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नवरात्रि विशेष: दुर्ग का बैगापारा शीतला मंदिर - राजा जगतपाल के किले से जुड़ी आस्था और इतिहास, छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित बैगापारा का शीतला मंदिर, शहर की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। चंडी मंदिर के बाद, यह दुर्गवासियों के लिए सबसे बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता है। इस नवरात्रि, आइए जानते हैं इस प्राचीन मंदिर के गौरवशाली इतिहास और इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में।

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नवरात्रि विशेष: दुर्ग का बैगापारा शीतला मंदिर - राजा जगतपाल के किले से जुड़ी आस्था और इतिहास
नवरात्रि विशेष: दुर्ग का बैगापारा शीतला मंदिर - राजा जगतपाल के किले से जुड़ी आस्था और इतिहास

नवरात्रि विशेष: दुर्ग का बैगापारा शीतला मंदिर - राजा जगतपाल के किले से जुड़ी आस्था और इतिहास, छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित बैगापारा का शीतला मंदिर, शहर की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। चंडी मंदिर के बाद, यह दुर्गवासियों के लिए सबसे बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता है। इस नवरात्रि, आइए जानते हैं इस प्राचीन मंदिर के गौरवशाली इतिहास और इससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में।

राजा जगतपाल और शीतला माता की अटूट आस्था

इतिहास और लोककथाओं के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना दुर्ग के तत्कालीन राजा जगतपाल ने अपने किले में करवाई थी। ऐसी मान्यता है कि माता शीतला की कृपा से राज्य में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती थी, और प्राकृतिक आपदाओं से भी बचाव होता था। भोंसले शासनकाल तक दुर्ग एक महत्वपूर्ण किला था, जहां राजा जगतपाल का दरबार लगता था।

प्राचीन धार्मिक परंपराएं और राजशाही का संबंध

बैगापारा का शीतला मंदिर, किल्ला मंदिर, चंडी मंदिर, छातागढ़ के हनुमान मंदिर और बाबा मंदिर राजा जगतपाल के लिए विशेष महत्व रखते थे। इन मंदिरों में राजा नृत्य पूजा और अर्चना करते थे, जो उस समय की राजशाही, धार्मिक क्रियाओं और सामाजिक जीवन के गहरे जुड़ाव को दर्शाता है। यह दिखाता है कि कैसे धर्म केवल व्यक्तिगत आस्था नहीं, बल्कि शासन और समाज का अभिन्न अंग था।

बैगापारा का नामकरण: पुजारियों की परंपरा

प्राचीन दस्तावेजों और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, किले के आसपास का क्षेत्र प्राचीन किला माना जाता है। गोंड राजवंश के समय, इस क्षेत्र के पश्चिम में आज भी 'गोड़ पारा' मौजूद है। वहीं, 'बैगापारा' शब्द की उत्पत्ति पुजारियों या 'बैगाओं' से हुई मानी जाती है। पुरानी व्यवस्था में माता शीतला की पूजा का दायित्व बैगाओं के पास था, इसी कारण यह स्थल 'बैगापारा' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

मनोकामना ज्योति कलश: आस्था का बढ़ता सैलाब

मंदिर समिति से जुड़े मनोज चंद्राकर बताते हैं कि यहां लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित कराने के लिए इंतजार करना पड़ता है। हर साल लगभग 500 ऐसे भक्त हैं जो दोनों नवरात्रि में नियमित रूप से ज्योति कलश प्रज्ज्वलित कराते आ रहे हैं। इस वर्ष, 1561 ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए गए हैं, जो बढ़ती हुई आस्था का प्रतीक है।

जुड़वास पर्व और चमत्कारी जल का महत्व

चंद्राकर बताते हैं कि मंदिर को लेकर आज भी यह प्राचीन आस्था है कि यहां पूजा-अर्चना करने से हर प्राकृतिक आपदा का निवारण हो जाता है। यहां बेहद श्रद्धा से 'जुड़वास' पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि मंदिर में पूजा कर जल शरीर पर लगाने से छोटी और बड़ी माता (चिकनपॉक्स) का निवारण हो जाता है। पूर्व मंत्री और दिवंगत नेता हेमचंद यादव भी इस मंदिर से गहराई से जुड़े हुए थे।

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