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खाद कालाबाजारी पर बड़ा खुलासा: 42 दिनों तक यूरिया रोके रखा, अन्नदाताओं का शोषण | अधिकारी-ट्रांसपोर्टर की मिलीभगत

जिले में खाद घोटाले का पर्दाफाश! रैक पॉइंट से सोसायटियों तक पहुंचने में यूरिया को लगे 42 दिन. किसानों की चीख-पुकार के बाद जागा प्रशासन, कालाबाजारी पर हुई कार्रवाई. पूरी रिपोर्ट पढ़ें.

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खाद घोटाला: 'अन्नदाता' बेहाल, अधिकारी मालामाल - 42 दिनों तक यूरिया पर कुंडली मार कर बैठे ट्रांसपोर्टर, अब जाकर जागा प्रशासन

देश का 'अन्नदाता' जब खेतों में पसीना बहाकर देश का पेट भरता है, तो उसकी उम्मीदें सरकार और प्रशासन से सीधा और समय पर समर्थन पाने की होती हैं। लेकिन जब यही उम्मीदें भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन की भेंट चढ़ जाती हैं, तो स्थिति भयावह हो उठती है। हाल ही में एक ऐसे ही खाद घोटाले का पर्दाफाश हुआ है, जिसने जिले में कृषि व्यवस्था की रीढ़ हिला दी है। यह सिर्फ खाद की कमी का मामला नहीं है, बल्कि आला अधिकारियों की कथित मिलीभगत, ट्रांसपोर्टरों की मनमानी और किसानों की बेबसी की एक दर्दनाक दास्तान है। 42 दिनों तक 2500 बोरी यूरिया को ट्रांसपोर्टरों ने रोके रखा, जबकि किसान खाद के लिए दर-दर भटकते रहे, गिड़गिड़ाते रहे। यह दिखाता है कि कैसे सिस्टम की खामियों का फायदा उठाकर कुछ लोग अपने स्वार्थ साधते हैं और इसका खामियाजा सीधे-सीधे गरीब किसान को भुगतना पड़ता है।

घटना का विस्तृत विश्लेषण: कौन, क्या, कब, कहाँ, क्यों और कैसे

क्या हुआ?
जिले में खाद की भयंकर कालाबाजारी सामने आई है। रैक पॉइंट से सोसायटियों तक पहुंचाई जाने वाली करीब 2500 बोरी यूरिया को ट्रांसपोर्टरों ने 42 दिनों तक अपने पास रोके रखा। इस दौरान किसानों को खाद के लिए भारी परेशानी का सामना करना पड़ा और बाजार में यूरिया ऊंचे दामों पर बिकी। बाद में, किसानों के बढ़ते दबाव और मीडिया में खबर आने के बाद प्रशासन हरकत में आया और कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की।

कौन शामिल था?
इस पूरे खेल में मुख्य रूप से पांच कंपनियों - इफको, क्रिप्टो, चंबल, कौरव मंडल और एचयूआरएल (हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड) के चार ट्रांसपोर्टर (शुभम बिरला, क्रिप्टो भाटी ट्रांसपोर्टर, मारूती रोड लाइंस, और चौहान ट्रांसपोर्टर) शामिल थे। शुरुआती जांच में यह बात भी सामने आई है कि जिला प्रशासन, पुलिस, कृषि, डीएमओ (जिला विपणन अधिकारी) और जिला केंद्रीय सहकारी बैंक की जिला टास्क फोर्स को इसकी जानकारी होने के बावजूद उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। अब, एक टेंट व्यवसायी सद्दाम पठान के खिलाफ 740 बोरी यूरिया अवैध रूप से छिपाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है।

कब हुआ?
खाद रैक पॉइंट से 30 जून को जारी हुई थी, लेकिन 11 अगस्त तक भी ट्रांसपोर्टरों ने इसे सोसायटियों तक नहीं पहुंचाया। यानी, लगभग 42 दिनों तक यूरिया ट्रांसपोर्टरों के पास जमा रही। यह चौंकाने वाला तथ्य है कि इस पूरे समय में संबंधित अधिकारियों ने कोई सुध नहीं ली।

कहाँ हुआ?
यह पूरा घोटाला जिले के विभिन्न सोसायटियों, जिनमें बीड़ा, बीड़, सोमगांव खुर्द और सत्तापुर शामिल हैं, के लिए आवंटित खाद को लेकर हुआ। बाद में छैगांवमाखन में टेंट व्यवसायी सद्दाम पठान के घर से भारी मात्रा में अवैध रूप से भंडारित खाद जब्त की गई।

क्यों हुआ?
इस कालाबाजारी के पीछे मुख्य कारण मुनाफे की अंधी दौड़ और सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार है। जब किसानों को समय पर खाद नहीं मिलती है, तो वे मजबूरी में अधिक दाम चुकाने को तैयार हो जाते हैं। ट्रांसपोर्टरों ने इसी स्थिति का फायदा उठाया और अधिकारियों की कथित मिलीभगत से खाद को रोके रखा, ताकि उसे अधिक कीमतों पर बेचा जा सके।

