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 छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक ऐसे घटनाक्रम ने हलचल मचा दी है, जो सीधे तौर पर सत्ता के गलियारों में संवादहीनता और पहुंच की मुश्किलों को उजागर करता है। राज्य के वित्त मंत्री ओपी चौधरी, जो सीधे कलेक्टर से मंत्री पद तक पहुंचे हैं, पर अब आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने जनता और यहां तक कि अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से दूरी बना ली है।

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 "जनता के मंत्री" की बढ़ी दूरी? भाजपा नेताओं की 'बिना मुलाकात' लौटना बना चर्चा का विषय

 वित्त मंत्री ओपी चौधरी से मिलने पहुंचे पूर्व विधायक और डॉक्टर, आधे घंटे इंतजार के बाद भी नहीं हुई मुलाकात; पार्टी के अंदर ही उठने लगे सवाल

रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक ऐसे घटनाक्रम ने हलचल मचा दी है, जो सीधे तौर पर सत्ता के गलियारों में संवादहीनता और पहुंच की मुश्किलों को उजागर करता है। राज्य के वित्त मंत्री ओपी चौधरी, जो सीधे कलेक्टर से मंत्री पद तक पहुंचे हैं, पर अब आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने जनता और यहां तक कि अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से दूरी बना ली है। एक हालिया घटना ने इन आरोपों को और बल दिया है, जब भारतीय जनता पार्टी के ही एक वरिष्ठ नेता और डॉक्टरों का एक प्रतिनिधिमंडल, पूर्व विधायक डॉ. विमल चोपड़ा के नेतृत्व में, वित्त मंत्री से उनके बंगले पर मुलाकात किए बिना ही निराश होकर लौट गया।

आधी घंटे का इंतज़ार, फिर भी नहीं मुलाकात

जानकारी के अनुसार, डॉ. विमल चोपड़ा (पूर्व विधायक), डॉ. अशोक त्रिपाठी, डॉ. अखिलेश दुबे, डॉ. कृष्णदास मानिकपुरी, डॉ. मनीष ठाकुर, डॉ. मनोज ठाकुर, डॉ. साहू सहित अन्य चिकित्सकों का प्रतिनिधिमंडल, मंत्री ओपी चौधरी से मिलने के लिए उनके निजी सचिव (पीए) से समय लेकर पहुंचा था। नियत समय पर पहुंचने के बाद भी, उन्हें मंत्री के बंगले में लगभग पौन घंटे (45 मिनट) तक इंतजार करना पड़ा। हैरानी की बात यह है कि इस लंबे इंतजार के बावजूद, उनकी मुलाकात वित्त मंत्री से नहीं हो पाई। अंततः, निराश होकर उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा।

प्रतिनिधिमंडल ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए एक लिखित चिट्ठी मंत्री के बंगले पर छोड़ दी, जिसमें इस उपेक्षा का स्पष्ट जिक्र था। इस घटना ने भाजपा के अंदर ही चर्चा और असंतोष को जन्म दे दिया है कि जब पार्टी के अपने ही वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियों को इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, तो आम कार्यकर्ता और जनता के लिए मंत्री के दरवाजे कितने खुले होंगे, यह समझना मुश्किल नहीं है।

'जनता के मंत्री' से 'सत्ता सेवक' तक का सफ़र?

ओपी चौधरी को भाजपा ने बिना अधिक राजनीतिक संघर्ष के सीधे मंत्री पद और प्रदेश के सबसे ताक़तवर चेहरों में से एक बना दिया। एक प्रशासक से राजनेता बने चौधरी से जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं को काफी उम्मीदें थीं। लेकिन, इस घटना ने उनकी जन-संपर्क शैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पार्टी के अंदरखाने से आवाज़ें उठने लगी हैं कि एक कलेक्टर के तौर पर जनता से सीधा जुड़ाव रखने वाले चौधरी, मंत्री बनने के बाद शायद उस जुड़ाव को बरकरार नहीं रख पा रहे हैं।

यह उपेक्षा केवल इस प्रतिनिधिमंडल तक ही सीमित नहीं है। हाल ही में, पूर्व युवा मोर्चा अध्यक्ष रवि भगत के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी आवाज़ उठाई और जिसकी कीमत उन्हें अपने पद से हटकर चुकानी पड़ी। ये घटनाएं पार्टी के भीतर बढ़ते असंतोष और संवादहीनता की ओर इशारा करती हैं।

आम जनता का हाल और भी बुरा?

यदि पार्टी के अपने ही नेता और कार्यकर्ता मंत्रियों से नहीं मिल पा रहे हैं, तो आम जनता की स्थिति और भी विकट हो सकती है। राज्य में रोजगार के वादे केवल भाषणों तक सीमित बताए जा रहे हैं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) कर्मियों के स्थायीकरण का मुद्दा अभी भी खजाने में दबा हुआ है, और बिजली के बढ़े हुए बिलों ने महतारी वंदन योजना के प्रभाव को भी कम कर दिया है। ऐसे कई ज्वलंत मुद्दे हैं जिन पर जनता सरकार से सीधे संवाद और समाधान चाहती है।

राजनीति विश्लेषकों का मानना है कि एक सच्चा जननेता वही होता है जो हर साथी और जनता से संवाद बनाए रखता है। ऊँचे बंगले, पीए की चौखट और लंबे इंतजार की प्रक्रियाएं जनसेवक नहीं, बल्कि सत्ता सेवक की पहचान मानी जाती हैं। यदि अपने ही सम्मानित नहीं होंगे, तो आम जनता की बारी क्या बाकी रहेगी, यह एक बड़ा सवाल है जो अब छत्तीसगढ़ की राजनीति के गलियारों में गूंज रहा है। यह घटनाक्रम निश्चित रूप से आगामी समय में भाजपा के भीतर और बाहर भी गहरी चर्चा का विषय बनेगा।

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