कफ सिरप से मासूमों की मौत का तांडव: केंद्र सरकार का सख्त रुख, स्वास्थ्य सचिव ने बुलाई आपात बैठक; देशभर में दवाओं की गुणवत्ता पर उठे गंभीर सवाल
नई दिल्ली/भोपाल/रायपुर: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और राजस्थान से सामने आई कफ सिरप से बच्चों की दर्दनाक मौत की घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस गंभीर संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने तत्काल और सख्त कार्रवाई का फैसला किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने रविवार शाम को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों, स्वास्थ्य सचिवों और औषधि नियंत्रकों के साथ एक उच्च-स्तरीय वीडियो कॉन्फ्रेंस बैठक की, जिसमें कफ सिरप के तर्कसंगत उपयोग और दवाओं की गुणवत्ता पर विस्तृत चर्चा हुई। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि भविष्य में ऐसी भयावह घटनाएं दोबारा न हों।
घातक रसायन 'डीईजी' ने ली जान: 'कोल्ड्रिफ' सिरप पर कसती शिकंजा
मामले की तह तक जाने पर पता चला है कि इन मौतों के पीछे 'कोल्ड्रिफ' नामक कफ सिरप में मिला 'डायएथिलीन ग्लाइकोल (डीईजी)' नामक एक बेहद जहरीला रसायन है। तेलंगाना सरकार द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, डीईजी शरीर के गुर्दों (किडनी) को गंभीर और स्थायी क्षति पहुंचा सकता है, जिससे अंततः जान भी जा सकती है। तेलंगाना ने तत्काल इस सिरप के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाते हुए जनता को इसे तुरंत बंद करने की चेतावनी जारी की है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने भी सरेशान फार्मास्यूटिकल्स द्वारा निर्मित 'कोल्ड्रिफ' सिरप के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्णय लिया है और तमिलनाडु के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) को कंपनी के खिलाफ सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।
मृत बच्चों में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा, राजस्थान और महाराष्ट्र के बच्चे शामिल हैं, जबकि केरल और तेलंगाना ने भी इस दवा के उपयोग को रोकने के लिए चेतावनी जारी की है। CDSCO ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में उन फैक्ट्रियों की जांच शुरू कर दी है जहां से संदिग्ध दवाएं बनी थीं। जांच के लिए खांसी की सिरप, एंटीबायोटिक और बुखार की दवाओं सहित 19 सैंपल एकत्र किए गए हैं।
दवा बाजार में काला सच: नशे के लिए कफ सिरप का दुरुपयोग और अरबों का कारोबार
इस संकट ने भारतीय दवा बाजार के एक स्याह पहलू को भी उजागर किया है। देश के कई राज्यों में कफ सिरप की गुणवत्ता की जांच की मांग उठ रही है, क्योंकि कई दवा कंपनियां नए-नए नामों से ऐसे सिरप की सप्लाई कर रही हैं, जिनका उपयोग सस्ते नशे के रूप में भी हो रहा है। कारोबारियों की मानें तो छत्तीसगढ़ जैसे कम आबादी वाले राज्य में सालाना ढाई हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कफ सिरप बिक जाता है, जबकि सामान्य सर्दी-खांसी की दवाएं बमुश्किल एक हजार करोड़ का ही कारोबार कर पाती हैं। यह आंकड़ा स्पष्ट संकेत देता है कि मरीजों की ज़रूरतों से कहीं ज़्यादा, ये सिरप अवैध नशे के बाजार में खपाए जा रहे हैं, जिससे ऐसी कंपनियों को भारी मुनाफा हो रहा है।
केंद्र सरकार के सख्त निर्देश: बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए नई गाइडलाइन्स
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों को सख्त सलाह जारी की है:
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दो साल से कम उम्र के बच्चों: को कफ सिरप बिल्कुल न दी जाए।
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पांच साल से कम उम्र के बच्चों: के लिए कफ सिरप का इस्तेमाल केवल डॉक्टर की सलाह पर, सीमित मात्रा में और पूरी सावधानी के साथ किया जाए।
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चेतावनी लेबल अनिवार्य: गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए नुकसानदेह दवाओं पर अब चेतावनी लेबल लगाना अनिवार्य होगा, ताकि उपभोक्ता जागरूक हो सकें।
इन निर्देशों का पालन न करने वाली कंपनियों और विक्रेताओं पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
राज्यों में कार्रवाई: MP और राजस्थान ने लगाई बैन, छत्तीसगढ़ अभी मौन?
मध्य प्रदेश सरकार ने तुरंत एक्शन लेते हुए 'कोल्ड्रिफ' और 'नेक्स्ट्रो डीएस' सिरप की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस प्रतिबंध की घोषणा की है, साथ ही इसी कंपनी के अन्य उत्पादों की बिक्री भी रोक दी गई है। छिंदवाड़ा में एक डॉक्टर को गिरफ्तार किया गया है, और मरने वाले 11 बच्चों के परिजनों को राज्य सरकार ने 4 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की है। राजस्थान ने भी ऐसी कंपनियों को प्रतिबंधित कर दिया है।
हालांकि, पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़, जहां मध्य प्रदेश से कफ सिरप की भारी खेप पहुंचती है, वहां अभी तक कफ सिरप की जांच को लेकर कोई आधिकारिक पहल सामने नहीं आई है। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि छत्तीसगढ़ के दवा बाजारों में भी इन संदिग्ध सिरपों की बिक्री होने की आशंका है, जिससे वहां के निवासियों, विशेषकर बच्चों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो सकता है।
उत्पादन कंपनियों पर भी लटकी तलवार
अब केवल विक्रेताओं पर ही नहीं, बल्कि कफ सिरप का उत्पादन करने वाली कंपनियों पर भी कार्रवाई की तलवार लटक गई है। राज्य सरकारों के अलावा केंद्र सरकार भी ऐसी कंपनियों पर सख्त कार्रवाई की तैयारी कर रही है। CDSCO तमिलनाडु FDA को 'कोल्ड्रिफ' सिरप निर्माता के खिलाफ 'सबसे गंभीर अपराधों' के तहत कार्रवाई करने पर विचार करने के लिए कह रहा है। यह दर्शाता है कि नियामक संस्थाएं अब इस गंभीर मुद्दे को हल्के में नहीं लेंगी।
भविष्य की राह: दवाओं की गुणवत्ता पर जीरो टॉलरेंस
इस संकट ने भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग में दवाओं की गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। यह अनिवार्य है कि औषधि नियामक संस्थाएं अपनी निगरानी को और कड़ा करें, दवाओं के नमूनों की नियमित जांच करें, और नकली या अमानक दवाएं बनाने वाली कंपनियों पर कठोरतम कार्रवाई करें। नागरिकों को भी अपनी स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति जागरूक रहना चाहिए और बिना डॉक्टर की सलाह के बच्चों को कोई भी दवा, विशेषकर कफ सिरप, देने से बचना चाहिए। इस घटना से मिली सीख यह है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वालों के प्रति 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाई जाए, ताकि मासूम जिंदगियां यूं ही ज़हरीले सिरप का शिकार न बनें।