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छत्तीसगढ़ के कोरबा में 14 वर्षीय नाबालिग के अपहरण को दो माह बीते, पुलिस की सुस्त कार्रवाई से गैर-राजनीतिक संगठन आक्रोशित। परिवार को बिहार में मिली धमकियाँ, मानवाधिकार संगठनों से मदद की गुहार।

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कोरबा अपहरण मामला: 14 वर्षीय नाबालिग के लापता होने पर गहराया रहस्य, पुलिस निष्क्रियता पर जन आक्रोश
कोरबा अपहरण मामला: 14 वर्षीय नाबालिग के लापता होने पर गहराया रहस्य, पुलिस निष्क्रियता पर जन आक्रोश

कोरबा अपहरण मामला: 14 वर्षीय नाबालिग के लापता होने पर गहराया रहस्य, पुलिस निष्क्रियता पर जन आक्रोश

कोरबा: दीपका के विजयनगर से एक 14 वर्षीय नाबालिग लड़की के अपहरण का मामला अब एक गंभीर मोड़ ले चुका है, जिसने न केवल स्थानीय प्रशासन पर सवाल उठाए हैं, बल्कि अंतरराज्यीय अपराध और पुलिस सहयोग की चुनौतियों को भी उजागर किया है। घटना को दो महीने से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन कोरबा पुलिस के हाथ अभी भी खाली हैं, जिससे पीड़ित परिवार और एक गैर-राजनीतिक संगठन, छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना में गहरा आक्रोश है। संगठन ने पुलिस अधीक्षक (एसपी) को पत्र लिखकर त्वरित जांच और आरोपी की गिरफ्तारी की मांग की है, साथ ही न्याय न मिलने पर बड़े पैमाने पर आंदोलन की चेतावनी भी दी है।

गुमशुदगी से अपहरण तक: घटनाक्रम और प्रारंभिक जांच

मामला 19 जुलाई, 2025 का है, जब दीपका के विजयनगर इलाके से 14 वर्षीय किशोरी अचानक लापता हो गई। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, आरोपी बिहार के सहरसा जिले के बनगांव थाना क्षेत्र का निवासी बताया जा रहा है, जो नल जल योजना के तहत मजदूरी करने विजयनगर आया था। ऐसा आरोप है कि उसने नाबालिग के परिवार का विश्वास जीता और फिर उसे बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गया। परिजनों ने 21 जुलाई को ही दीपका थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन उसके बाद से जांच की गति संतोषजनक नहीं रही है।

पीड़ित परिवार ने बताया कि इस दौरान उन्हें अपनी बेटी से दो-तीन बार फोन पर बात करने का मौका मिला, लेकिन हर बार बात अधूरी रह गई और फोन छीन लिया गया। इन संक्षिप्त बातचीत ने परिवार की चिंता को और बढ़ा दिया है, क्योंकि उन्हें अब मानव तस्करी की गहरी आशंका है। "हमारी बेटी की जिंदगी दांव पर लगी है, लेकिन पुलिस चुप्पी साधे हुए है," परिवार के एक सदस्य ने व्यथित होकर कहा। यह बयान पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है, खासकर जब मामला एक नाबालिग की सुरक्षा से जुड़ा हो।

बिहार में धमकियां: न्याय की राह में रोड़े

अपनी बेटी की तलाश में दर-दर भटकते परिवार ने खुद बिहार के सहरसा जिले के बनगांव थाने का रुख किया, जहां आरोपी का मूल निवास बताया जा रहा है। हालांकि, वहां उन्हें सहयोग के बजाय चौंकाने वाली धमकियां मिलीं। परिवार के सदस्यों के अनुसार, बनगांव थाने के अधिकारियों ने कथित तौर पर उनसे कहा, "तुम लोग जिंदा वापस नहीं जा पाओगे।" उन्हें यह भी सलाह दी गई कि वे पुलिस के साथ आएं, तभी उनकी सुरक्षा संभव है। यह घटनाक्रम न केवल पीड़ित परिवार के लिए एक भयावह अनुभव था, बल्कि इसने पुलिस की अखंडता और अंतरराज्यीय सहयोग की कमजोरियों को भी उजागर किया है। एक ओर जहां एक परिवार न्याय की गुहार लगा रहा है, वहीं दूसरी ओर उन्हें कानून प्रवर्तन एजेंसियों से ही खतरे का सामना करना पड़ रहा है।

छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना का दखल: न्याय के लिए संघर्ष

पुलिस की सुस्त कार्रवाई और बिहार में मिली धमकियों से हताश परिवार को अब गैर-राजनीतिक संगठन छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना का साथ मिला है। यह संगठन छत्तीसगढ़िया हितों, संस्कृति और समाज में अन्याय-शोषण के खिलाफ सक्रिय रूप से काम करता है। संगठन के प्रदेश संगठन मंत्री उमागोपाल ने इस गंभीर मामले को उठाते हुए एसपी कोरबा को एक विस्तृत पत्र लिखा है, जिसमें निम्नलिखित मुख्य मांगें रखी गई हैं:

  1. तत्काल गिरफ्तारी और कार्रवाई: आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी और उसके संभावित सहयोगियों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई।

  2. सुरक्षित बरामदगी: नाबालिग लड़की की सुरक्षित बरामदगी और उसे जल्द से जल्द परिवार को सौंपना।

  3. मानव तस्करी की जांच: मानव तस्करी की आशंका की गहन और निष्पक्ष जांच, दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा।

  4. धमकियों की जांच: बिहार के बनगांव थाने में परिवार को दी गई धमकियों की विस्तृत जांच और संबंधित अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई।

  5. नियमित अपडेट: मामले की प्रगति पर परिवार और संगठन को नियमित और पारदर्शी जानकारी प्रदान करना।

संगठन ने अपने पत्र में स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई, तो वे पीड़ित परिवार और स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर एसपी कार्यालय का घेराव करेंगे। साथ ही, इस मामले को छत्तीसगढ़ राज्य बाल संरक्षण आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग जैसे उच्च न्यायिक एवं मानवाधिकार संस्थानों तक ले जाने की भी बात कही गई है।

पुलिस की प्रतिक्रिया और आगे की राह

कोरबा एसपी कार्यालय से अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। दीपका थाने के सूत्रों ने बताया है कि जांच अभी भी जारी है, लेकिन किसी भी गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं की गई है। नाबालिग होने के कारण पीड़िता का नाम और उसके परिवार के सदस्यों के नाम गोपनीय रखे गए हैं।

यह मामला केवल एक गुमशुदा लड़की की तलाश का नहीं है, बल्कि यह अंतरराज्यीय पुलिस सहयोग की आवश्यकता, बाल सुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता और समाज में व्याप्त मानव तस्करी के खतरे को भी दर्शाता है। छत्तीसगढ़ में नाबालिगों के खिलाफ बढ़ते अपराधों के बीच, हाल ही में कोरबा में एक अन्य नाबालिग गैंगरेप मामले में पांच आरोपियों को फांसी की सजा सुनाया जाना, समाज में सख्त सजा की मांग को और बल देता है।

पीड़ित परिवार और छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना की मांग है कि इस मामले में न्याय हो और दोषियों को सजा मिले। यदि पुलिस प्रशासन इस मामले में तेजी नहीं दिखाता है, तो यह केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन बन सकता है, जिसकी गूंज राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सुनाई देगी। अब देखना यह है कि कोरबा पुलिस कब तक इस रहस्य को सुलझा पाती है और क्या वह पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने में सफल हो पाती है। न्याय में देरी, अन्याय के समान है, और इस मामले में, हर बीतता दिन एक 14 वर्षीय बच्ची की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है।


 

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    Dr. Tarachand Chandrakar

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