नवोदय विद्यालय डोंगरगढ़: गला दबाने की कोशिश या मानसिक तनाव? छात्र के आरोपों से हड़कंप, स्कूल प्रशासन पर गंभीर सवाल
डोंगरगढ़ : छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित प्रतिष्ठित जवाहर नवोदय विद्यालय एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार शिक्षा की गुणवत्ता के लिए नहीं, बल्कि एक छात्र की सुरक्षा और स्कूल प्रशासन की जवाबदेही पर उठे गंभीर सवालों के कारण। कक्षा 6 में पढ़ने वाले एक छात्र ने अपने सहपाठियों और कुछ शिक्षकों पर डराने-धमकाने, शारीरिक हमले और यहाँ तक कि गला दबाने की कोशिश का सनसनीखेज आरोप लगाया है। इन आरोपों ने न केवल पूरे शिक्षा जगत में हड़कंप मचा दिया है, बल्कि पिछले साल एक अन्य छात्र की आत्महत्या के बाद इस संस्थान में बच्चों की सुरक्षा पर भी गहरी चिंता पैदा कर दी है।
छात्र का दर्दनाक बयान: हमला, धमकी और आत्महत्या का प्रयास
पीड़ित छात्र के अनुसार, यह घटना 17 तारीख को हुई जब उसके सहपाठियों ने कथित तौर पर उसका गला दबाने की कोशिश की। छात्र का दावा है कि उसने तुरंत इसकी शिकायत स्कूल के शिक्षकों से की, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से कोई कार्रवाई नहीं की गई। आरोपों के अनुसार, अगले ही दिन, 18 तारीख को, छात्र पर फिर हमला हुआ। इस बार रस्सी से उसकी पीठ पर बेरहमी से मारपीट की गई और उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई, यदि उसने दोबारा शिकायत की। छात्र ने दावा किया है कि इस लगातार दबाव और धमकियों से परेशान होकर उसने आत्महत्या का प्रयास तक किया। यह बयान, अगर सच है, तो स्कूल परिसर में बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है।
प्रशासन का दखल और स्कूल का खंडन
जैसे ही यह गंभीर मामला मीडिया में आया और इसकी जानकारी अधिकारियों तक पहुंची, जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ), एसडीएम (उप-मंडल मजिस्ट्रेट) और बीईओ (खंड शिक्षा अधिकारी) सहित उच्च अधिकारी तुरंत मौके पर पहुंचे और मामले की गहन जांच शुरू कर दी गई।
हालांकि, स्कूल प्रशासन ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। नवोदय विद्यालय के प्रिंसिपल संजय कुमार सिंह, जिन्होंने हाल ही में पदभार संभाला है, का कहना है कि पीड़ित छात्र शारीरिक रूप से कमजोर है और उसे आँखों की समस्या है। उनके अनुसार, इन्हीं कारणों से छात्र को स्कूल और हॉस्टल के वातावरण में ढलने में कठिनाई हो रही है। प्रिंसिपल ने आत्महत्या की कोशिश की बात को पूरी तरह नकार दिया और दावा किया कि बच्चा केवल घर जाना चाहता है।
शैक्षिक परामर्शदाता की राय: शारीरिक कमजोरी और मानसिक दबाव
प्रिंसिपल के बयानों की पुष्टि करते हुए, एजुकेशनल काउंसलर मृदुला निगम ने भी छात्र की आँखों की गंभीर बीमारी और उसकी शारीरिक कमजोरी की बात को स्वीकार किया। उनका मानना है कि इन स्वास्थ्य संबंधी कारणों से बच्चा कई बार मानसिक दबाव में आ जाता है और भीड़ या छोटी-मोटी घटनाओं को भी वास्तविक से अधिक बड़ा समझ बैठता है। यह दृष्टिकोण इस संभावना को जन्म देता है कि छात्र ने घटनाओं को अतिरंजित किया हो सकता है, लेकिन यह इस बात से इनकार नहीं करता कि उसे किसी प्रकार की परेशानी हुई होगी।
डीईओ की प्रारंभिक जांच: हॉस्टल जीवन की चुनौतियां
जिला शिक्षा अधिकारी प्रवास बघेल ने मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर खुद मामले का संज्ञान लिया और प्रारंभिक जांच शुरू की। उनकी शुरुआती जांच में यह सामने आया है कि बच्चा हॉस्टल जीवन की चुनौतियों और कठिनाइयों से घबरा गया है और घर लौटने की जिद में यह कदम उठाया। डीईओ ने यह भी स्वीकार किया कि इस तरह की घटनाएं चिंताजनक हैं और भविष्य में छोटे बच्चों की काउंसलिंग और निगरानी पर और सख्त निर्देश जारी किए जाएंगे। यह बयान स्कूल में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और अनुकूलन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
स्कूल प्रशासन सवालों के घेरे में: चुप्पी या लापरवाही?
यह पूरा प्रकरण नवोदय विद्यालय डोंगरगढ़ के प्रशासन और शिक्षकों को सवालों के घेरे में खड़ा करता है। यदि छात्र के आरोप सच हैं कि उसकी शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो यह एक गंभीर लापरवाही है। क्या एक मासूम छात्र के गले पर फांसी का फंदा बनने तक स्कूल प्रशासन सोया रहा? क्या शिक्षकों की उदासीनता ने बच्चे को इतना हताश कर दिया कि उसने आत्महत्या का प्रयास तक किया?
सूत्रों की मानें तो पीड़ित बच्चे ने एक वीडियो में यहां तक कहा है कि स्कूल प्रबंधन ने उससे जबरन एक पत्र लिखवाया है। यदि यह आरोप भी सही साबित होता है, तो यह स्कूल प्रशासन के कदाचार और मामले को दबाने की कोशिश की ओर इशारा करता है।
डोंगरगढ़ नवोदय विद्यालय के लिए यह कोई नई घटना नहीं है। पिछले साल भी एक छात्र ने यहीं आत्महत्या कर ली थी, जिससे स्कूल परिसर में बच्चों की सुरक्षा पर पहले भी सवाल उठ चुके हैं। ऐसे में बार-बार उठ रहे सवाल यही हैं कि आखिर कब तक मासूमों की जिंदगी दांव पर लगती रहेगी और कब शिक्षा विभाग इस पर ठोस और स्थायी कदम उठाएगा? यह घटना शिक्षा प्रणाली के उन छिपे हुए पहलुओं को उजागर करती है जहाँ बच्चों की शारीरिक और मानसिक सुरक्षा को अक्सर शैक्षणिक उपलब्धियों से कम महत्व दिया जाता है। इस मामले की निष्पक्ष और त्वरित जांच ही सच को सामने ला सकती है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने में मदद कर सकती है।