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अनुराग उपाध्याय/कांकेर :-
कांकेर : छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले का शिक्षा विभाग एक बार फिर गंभीर आरोपों के घेरे में है। युक्तियुक्तकरण के अभी अधर में लटके विवाद के बीच, विभाग पर नई नियुक्तियों में अनियमितताओं और सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में स्कूल भवनों के निर्माण में व्यापक भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। ये आरोप इतने गंभीर हैं कि इनकी भनक नवनियुक्त शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव तक पहुंचाई जा चुकी है, और राजधानी रायपुर में होने वाली उनकी आगामी महत्वपूर्ण बैठक में कुछ अधिकारियों पर गाज गिरने की प्रबल संभावना है।
विवादों का नया अध्याय: नियुक्तियों में धांधली के आरोप
जिला शिक्षा विभाग, कांकेर, जो पिछले कुछ समय से शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण (रैशनलाइजेशन) को लेकर जूझ रहा है, अब नियुक्तियों को लेकर एक और बड़े विवाद में उलझ गया है। सूत्रों के अनुसार, कुछ शिक्षक संगठनों में इन नई नियुक्तियों को लेकर भारी नाराजगी है। उनकी शिकायत है कि इन नियुक्तियों में नियमों का उल्लंघन किया गया है और पारदर्शिता का अभाव है। ये संगठन जल्द ही बड़े आंदोलन और प्रदर्शन की तैयारी में हैं, और यदि इन आरोपों का संतोषजनक समाधान नहीं होता है, तो वे मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री तक "ठोस सबूतों" के साथ अपनी बात पहुंचाने की धमकी दे रहे हैं।
यह स्थिति जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को मीडिया के माध्यम से बताई गई है, लेकिन अभी तक कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। स्थानीय सांसद और विधायक इस मामले पर क्या रुख अपनाते हैं, यह देखना बाकी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि यदि ये आरोप सही साबित होते हैं, तो यह विभाग की साख पर एक बड़ा धब्बा होगा।
स्कूल निर्माण में घोटाले: आदिवासी क्षेत्रों को चूना
नियुक्तियों में धांधली के आरोपों के साथ-साथ, विभाग पर एक और गंभीर आरोप लगा है – जिले के अतिसंवेदनशील और सुदूर आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्कूलों की मरम्मत और अतिरिक्त कमरों के निर्माण में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और घोटाले का। दैनिक अखबारों में इन घोटालों से जुड़ी खबरें लगातार प्रकाशित हो रही हैं और सोशल मीडिया पर भी ये मामले खूब वायरल हो रहे हैं। इसके बावजूद, इन मामलों पर "पर्दा" डालने की कोशिश की जा रही है।
यह विडंबना ही है कि जिले के तमाम बड़े नेता, चाहे वे सत्ता पक्ष के हों या विपक्ष के, इस इतने बड़े भ्रष्टाचार और घोटाले पर मौन धारण किए हुए हैं। उनकी चुप्पी ने स्थानीय निवासियों और शिक्षक संगठनों के बीच जबरदस्त नाराजगी पैदा की है। लोगों का मानना है कि यदि उनके जन प्रतिनिधि ही इन मुद्दों पर आवाज़ नहीं उठाएंगे, तो इंसाफ कैसे मिलेगा? मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री तक इन शिकायतों को पहुंचाने में हो रही देरी भी इस नाराजगी को और बढ़ा रही है।
शिक्षा मंत्री की बैठक: क्या कुछ अधिकारियों पर गिरेगी गाज?
कल, रायपुर में मंत्रालय में, शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव पूरे शिक्षा विभाग से जुड़े तमाम अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक लेने जा रहे हैं। इस बैठक का एजेंडा अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन कांकेर के इन गंभीर आरोपों को देखते हुए, ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि कुछ अधिकारियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई हो सकती है। इन आरोपों से जुड़े "दस्तावेज और अखबारों की कतरनें" शिक्षा मंत्री को सौंपने की तैयारी भी की जा रही है, ताकि इन मामलों की गहन जांच शुरू की जा सके और दोषियों को उनके पदों से हटाया जा सके।
एक विभाग जो हमेशा सवालों के घेरे में
कांकेर का जिला शिक्षा विभाग लंबे समय से विभिन्न कारणों से विवादों में रहा है। शिक्षकों के स्थानांतरण, नियुक्तियों, पदोन्नति और विकास कार्यों में पारदर्शिता की कमी के आरोप अक्सर लगते रहे हैं। यह स्थिति न केवल शिक्षा के स्तर को प्रभावित करती है, बल्कि छात्रों और शिक्षकों के मनोबल पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में भ्रष्टाचार और अनियमितताएं सीधे तौर पर भविष्य की पीढ़ियों के साथ खिलवाड़ है।
आंदोलन की राह पर शिक्षक संगठन
शिक्षक संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि उनकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया गया और इन आरोपों की निष्पक्ष जांच नहीं हुई, तो वे चुप नहीं बैठेंगे। बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन, घेराव और आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही है। उनका लक्ष्य है कि इन मामलों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया जाए और मुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री सीधे हस्तक्षेप कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करें।
आगे क्या?
आने वाले दिन कांकेर के जिला शिक्षा विभाग के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं। शिक्षा मंत्री की बैठक, शिक्षक संगठनों के संभावित आंदोलन और मीडिया कवरेज इस मामले को और गरमा सकते हैं। यह देखना होगा कि क्या इस बार विभाग अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए गंभीर कदम उठाता है, या फिर "पर्दा डालने" की पुरानी प्रथा जारी रहती है।
यह मामला केवल कांकेर जिले तक ही सीमित नहीं है; यह छत्तीसगढ़ के उन दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों में विकास कार्यों की गुणवत्ता और जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है, जहां अक्सर निगरानी और पारदर्शिता की कमी का फायदा उठाकर भ्रष्टाचार किया जाता है। यदि इन आरोपों की गहन जांच होती है और दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है, तो यह पूरे राज्य में एक सकारात्मक संदेश देगा कि "साफ़ दामन का दौर अब खत्म हुआ, लोग अब अपने धब्बों पर भी गरूर नहीं कर पाएंगे।" शिक्षा के पवित्र क्षेत्र को भ्रष्टाचार के इन कलंकों से मुक्त कराना बेहद आवश्यक है।
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