई कार्रवाई नियम नहीं हैं।

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दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा—रिटायरमेंट के बाद बंगला न खाली करने वाले जजों पर कोई कार्रवाई नियम नहीं
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा—रिटायरमेंट के बाद बंगला न खाली करने वाले जजों पर कोई कार्रवाई नियम नहीं

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा—रिटायरमेंट के बाद बंगला न खाली करने वाले जजों पर कोई कार्रवाई नियम नहीं

नई दिल्ली— दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि सेवानिवृत्ति, स्थानांतरण या पदोन्नति के बाद सरकारी आवास खाली न करने वाले जजों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कोई नियम नहीं हैं। यह जानकारी सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में दी गई।

आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने अगस्त में हाई कोर्ट से यह जानकारी मांगी थी कि रिटायरमेंट या ट्रांसफर के बाद जज कितने समय तक बिना किराए के सरकारी आवास में रह सकते हैं और ऐसे मामलों में क्या नियम लागू होते हैं।

कोर्ट की आरटीआई सेल ने जवाब में कहा कि सरकारी आवास का रिटेंशन रिटायरमेंट के मामलों में 30 दिन और ट्रांसफर या प्रमोशन के मामलों में 90 दिन तक अनुमेय है। संबंधित दिशानिर्देशों के अनुसार यह अवधि बढ़ाई जा सकती है। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे दिशानिर्देश क्या हैं।

अग्रवाल ने आगे पूछा था कि निर्धारित अवधि समाप्त होने के बाद यदि कोई जज आवास खाली नहीं करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई के लिए क्या नियम हैं। इस पर कोर्ट ने कहा, “ऐसे कोई नियम मौजूद नहीं हैं।” आरटीआई सेल ने यह भी कहा कि मांगी गई जानकारी आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(b) और 8(1)(g) के तहत खुलासा करने से छूट प्राप्त है।

कोर्ट ने इस मामले से संबंधित फाइल नोटिंग्स साझा करने से भी इनकार किया।

अग्रवाल ने *टाइम्स ऑफ इंडिया* से बातचीत में कहा कि उन्होंने इस जवाब के खिलाफ अपील दायर कर दी है। उन्होंने कहा, “यह समझना कठिन है कि धारा 8(1)(b) का उपयोग इस मामले में कैसे किया गया। मैंने तर्क दिया है कि आरटीआई अधिनियम ऐसे मामलों में भी जानकारी का खुलासा करने की अनुमति देता है जहां जनता का जानने का अधिकार बड़े सार्वजनिक हित की पूर्ति करता हो।”

अग्रवाल की अपील पर आगे की सुनवाई आने वाले हफ्तों में होने की संभावना है।

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