कैसे हुआ?
रैक पॉइंट से खाद जारी होने के बाद उसे सोसायटियों तक पहुंचने में आमतौर पर 2 से 3 घंटे लगते हैं। लेकिन, इस मामले में 42 दिनों तक यूरिया को रोक कर रखा गया। जब केंद्रीय सहकारी बैंक के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को इस मामले की जानकारी मिली और उन्होंने डीएमओ कार्यालय को रिपोर्ट भेजी, तब पता चला कि ट्रांसपोर्टरों द्वारा जमा की गई पावती (रसीद) फर्जी थी। इसके बाद ही पत्रिका ने इस मुद्दे को उठाया और प्रशासन हरकत में आया।

प्रशासन की भूमिका और किसानों की प्रतिक्रिया

यह बेहद चिंताजनक है कि 15 अगस्त तक, जब किसान खाद के लिए परेशान थे, अधिकारी यह दावा करते रहे कि "सब कुछ ठीक चल रहा है।" यहां तक कि कलेक्टर को डबल लॉक का भ्रमण कराकर वितरण की "सही" तस्वीर भी दिखाई गई। यह स्थिति तब बदली जब किसानों ने कलेक्ट्रेट में डेरा डाला और अपना विरोध दर्ज कराया। किसानों के बढ़ते दबाव के बाद ही जिम्मेदार फील्ड में उतरे और कालाबाजारी करने वालों के गोदामों पर छापामार कार्रवाई और एफआईआर दर्ज करने का सिलसिला शुरू हुआ।

किसान लक्ष्मी नारायण, शकील मंसूरी और धर्मेंद्र सिंह राई जैसे कई किसान दो दिन पहले टोकन लेकर भी डीएपी नहीं मिलने से निराश होकर लौटे। यह दिखाता है कि प्रशासन की निष्क्रियता ने किस हद तक अन्नदाताओं को हताश किया है।

अधिकारियों के बयान और विरोधाभास

डीएमओ श्वेता सिंह का कहना है कि संज्ञान में आने पर प्रारंभिक जांच की गई और संदिग्ध रिपोर्ट मिलने पर पद्मनगर थाने में तहरीर दी गई है। वहीं, केंद्रीय सहकारी बैंक के मुख्य कार्यपालन अधिकारी आलोक यादव ने दावा किया कि उन्होंने 11 अगस्त को ही डीएमओ कार्यालय को जांच प्रतिवेदन भेज दिया था और उनके यहां से भुगतान नहीं हुआ है। प्रभारी डीडीए नितेश यादव ने बताया कि सोसायटियों के मामले में जानकारी सामने आने पर डीएमओ ने केस दर्ज कराया है और कृषि अमला लगातार फील्ड में कार्रवाई कर रहा है।

इन बयानों में एक विरोधाभास साफ नजर आता है। यदि बैंक के अधिकारी ने 11 अगस्त को ही रिपोर्ट भेज दी थी, तो प्रशासन को 42 दिनों तक चुप्पी क्यों साधे रखनी पड़ी? क्या यह सिर्फ 'अनदेखा' करना था या इसमें किसी बड़े गठजोड़ की भूमिका थी, जिसकी जांच होनी अभी बाकी है?

आगे की राह: पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता

इस घटना ने एक बार फिर कृषि आपूर्ति श्रृंखला में पारदर्शिता और जवाबदेही की महत्ता को उजागर किया है। यह आवश्यक है कि खाद वितरण प्रणाली को डिजिटल बनाया जाए, ताकि रैक पॉइंट से लेकर किसान तक खाद के हर चरण की निगरानी हो सके। दोषी अधिकारियों और ट्रांसपोर्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसानों को समय पर और सही दाम पर खाद मिले, ताकि उनकी मेहनत का उचित प्रतिफल मिल सके।

यह मामला केवल एक खाद घोटाले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शासन-प्रशासन के रवैये पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। यदि किसानों को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी आंदोलन करना पड़े, तो यह लोकतंत्र के लिए एक चिंताजनक स्थिति है। इस पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए ताकि सभी दोषियों को बेनकाब किया जा सके और किसानों के हितों की रक्षा सुनिश्चित हो सके।

जिले में सामने आया यह खाद घोटाला किसानों के प्रति प्रशासन की उदासीनता और सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार का एक जीता-जागता प्रमाण है। 42 दिनों तक यूरिया पर कुंडली मारकर बैठे ट्रांसपोर्टर और उनकी कथित सरपरस्ती करने वाले अधिकारियों ने न सिर्फ किसानों को आर्थिक नुकसान पहुंचाया, बल्कि उनके विश्वास को भी तोड़ा है। हालांकि अब कुछ कार्रवाई हुई है, लेकिन यह केवल शुरुआत भर है। जब तक इस पूरे नेक्सस को जड़ से खत्म नहीं किया जाता और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा नहीं मिलती, तब तक अन्नदाता का शोषण जारी रहेगा। यह समय है कि सरकार और प्रशासन एकजुट होकर किसानों के हक के लिए खड़े हों और उन्हें वह सम्मान और समर्थन दें जिसके वे हकदार हैं।

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

Dr. Tarachand Chandrakar is a respected journalist with decades of experience in reporting and analysis. His deep knowledge of politics, society, and regional issues brings credibility and authority to Nidar Chhattisgarh. Known for his unbiased reporting and people-focused journalism, he ensures that readers receive accurate and trustworthy news.

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