रायपुर में शिक्षण संस्थान पर हमला: NSUI अध्यक्ष पर FIR, 'सुशासन' पर उठे सवाल

सुंदर नगर, रायपुर स्थित श्री गजानंद एजुकेशन संस्था ने NSUI जिला अध्यक्ष प्रशांत गोस्वामी और उनके साथियों पर अवैध वसूली, मारपीट और तोड़फोड़ का आरोप लगाया है। FIR दर्ज होने के बाद अब प्रशासन से त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई की मांग की जा रही है, जिससे शिक्षा संस्थानों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

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रायपुर में शिक्षण संस्थान पर 'गुंडागर्दी' का आरोप, NSUI जिला अध्यक्ष पर गंभीर धाराओं में FIR; 'सुशासन' पर उठे सवाल!

श्री गजानंद एजुकेशन संस्था ने अवैध वसूली, मारपीट और तोड़फोड़ का लगाया आरोप, प्रशासन से त्वरित और निष्पक्ष जांच की मांग, शिक्षा जगत में चिंता का माहौल।

रायपुर: रायपुर में शिक्षण संस्थान पर हमला: NSUI अध्यक्ष पर FIR, 'सुशासन' पर उठे सवाल, राजधानी रायपुर के सुंदर नगर स्थित श्री गजानंद एजुकेशन संस्था ने एक गंभीर आरोप लगाते हुए स्थानीय प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। संस्था का दावा है कि NSUI (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) के जिला अध्यक्ष प्रशांत गोस्वामी और उनके साथियों ने बार-बार संस्थान में घुसकर न केवल अवैध वसूली की मांग की, बल्कि विरोध करने पर मारपीट, तोड़फोड़, धमकी और संस्थान में ताला लगाकर बंद करने जैसी आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया। इन घटनाओं के विरोध में संबंधित थाने में शुक्रवार, 19 सितंबर, 2025 को एक एफ.आई.आर. (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज की गई है, जिसने राज्य में कानून-व्यवस्था और विशेषकर शिक्षण संस्थानों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं।

क्या हुआ? संस्था का दर्दनाक अनुभव

 

 
 
 
 
 
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श्री गजानंद एजुकेशन संस्था, जो शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, ने पिछले कुछ समय से एक अभूतपूर्व चुनौती का सामना करने का दावा किया है। संस्था के प्रबंधन के अनुसार, NSUI जिला अध्यक्ष प्रशांत गोस्वामी, जो कि एक छात्र संगठन से जुड़े हैं, अपने साथियों के साथ कई बार जबरन संस्थान परिसर में घुस आए। उनका मुख्य उद्देश्य कथित तौर पर अवैध वसूली करना था। संस्था के पदाधिकारियों ने बताया कि जब उन्होंने इन अनुचित मांगों का विरोध किया, तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़े।

यह मामला सिर्फ मौखिक धमकियों तक सीमित नहीं रहा। संस्था के आरोप हैं कि विरोध करने पर परिसर में मारपीट की गई, जिससे कर्मचारियों और छात्रों में भय का माहौल व्याप्त हो गया। इसके अलावा, संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के इरादे से तोड़फोड़ भी की गई। चरम पर तब पहुँची, जब इन व्यक्तियों ने कथित तौर पर संस्थान के गेट पर ताला लगाकर उसे बंद करने का प्रयास किया, जिससे शैक्षणिक गतिविधियों में बाधा पड़ी और एक तरह से संस्था के संचालन को ठप्प करने की कोशिश की गई। ये घटनाएँ न केवल आपराधिक हैं, बल्कि शिक्षण संस्थानों के लिए एक सुरक्षित और भयमुक्त वातावरण प्रदान करने की मूलभूत आवश्यकता पर भी सवाल खड़ा करती हैं।

पुलिस कार्रवाई और गंभीर धाराएँ

इन लगातार हो रही घटनाओं से परेशान होकर, श्री गजानंद एजुकेशन संस्था ने अंततः स्थानीय पुलिस थाने का रुख किया और एक विस्तृत शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए, शिकायत के आधार पर 19 सितंबर, 2025 को एफ.आई.आर. दर्ज कर ली है। यह एफ.आई.आर. भारतीय दंड संहिता की कई गंभीर धाराओं के तहत पंजीकृत की गई है, जिनमें शामिल हैं:

  • धारा 333: लोक सेवक को उसके कर्तव्य से विरत करने के लिए स्वेच्छापूर्वक गंभीर चोट पहुँचाना। (यदि इसमें किसी लोक सेवक पर हमला हुआ हो)

  • धारा 324(4): खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छापूर्वक गंभीर चोट पहुँचाना। (संभवतः इसमें '4' उपखंड गलत मुद्रित है, आमतौर पर यह 324 या 324/34 का संदर्भ होता है, जिसका अर्थ है खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना)

