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मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में आर्थिक अपराध शाखा (EOW) और लोकायुक्त पुलिस ने पिछले पांच सालों में 1325 से अधिक मामले दर्ज किए हैं। विधानसभा सत्र में एक सवाल के जवाब में सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।

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मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार पर EOW का शिकंजा: 5 साल में 1325 मामले दर्ज
मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार पर EOW का शिकंजा: 5 साल में 1325 मामले दर्ज

मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार पर EOW का शिकंजा: 5 साल में 1325 मामले दर्ज, मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में आर्थिक अपराध शाखा (EOW) और लोकायुक्त पुलिस ने पिछले पांच सालों में 1325 से अधिक मामले दर्ज किए हैं। विधानसभा सत्र में एक सवाल के जवाब में सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।

राजस्व विभाग सबसे आगे, IAS अधिकारी अछूते
इन मामलों में सबसे अधिक संख्या राजस्व विभाग के कर्मचारियों की है, जिनमें पटवारी, तहसीलदार और नायब तहसीलदार शामिल हैं। राज्य प्रशासनिक सेवा (S.A.S.) के 18 अधिकारी भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत फंसे हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इस दौरान किसी भी भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई दर्ज नहीं की गई है।

EOW और लोकायुक्त की कार्रवाई का विवरण
लोकायुक्त पुलिस ने अकेले 1325 मामले दर्ज किए हैं, जिनमें से अधिकांश की जांच अभी भी जारी है। EOW ने भी 472 अपराध दर्ज किए, जिनमें से 82 का निपटारा किया जा चुका है, जबकि 383 में कार्रवाई जारी है।

किन अधिकारियों पर गिरी गाज?
भ्रष्टाचार के आरोप में जिन प्रमुख अधिकारियों पर मामले दर्ज किए गए हैं, उनमें अपर कलेक्टर अशोक कुमार ओहरी, SDM वरुण अवस्थी, दीपक चौहान, मनीष कुमार जैन, तहसीलदार रविशंकर शुक्ल, लक्ष्मण प्रसाद, सुधाकर तिवारी, चंद्रमणि सोनी और नायब तहसीलदार उमेश तिवारी, भगवान दास तम्खानिया, बाल्मीक प्रसाद साकेत शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, विभिन्न नगर पालिकाओं और जनपद पंचायतों के CMOs पर भी कार्रवाई हुई है।

50 मामलों में क्लीन चिट
हालांकि, यह भी सामने आया है कि लोकायुक्त पुलिस द्वारा दर्ज किए गए 50 मामलों में जांच के बाद आरोपी अधिकारियों और कर्मचारियों को निर्दोष पाया गया, जिसके बाद इन मामलों को बंद कर दिया गया। कुछ मामलों में जांच पूरी होने के बाद कोर्ट में चालान पेश किए गए हैं, जिन पर सुनवाई चल रही है।

जांच और जवाबदेही पर सवाल
सरकार ने विधानसभा में यह जानकारी नहीं दी कि सामान्य प्रशासन विभाग ने लोकायुक्त और EOW की कार्यप्रणाली की समीक्षा कब और किन अधिकारियों या जनप्रतिनिधियों द्वारा की गई। यह पारदर्शिता की कमी पर सवाल उठाता है।

भविष्य की राह
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। सरकार को न केवल भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित और प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी, बल्कि जवाबदेही और पारदर्शिता को भी बढ़ाना होगा, विशेषकर उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों के मामलों में।

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