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नेपाल की नई सुबह की तलाश: क्या सुशीला कार्की बनेंगी आशा की किरण?
काठमांडू, नेपाल: हिमालयी राष्ट्र नेपाल इस समय एक अभूतपूर्व संकट से जूझ रहा है। सड़कों पर उतर आए Gen Z प्रदर्शनकारियों का आक्रोश राजनीतिक प्रतिष्ठान को हिला रहा है, और देश एक अनिश्चित भविष्य की दहलीज पर खड़ा है। इस अराजकता के बीच, एक नाम प्रमुखता से उभरा है – नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश, सुशीला कार्की। उनकी बेदाग छवि और निडर न्यायिक रिकॉर्ड ने उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रदर्शनकारियों की पहली पसंद बना दिया है, जिससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या यह अनुभवी न्यायविद् राष्ट्र को इस गहन संकट से बाहर निकाल पाएंगी।
आग और आक्रोश से धधकता नेपाल
पिछले कुछ हफ्तों से नेपाल हिंसा की चपेट में है। मोबाइल इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध के बाद भड़के विरोध प्रदर्शनों ने जल्द ही एक बड़े विद्रोह का रूप ले लिया। राजधानी काठमांडू सहित देश के कई हिस्सों में आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आई हैं। संसद भवन, मंत्रियों के आवास और यहां तक कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के निजी निवास को भी निशाना बनाया गया है। इन हिंसक झड़पों में अब तक 30 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 1300 से अधिक घायल हुए हैं। काठमांडू की सड़कों पर सेना के बख्तरबंद वाहन गश्त कर रहे हैं, जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है।
इस विद्रोह के केंद्र में 28 वर्ष से कम उम्र के युवा हैं, जिन्हें 'Gen Z' के नाम से जाना जाता है। ये युवा नेपाल के राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली से पूरी तरह निराश और असंतुष्ट हैं। उनकी मुख्य मांगें हैं: देश में पूर्ण संवैधानिक सुधार, एक नई और पारदर्शी चुनाव प्रणाली, राजनीति में जवाबदेही और भ्रष्टाचार का पूर्ण उन्मूलन। वे एक ऐसे नेपाल का सपना देखते हैं जहां पारदर्शिता हो, न्याय हो और जनहित सर्वोपरि हो।
कौन हैं सुशीला कार्की: न्याय की निर्भीक प्रतीक
73 वर्षीय सुशीला कार्की का नाम ऐसे समय में सामने आया है जब नेपाल को एक ऐसे नेतृत्व की सख्त आवश्यकता है जो संकटग्रस्त राष्ट्र को एक नई दिशा दे सके। उनका नाम प्रदर्शनकारियों द्वारा अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए दिए गए सुझावों में सबसे ऊपर है, और इसके ठोस कारण हैं।
सुशीला कार्की का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा भारत के प्रतिष्ठित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से प्राप्त की, जो भारत के साथ उनके गहरे सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंधों को दर्शाता है। यह अनुभव न केवल उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाता है, बल्कि उन्हें क्षेत्रीय गतिशीलता की भी गहरी समझ देता है।
न्यायपालिका में प्रवेश करने से पहले, कार्की ने एक शिक्षिका के रूप में कार्य किया, जिसने उन्हें समाज की जड़ों से जुड़ने और आम लोगों की समस्याओं को समझने का अवसर दिया। उनकी न्यायिक यात्रा 2006 में शुरू हुई, जब उन्हें संवैधानिक मसौदा समिति का हिस्सा बनाया गया। उनकी निडर और सक्षम कार्यशैली ने उन्हें जल्द ही पहचान दिलाई। 2009 में, उन्हें सुप्रीम कोर्ट का तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त किया गया, और एक साल के भीतर, वह स्थायी न्यायाधीश बन गईं।
ऐतिहासिक मुख्य न्यायाधीश और भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध
वर्ष 2016 सुशीला कार्की के करियर और नेपाल के इतिहास दोनों के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। तत्कालीन राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने उन्हें नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया। यह नियुक्ति न केवल नेपाल के न्यायपालिका के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था, बल्कि लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम था।
मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनके कार्यकाल को उनकी निडरता और भ्रष्टाचार के प्रति शून्य-सहिष्णुता की नीति के लिए याद किया जाता है। उन्होंने ऐसे कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए जिन्होंने राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार पर नकेल कसने का काम किया। उनकी छवि एक ऐसी न्यायाधीश की रही है जो बिना किसी दबाव के, निष्पक्षता से न्याय करती हैं। यही कारण है कि आज, जब नेपाल राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के भंवर में फंसा है, तो उनकी पारदर्शिता और भरोसेमंद छवि Gen Z प्रदर्शनकारियों के बीच उन्हें सबसे उपयुक्त विकल्प बनाती है।
Gen Z का भरोसा: एक बाहरी, फिर भी सक्षम चेहरा
Gen Z के हजारों सदस्यों द्वारा आयोजित एक राष्ट्रव्यापी वर्चुअल बैठक में सुशीला कार्की को भारी समर्थन मिला। 50% से अधिक, यानी 3,000 से अधिक युवा सदस्यों ने उन्हें अंतरिम प्रधानमंत्री पद के लिए अपना समर्थन दिया। यह एक महत्वपूर्ण संकेत है कि युवा पीढ़ी एक ऐसे नेता की तलाश में है जो राजनीति से परे हो, जो नैतिक हो और जिस पर वे भरोसा कर सकें।
राजनीति से हमेशा दूर रहने वाली कार्की को Gen Z एक 'बाहरी' लेकिन 'सक्षम' चेहरे के रूप में देखता है। पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद उत्पन्न हुए इस शून्य में, कार्की को जनता और कानूनी समुदाय दोनों का समर्थन मिल रहा है। उनकी साफ-सुथरी छवि और न्यायिक अनुभव उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में प्रस्तुत करता है जो मौजूदा राजनीतिक दलदल से अछूता है और देश को स्थिरता प्रदान करने की क्षमता रखता है।
आगे की राह: चुनौतियां और उम्मीदें
नेपाल में मौजूदा स्थिति अत्यंत जटिल है। पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज बलराम केसी जैसे कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने नए चुनावों की वकालत की है, जबकि आंदोलन से जुड़े वकील रमन कुमार कर्ण ने घोषणा की है कि प्रदर्शनकारी अपनी मांगों को लेकर सेना प्रमुख से मुलाकात करेंगे। यह दर्शाता है कि समाधान तलाशने के लिए विभिन्न हितधारक अपने-अपने तरीके से प्रयास कर रहे हैं।
यदि सुशीला कार्की वास्तव में अंतरिम प्रधानमंत्री बनती हैं, तो उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां होंगी। सबसे पहले, उन्हें देश में शांति और व्यवस्था बहाल करनी होगी। दूसरा, उन्हें राजनीतिक दलों के बीच विश्वास बहाल करना होगा और एक ऐसे सर्वसम्मत मार्ग की तलाश करनी होगी जो देश को संवैधानिक सुधारों और एक स्थिर सरकार की ओर ले जाए। तीसरा, उन्हें युवा पीढ़ी की आकांक्षाओं को पूरा करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके विद्रोह को सार्थक परिणाम मिले।
सुशीला कार्की का भारत से गहरा नाता और उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान भी नेपाल के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, खासकर क्षेत्रीय सहयोग और कूटनीति के मामले में। उनकी न्यायिक पृष्ठभूमि उन्हें एक मजबूत और निष्पक्ष प्रशासन स्थापित करने में मदद कर सकती है, जो भ्रष्टाचार को समाप्त करने और एक पारदर्शी शासन प्रणाली बनाने के लिए आवश्यक है।
नेपाल के सामने का रास्ता लंबा और कठिन है, लेकिन सुशीला कार्की जैसे नेताओं का उभरना इस बात का संकेत है कि देश अभी भी उम्मीद का दामन थामे हुए है। Gen Z का यह विद्रोह केवल वर्तमान सरकार के खिलाफ गुस्सा नहीं है, बल्कि एक नए, बेहतर और अधिक जवाबदेह नेपाल के लिए एक सामूहिक आकांक्षा है। क्या सुशीला कार्की इस आकांक्षा को वास्तविकता में बदल पाएंगी? यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि नेपाल की नियति एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है, और दुनिया इस हिमालयी राष्ट्र की ओर उत्सुकता से देख रही है।
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