कोरबा शिक्षक निलंबन: युक्तियुक्तकरण के बाद ज्वाइनिंग न करने पर कड़ा एक्शन

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में युक्तियुक्तकरण के बावजूद नए स्कूलों में पदभार ग्रहण न करने वाले चार शिक्षकों को निलंबित कर दिया गया है। दर्जनों अन्य शिक्षकों का वेतन रोका गया, जो शिक्षा व्यवस्था में सुधार के प्रयासों के बीच एक सख्त संदेश है।

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कोरबा में 'नो ज्वाइनिंग' शिक्षकों पर गिरी गाज, 4 निलंबित, दर्जनों का वेतन रोका

कोरबा : शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने की दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा उठाए गए "युक्तियुक्तकरण" (Rationalisation) कदम के बाद भी नए स्थानों पर पदभार ग्रहण न करने वाले शिक्षकों पर अब कड़ी कार्रवाई की जा रही है। कोरबा जिले से आ रही यह बड़ी खबर शिक्षा विभाग में हड़कंप मचाने वाली है, जहां चार शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है, वहीं दर्जनों अन्य शिक्षकों का दो महीने का वेतन रोक दिया गया है। यह कार्रवाई उन शिक्षकों के लिए एक स्पष्ट संदेश है जो सरकारी निर्देशों को अनदेखा कर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

आखिर क्या है युक्तियुक्तकरण का मामला?

दरअसल, शिक्षा के अधिकार को प्रभावी ढंग से लागू करने और छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार ने युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया शुरू की थी। इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य उन स्कूलों में शिक्षकों की कमी को पूरा करना था जहाँ शिक्षकों की संख्या या तो नगण्य थी (शिक्षक विहीन विद्यालय) या केवल एक शिक्षक कार्यरत था (एकल शिक्षकीय विद्यालय)। अक्सर देखा गया है कि शहरी या सुविधाजनक स्थानों पर शिक्षकों की संख्या अधिक होती है, जबकि दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को पर्याप्त शिक्षक नहीं मिल पाते। इसी विषमता को दूर करने के लिए अतिशेष (Surplus) शिक्षकों को ऐसे जरूरतमंद स्कूलों में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया था।

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कोरबा जिले में भी इस प्रक्रिया के तहत प्राथमिक शाला के 292 सहायक शिक्षक और 15 प्रधान पाठक, जबकि माध्यमिक शाला के 153 शिक्षक और प्रधान पाठक अतिशेष के रूप में चिन्हांकित किए गए थे। जिला स्तरीय युक्तियुक्तकरण समिति ने इन शिक्षकों को दूरस्थ अंचलों में स्थित एकल शिक्षकीय और शिक्षक विहीन विद्यालयों में पदस्थ करने का निर्णय लिया। यह निर्णय ओपन काउंसलिंग के माध्यम से लिया गया था ताकि प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे।

अस्वीकृति और अदालती हस्तक्षेप: एक लंबी कानूनी लड़ाई

जैसा कि अक्सर ऐसे बड़े प्रशासनिक निर्णयों में होता है, पदस्थापना आदेशों से असंतुष्ट कई शिक्षकों ने जिला स्तरीय समिति के समक्ष अभ्यावेदन (Representation) प्रस्तुत किए। हालांकि, जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, इनमें से अधिकांश अभ्यावेदन समाधानकारक नहीं पाए गए और उन्हें अमान्य कर दिया गया।

इस अस्वीकृति के बाद, कई असंतुष्ट शिक्षकों ने न्याय की गुहार लगाते हुए माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर में याचिकाएं दायर कीं। उच्च न्यायालय ने इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अधिकांश याचिकाकर्ता शिक्षकों को जिला स्तरीय युक्तियुक्तकरण समिति के समक्ष पुनः अभ्यावेदन प्रस्तुत करने और समिति को एक सप्ताह के भीतर उन पर सुनवाई कर निराकरण करने का निर्देश दिया।

न्यायालय के इस आदेश का पालन करते हुए, जिला स्तर पर फिर से सुनवाई की गई। इस बार, प्रस्तुत किए गए अभ्यावेदनों में से केवल 5 को ही मान्य पाया गया, जबकि शेष को समाधानकारक न होने के कारण जिला स्तरीय युक्तियुक्तकरण समिति ने पुनः अमान्य कर दिया। इसका सीधा अर्थ था कि जिन शिक्षकों के अभ्यावेदन अमान्य हुए, उन्हें नए आवंटित विद्यालयों में ज्वाइनिंग देनी ही थी।

