पेंड्रा: 'दशरथ मांझी' बने ग्रामीण, वन विभाग ने रास्ता रोका तो पहाड़ काटकर बना ली नई सड़क

पेंड्रा के घोघा डबरा गांव में वन विभाग द्वारा रास्ता बंद करने के बाद ग्रामीणों ने एकजुटता दिखाते हुए पहाड़ काटकर खुद ही नया और सुगम मार्ग बना लिया. प्रशासन से मदद न मिलने पर श्रमदान से तैयार हुआ यह रास्ता.

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पेंड्रा: 'मांझी' की प्रेरणा, ग्रामीणों की शक्ति! वन विभाग ने रास्ता बंद किया तो खुद पहाड़ काटकर बना दी नई सड़क

पेंड्रा : छत्तीसगढ़ के पेंड्रा जिले में जोड़ातालाब के घोघा डबरा गांव के ग्रामीणों ने दृढ़ संकल्प और एकजुटता की एक ऐसी मिसाल पेश की है, जो बरसों तक याद रखी जाएगी. 'दशरथ मांझी' की तरह अपनी धुन के पक्के इन ग्रामीणों ने वन विभाग द्वारा मुख्य रास्ता बंद किए जाने के बाद, खुद ही पहाड़ काटकर एक नया और सुगम मार्ग तैयार कर लिया है. यह घटना प्रशासनिक उदासीनता पर एक करारा प्रहार है और दिखाती है कि जब जनता ठान ले, तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती.

वन विभाग की मनमानी और ग्रामीणों की मुश्किल

मामला कुछ यूं है कि वन विभाग ने घोघा डबरा गांव में प्लांटेशन का कार्य किया, जिसके चलते गांव तक पहुंचने वाले एकमात्र पारंपरिक पगडंडी मार्ग को पूरी तरह से बंद कर दिया गया. ग्रामीणों के लिए आवागमन का यह मुख्य जरिया था, जो अचानक बंद हो जाने से वे मुश्किल में पड़ गए. वन विभाग ने एक वैकल्पिक कच्ची सड़क पहाड़ के ऊपर से बनाकर दी थी, लेकिन यह मार्ग इतना दुर्गम और जोखिम भरा था कि न तो इस पर एम्बुलेंस पहुंच पाती थी, न ही स्कूल बसें और न ही कृषि वाहन. जहां पुराना रास्ता सभी तरह के वाहनों के लिए उपयुक्त था, वहीं नया वैकल्पिक मार्ग ग्रामीणों के लिए एक अभिशाप बन गया था.

ग्रामीणों ने बताया कि ऊंची ढलान और बड़े-बड़े पत्थरों के कारण इस रास्ते पर आए दिन लोग गिरकर घायल हो जाते थे. बीमारों को अस्पताल ले जाने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था, कई बार तो समय पर इलाज न मिल पाने के कारण जान पर बन आती थी.

एक बच्ची की मौत ने जगाई सामूहिक चेतना

कुछ दिनों पहले एक हृदय विदारक घटना ने ग्रामीणों को एकजुट होकर कुछ करने पर मजबूर कर दिया. घोघा डबरा गांव की एक मासूम बच्ची की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई. जब उसके शव को गांव लाने वाली एम्बुलेंस उस दुर्गम पहाड़ी रास्ते में फंस गई और चालक ने आगे जाने से इनकार कर दिया, तब ग्रामीणों का सब्र टूट गया. इस घटना ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अब उन्हें खुद ही अपनी नियति बदलनी होगी.

करीब 30 से 40 ग्रामीणों ने, जिनमें महिलाएं, बच्चे, बूढ़े-जवान सभी शामिल थे, सामूहिक रूप से निर्णय लिया कि वे खुद ही नया रास्ता बनाएंगे. उन्होंने हथौड़े, कुदाल और अन्य औजार उठाए और पहाड़ी की कठोर चट्टानों को तोड़कर एक सुविधा युक्त नया मार्ग बनाने में जुट गए.

बिना सरकारी मदद के, जनता ने खुद संभाली कमान

यह जानकर हैरानी होती है कि इस महत्वपूर्ण सड़क के निर्माण में ग्रामीणों को न तो वन विभाग से कोई मदद मिली और न ही स्थानीय प्रशासन से. गांव के लोगों ने आपस में चंदा इकट्ठा किया और अथक श्रमदान करके कुछ ही दिनों में आने-जाने लायक एक सुगम सड़क तैयार कर दी. उनकी यह सफलता उनकी एकजुटता, दृढ़ इच्छाशक्ति और सामुदायिक भावना का प्रत्यक्ष प्रमाण है.

ग्रामीणों ने बताया कि जब उन्होंने वन विभाग से पुराना रास्ता खोलने या नया सुगम रास्ता बनाने का अनुरोध किया था, तो उन्हें यह कहकर मना कर दिया गया था कि ऐसा संभव नहीं है. तब ग्रामीणों ने ठान लिया था कि वे बिना किसी बाहरी मदद के ही अपना रास्ता खुद बनाएंगे, और उन्होंने ऐसा कर दिखाया.

एक सड़क से बढ़कर यह एक आंदोलन है

जोड़ातालाब घोघा डबरा गांव के ग्रामीणों द्वारा बनाया गया यह रास्ता केवल एक भौतिक मार्ग नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक उपेक्षा के खिलाफ जनशक्ति और आत्म-सम्मान का एक मजबूत प्रतीक है. यह दशरथ मांझी की उस कहानी को फिर से जीवंत करता है, जहां एक व्यक्ति ने अपनी लगन से पहाड़ को झुका दिया था. यहां सैकड़ों ग्रामीणों ने मिलकर उस भावना को सामूहिक रूप प्रदान किया है.

यह घटना छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में बुनियादी ढांचे की कमी और प्रशासनिक तंत्र की जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठाती है. उम्मीद है कि यह 'दशरथ मांझी' की सामूहिक प्रेरणा प्रशासन को झकझोर कर रख देगी और उन्हें ऐसे दूरस्थ गांवों की समस्याओं पर ध्यान देने के लिए मजबूर करेगी, जहां के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

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