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बलरामपुर के बहुचर्चित किसान कृष्ण गुप्ता हत्याकांड में पांच आरोपियों को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। न्यायालय ने 'संदेह का लाभ' (doubt of benefit) देते हुए सभी पांचों आरोपियों को बरी कर दिया है। 2017 में हुई इस घटना ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी थी, जब खेत में काम करते समय कृष्ण गुप्ता की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।

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कृष्ण गुप्ता हत्याकांड: संदेह का लाभ मिला, पांच आरोपी बरी
कृष्ण गुप्ता हत्याकांड: संदेह का लाभ मिला, पांच आरोपी बरी

कृष्ण गुप्ता हत्याकांड: संदेह का लाभ मिला, पांच आरोपी बरी, बलरामपुर के बहुचर्चित किसान कृष्ण गुप्ता हत्याकांड में पांच आरोपियों को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। न्यायालय ने 'संदेह का लाभ' (doubt of benefit) देते हुए सभी पांचों आरोपियों को बरी कर दिया है। 2017 में हुई इस घटना ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी थी, जब खेत में काम करते समय कृष्ण गुप्ता की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि: 2017 का जघन्य हत्याकांड

21 जुलाई 2017 को बलरामपुर जिले के बगरा गांव में कृष्ण गुप्ता अपने खेत जोत रहे थे। इसी दौरान उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। उनका शव खेत में खून से लथपथ मिला था और उनका सिर मिट्टी में दबा हुआ था, जो घटना की भयावहता को दर्शाता है। पुलिस ने शुरुआती जांच के बाद मृतक के परिजनों के बयान और संदेह के आधार पर गांव के ही मुखलाल साव, अशोक पाल, सुधामा भुइयां, श्रवण कुमार और सुनील पासवान को गिरफ्तार किया था।

अधूरे साक्ष्य और विरोधाभासी गवाही: न्यायपालिका की कसौटी

गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने चाकू, कपड़े और दस्ताने जैसे कई सामान जब्त किए थे। हालांकि, एफएसएल रिपोर्ट में जब्त खून का नमूना मृतक के खून के समूह से मेल नहीं खा पाया, जिससे मामले में एक बड़ा मोड़ आ गया। इसके अतिरिक्त, गवाहों के बयान भी विरोधाभासी पाए गए, जिसने अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर कर दिया।

हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: केवल संदेह सजा का आधार नहीं

हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की। न्यायालय ने कहा कि सिर्फ शक के आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती। गवाहों की गवाही में विरोधाभास, अधूरी एफएसएल रिपोर्ट, पहचान में देरी और ठोस सबूतों के अभाव के कारण आरोपियों पर आरोप सिद्ध नहीं हो सके।

मृतक की पत्नी लालती देवी, जिन्हें पुलिस ने प्रत्यक्षदर्शी बताया था, ने भी अदालत में यह स्वीकार किया कि उन्होंने आरोपियों की पहचान पहली बार पुलिस हिरासत में देखी थी। हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि "संदेह चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, वह सबूत का स्थान नहीं ले सकता।" न्यायालय ने पाया कि न तो हत्या की साजिश का कोई पुख्ता सबूत मिला और न ही आरोपियों का हत्या से कोई सीधा संबंध स्थापित हो पाया।

इन्हीं तथ्यों के आधार पर, हाईकोर्ट ने सभी पांचों आरोपियों को 'संदेह का लाभ' देते हुए बरी कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल शक और अधूरे सबूतों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

न्यायपालिका में 'संदेह का लाभ' का महत्व

यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में 'संदेह का लाभ' के सिद्धांत के महत्व को दर्शाता है, जिसके तहत यदि किसी मामले में आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं होते हैं और संदेह की स्थिति बनी रहती है, तो उन्हें बरी कर दिया जाता है। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि किसी निर्दोष व्यक्ति को गलत तरीके से दंडित न किया जाए।

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