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छत्तीसगढ़ के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक, तीजा पर्व का उल्लास चारों ओर छा गया है। पति की दीर्घायु और खुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना के लिए सुहागिन महिलाओं ने अपने सबसे कठिन निर्जला व्रत की शुरुआत कर दी है। सोमवार की रात महिलाओं ने 'करूभात' की पारंपरिक रस्म निभाकर इस व्रत का संकल्प लिया।
क्या है 'करूभात' की परंपरा?
तीजा व्रत शुरू करने से एक रात पहले करेले की सब्जी और भात (चावल) खाने की परंपरा को 'करूभात' कहा जाता है। मान्यता है कि इस कड़वे भोजन के साथ महिलाएं व्रत की शुरुआत करती हैं, जो उनके त्याग और समर्पण का प्रतीक है। इस मौके पर मायके आईं महिलाओं को आस-पड़ोस और रिश्तेदारों के घर से भी 'करूभात' खाने का न्योता मिलता है। कई गांवों में तो सामूहिक रूप से इस रस्म को निभाया गया, जिससे आपसी प्रेम और सौहार्द का माहौल देखने को मिला।
मायके की ओर बढ़े कदम, सखियों से हुआ मिलन
तीजा मनाने के लिए बेटियों का अपने मायके आना एक बेहद खूबसूरत परंपरा है। सोमवार को भी दिन भर बसों और ट्रेनों में तीजहारिनों (तीजा मनाने वाली महिलाएं) की भीड़ लगी रही। मायके पहुंचने की खुशी के आगे सफर की थोड़ी-बहुत परेशानी भी कम लगी। अपने माता-पिता के घर पहुंचकर महिलाओं ने अपनी पुरानी सहेलियों से मुलाकात की और बचपन की यादें ताजा कीं।
मेहंदी, श्रृंगार और शिव-पार्वती की आराधना
व्रत की तैयारी में महिलाएं पूरी तरह जुट गई हैं। रात भर हाथों में मेहंदी रचाई गई और सोलह श्रृंगार की तैयारियां की गईं। ब्यूटी पार्लरों में भी खासी भीड़ नजर आई। मंगलवार सुबह स्नान और पूजा-पाठ के बाद महिलाएं निर्जला व्रत शुरू करेंगी, जिसमें वे दिन भर पानी की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करेंगी। दिन भर भजन-कीर्तन और तैयारियों के बाद रात में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करेंगी। बुधवार को सुबह पूजा के बाद ही वे अपना व्रत तोड़ेंगी।
त्योहार की रौनक से गुलजार हुए बाजार
तीजा पर्व के आगमन से बाजारों की रौनक लौट आई है। शहर के मुख्य बाजारों में महिलाओं की भारी भीड़ खरीदारी कर रही है। साड़ी की दुकानों से लेकर चूड़ी, बिंदी, और सौंदर्य प्रसाधनों की दुकानों तक, हर जगह उत्सव का माहौल है। व्यापारियों को भी इस त्योहारी सीजन में अच्छे कारोबार की उम्मीद है, जिससे अर्थव्यवस्था को भी गति मिल रही है।
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