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कार्रवाई का चाबुक: निलंबन और वेतन अवरुद्ध

समिति और माननीय न्यायालय दोनों स्तरों पर सुनवाई और आवेदनों के अमान्य होने के बावजूद, कुछ शिक्षकों ने अपने आवंटित विद्यालयों में पदभार ग्रहण नहीं किया। इसे शासन के निर्देशों की अवहेलना और बच्चों के शैक्षिक हितों के साथ समझौता मानते हुए, जिला शिक्षा अधिकारी ने अब कड़ा रुख अख्तियार किया है।

आज जारी आदेशों के अनुसार, ऐसे चार शिक्षकों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। निलंबन की यह कार्रवाई एक कठोर दंड है जो उनके सेवा नियमों के तहत गंभीर अनुशासनहीनता मानी जाती है। इसके अतिरिक्त, कई अन्य शिक्षकों को 'कारण बताओ नोटिस' जारी करते हुए उनका दो महीने का वेतन भी रोक दिया गया है। यह स्पष्ट संकेत है कि विभाग किसी भी तरह की ढिलाई या लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेगा।

जिला शिक्षा अधिकारी ने सभी शेष शिक्षकों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे बिना किसी देरी के अपने आवंटित विद्यालयों में उपस्थिति दर्ज कराएं और बच्चों को पढ़ाना शुरू करें। उन्होंने यह भी जोर दिया कि यह बच्चों के भविष्य से जुड़ा मामला है और इसमें किसी भी प्रकार की कोताही स्वीकार्य नहीं होगी।

शिक्षकों की दुविधा और प्रशासनिक दबाव

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यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया से प्रभावित कई शिक्षकों को व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। नए और अक्सर दूरस्थ स्थानों पर स्थानांतरण से आवास, बच्चों की शिक्षा, और अन्य पारिवारिक जिम्मेदारियों का प्रबंधन मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि कुछ शिक्षक इन आदेशों का विरोध करते हैं और कानूनी या अन्य माध्यमों से राहत पाने का प्रयास करते हैं।

हालांकि, प्रशासनिक दृष्टिकोण से, छात्रों के सीखने के अधिकार को प्राथमिकता देना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि शिक्षक विहीन या एकल शिक्षकीय विद्यालयों में बच्चे बिना पढ़ाई के रह जाते हैं, तो यह उनके भविष्य के लिए एक बड़ा नुकसान है। सरकार का प्रयास है कि संसाधनों का अधिकतम और न्यायसंगत उपयोग हो, ताकि सभी बच्चों को समान शैक्षिक अवसर मिल सकें।

आगे क्या? शिक्षा विभाग का कड़ा संदेश

कोरबा में हुई यह कार्रवाई छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग की गंभीरता को दर्शाती है। यह स्पष्ट संदेश है कि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और बच्चों के हितों को सर्वोपरि रखने के लिए सरकार किसी भी कड़े कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगी। जिन शिक्षकों का वेतन रोका गया है या जिन्हें निलंबित किया गया है, उन्हें अब अपने भविष्य और बच्चों के शैक्षिक भविष्य दोनों के बारे में गंभीर रूप से सोचना होगा।

यह घटना अन्य जिलों के शिक्षकों के लिए भी एक चेतावनी है जो युक्तियुक्तकरण के आदेशों का पालन करने में आनाकानी कर रहे हैं। उम्मीद है कि इस कार्रवाई से शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन लौटेगा और प्रदेश के दूरस्थ अंचलों में भी बच्चों को पर्याप्त और योग्य शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित हो पाएगी, जिससे शिक्षा के वास्तविक लक्ष्यों की पूर्ति हो सकेगी।

इस पूरे घटनाक्रम पर हमारी नजर बनी रहेगी, और हम आगे की अपडेट्स आप तक पहुंचाते रहेंगे। शिक्षा के इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार और शिक्षकों के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती है, लेकिन अंतिम उद्देश्य बच्चों का उज्ज्वल भविष्य होना चाहिए।

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

Dr. Tarachand Chandrakar is a respected journalist with decades of experience in reporting and analysis. His deep knowledge of politics, society, and regional issues brings credibility and authority to Nidar Chhattisgarh. Known for his unbiased reporting and people-focused journalism, he ensures that readers receive accurate and trustworthy news.

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