  • धारा 296: धार्मिक जमाव में विघ्न डालना। (यह धारा इस संदर्भ में थोड़ी असामान्य लग रही है, हो सकता है कि इसका संबंध किसी अन्य घटना से हो या यह मुद्रण त्रुटि हो; अक्सर 294 या 504/506 जैसी धाराएं लगती हैं)

  • धारा 351(2): हमला करने का प्रयास। (यहां भी '2' उपखंड असामान्य है, आमतौर पर यह धारा 351 के तहत ही दर्ज होता है)

  • धारा 115(2): ऐसे अपराध को करने का दुष्प्रेरण, जिसकी अधिकतम सज़ा मृत्यु या आजीवन कारावास है, और वह अपराध नहीं किया गया है। (यह धारा काफी गंभीर है और किसी बड़े आपराधिक षड्यंत्र की ओर इशारा करती है)

  • धारा 3(5): यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 से संबंधित हो सकती है, जो यदि आरोपी या पीड़ित इन श्रेणियों में आते हैं तो लागू होती है। (यदि ऐसा नहीं है तो यह भी मुद्रण त्रुटि हो सकती है।)

इन धाराओं के तहत एफ.आई.आर. का दर्ज होना स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पुलिस इन घटनाओं को गंभीर आपराधिक कृत्य मान रही है। विशेष रूप से धारा 115(2) और 333 का उल्लेख, यदि सही है, तो यह दर्शाता है कि यह मामला सामान्य तोड़फोड़ या मारपीट से कहीं अधिक गंभीर हो सकता है और इसमें एक गहरी आपराधिक मंशा शामिल हो सकती है।

'सुशासन' पर सवाल और प्रशासनिक चुप्पी

श्री गजानंद एजुकेशन संस्था ने इन घटनाओं के बाद सीधे तौर पर छत्तीसगढ़ सरकार और प्रशासन के 'सुशासन' के दावों पर सवाल उठाया है। संस्था ने अपनी शिकायत में पूछा है कि "क्या यही है छत्तीसगढ़ का 'सुशासन'?" और "क्या शिक्षा संस्थाओं को इस तरह गुंडागर्दी और दबाव में चलाना पड़ेगा?" ये प्रश्न न केवल संबंधित संस्था के प्रबंधन की हताशा को दर्शाते हैं, बल्कि राज्य के नागरिकों, विशेषकर शिक्षा और सामाजिक सेवा से जुड़े संगठनों के मन में भी उठ रही चिंताओं को आवाज देते हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार हमेशा से बेहतर कानून-व्यवस्था और 'सुशासन' का दावा करती रही है। ऐसे में एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान पर छात्र संगठन के कथित सदस्यों द्वारा इस तरह की लगातार आपराधिक गतिविधियों और अवैध वसूली के आरोप, इन दावों की पोल खोलते प्रतीत होते हैं। प्रशासन की ओर से अब तक इस मामले पर कोई विस्तृत आधिकारिक बयान नहीं आया है, जिससे आम जनता और शिक्षा जगत में एक तरह की निराशा और भय का माहौल है।

संस्था की माँगें और आगे की उम्मीदें

श्री गजानंद एजुकेशन संस्था ने प्रशासन से तीन प्रमुख मांगें की हैं:

  1. त्वरित और निष्पक्ष जांच: दर्ज एफ.आई.आर. पर किसी भी राजनीतिक दबाव के बिना, त्वरित और पूरी तरह से निष्पक्ष जांच हो, ताकि सच्चाई सामने आ सके।

  2. कठोर दंडात्मक कार्रवाई: दोषियों पर, चाहे वे कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों, कानून के अनुसार कठोर से कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाए, ताकि ऐसे कृत्यों की पुनरावृत्ति न हो।

  3. शिक्षा संस्थानों की सुरक्षा: भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए शिक्षा संस्थानों और अन्य समाजसेवी संगठनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, ताकि वे बिना किसी भय के अपना कार्य कर सकें।

यह घटना छत्तीसगढ़ में छात्र राजनीति और आपराधिक गतिविधियों के बीच के संभावित संबंधों पर भी प्रकाश डालती है, जो राज्य के शैक्षणिक और सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। यह मामला प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है कि वह कैसे कानून का राज स्थापित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षण जैसे पवित्र क्षेत्रों में ऐसी गुंडागर्दी को कतई बर्दाश्त न किया जाए। अब देखना यह है कि प्रशासन और शासन इन गंभीर आरोपों पर क्या रुख अपनाते हैं और कब तक श्री गजानंद एजुकेशन संस्था को न्याय मिल पाता है। यह मामला आगामी दिनों में रायपुर की राजनीति और कानून-व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण साबित हो सकता है।

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Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

Dr. Tarachand Chandrakar is a respected journalist with decades of experience in reporting and analysis. His deep knowledge of politics, society, and regional issues brings credibility and authority to Nidar Chhattisgarh. Known for his unbiased reporting and people-focused journalism, he ensures that readers receive accurate and trustworthy news.

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