कांकेर शिक्षा विभाग में हलचल: क्या अब 'मलाई वाली कुर्सी' का खेल खत्म?

कांकेर जिले के शिक्षा विभाग में इन दिनों 'मलाई वाली कुर्सियों' पर बैठे अधिकारियों को लेकर बड़ी हलचल मची हुई है। एक तरफ जहां लंबे समय से चली आ रही धांधलियों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक और अधिकारी दबाव के चलते कई मामले ठंडे बस्ते में पड़े हुए हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस बार आदेशों का पालन होगा या फिर जुगाड़ से 'मलाई वाली कुर्सियां' बची रहेंगी?

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अनुराग उपाध्याय/कांकेर:-  

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कांकेर शिक्षा विभाग में हलचल: क्या अब 'मलाई वाली कुर्सी' का खेल खत्म?, कांकेर जिले के शिक्षा विभाग में इन दिनों 'मलाई वाली कुर्सियों' पर बैठे अधिकारियों को लेकर बड़ी हलचल मची हुई है। एक तरफ जहां लंबे समय से चली आ रही धांधलियों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक और अधिकारी दबाव के चलते कई मामले ठंडे बस्ते में पड़े हुए हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस बार आदेशों का पालन होगा या फिर जुगाड़ से 'मलाई वाली कुर्सियां' बची रहेंगी?

'मलाई वाली कुर्सी' और करोड़ों का खेल

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बताया जा रहा है कि शिक्षा विभाग में कुछ अधिकारी लंबे समय से 'मलाई वाली कुर्सी' पर बैठकर करोड़ों रुपये कमा चुके हैं। यहां तक कि रायपुर में छापामार विभाग की जांच में भी इसका जिक्र समय-समय पर होता रहा है। स्कूलों की मरम्मत और अतिरिक्त कमरों के निर्माण के नाम पर पूरे जिले में सिर्फ लीपापोती की गई और ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुँचाया गया। अब इन अधिकारियों के हटने के बाद ही इन फाइलों के खुलने की उम्मीद जगी है।

राजनीतिक और अधिकारी दबाव में दबे मामले

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इन अधिकारियों को हटाने की मुहिम काफी लंबे समय से चल रही थी, लेकिन राजनीतिक दलों और बड़े अधिकारियों के दबाव के कारण ये सभी बचे हुए थे। इसका सीधा मतलब है कि 'सब चलता है' की मानसिकता बनी हुई थी। अब देखना यह है कि क्या यह दबाव इस बार भी कायम रहेगा या पारदर्शिता को तरजीह मिलेगी।

आत्मानंद स्कूलों में गड़बड़ी की अनसुलझी फाइलें

जिले के आत्मानंद इंग्लिश और हिंदी स्कूलों में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायतें सामने आई थीं। इन शिकायतों की जांच शुरू भी हुई थी, लेकिन वे फाइलें किस बड़े अफसर की टेबल के नीचे धूल खा रही हैं, यह एक बड़ा सवाल है। बताया जा रहा है कि यहां भी 'अच्छा हिसाब-किताब' हुआ है। यदि आप आरटीआई (सूचना का अधिकार) लगाकर पूछते हैं, तो शायद 'हिसाब-किताब बराबर' हो जाए, जैसा कि अक्सर होता आया है।

'अटैचमेंट और युक्तियुक्तकरण' ने खोली पोल

'अटैचमेंट और युक्तियुक्तकरण' के खेल का भंडाफोड़ न होता तो शायद शिक्षा विभाग के बाकी मामले ठंडे बस्ते में ही पड़े रहते। लेकिन रायपुर से आई एक चिट्ठी ने सही समय पर आकर पूरे मामले को अब 'शिक्षा विभाग' के पाले में डाल दिया है। देखना यह होगा कि वर्षों से जमे अधिकारियों को हटाने के लिए संबंधित अधिकारियों को कितना वक्त और लगेगा। क्या इस बार वाकई में 'जुगाड़' नहीं चलेगा और खबर वायरल होने का डर अधिकारियों को सही फैसले लेने पर मजबूर करेगा?

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

Dr. Tarachand Chandrakar is a respected journalist with decades of experience in reporting and analysis. His deep knowledge of politics, society, and regional issues brings credibility and authority to Nidar Chhattisgarh. Known for his unbiased reporting and people-focused journalism, he ensures that readers receive accurate and trustworthy news.

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