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न्याय के दो अहम पहलू - तिल्दा नेवरा में सुलह का रिकॉर्ड, धमतरी के जघन्य कांड में सज़ा बरकरार
तिल्दा नेवरा/बिलासपुर : न्याय की तराजू पर दो अलग-अलग तस्वीरें रविवार 13 दिसंबर को छत्तीसगढ़ में सामने आईं। जहां एक ओर तिल्दा नेवरा के व्यवहार न्यायालय में आयोजित नेशनल लोक अदालत ने सुलह और समझौते की एक नई मिसाल पेश की, वहीं दूसरी ओर बिलासपुर उच्च न्यायालय ने धमतरी के बहुचर्चित और रोंगटे खड़े कर देने वाले ट्रिपल मर्डर-दुष्कर्म मामले में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए आरोपी को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। ये दोनों घटनाएँ भारतीय न्यायिक प्रणाली की कार्यप्रणाली और समाज में उसके प्रभाव को रेखांकित करती हैं – एक ओर त्वरित और सौहार्दपूर्ण समाधान की दिशा में प्रयास, तो दूसरी ओर जघन्य अपराधों के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस का संदेश।
तिल्दा नेवरा: जब न्याय हुआ सबके लिए सुलभ और त्वरित
रविवार, 13 दिसंबर को तिल्दा नेवरा का व्यवहार न्यायालय आम दिनों की भीड़भाड़ से अलग, एक विशेष उद्देश्य के लिए जीवंत हो उठा। नेशनल लोक अदालत के आयोजन ने यहाँ न्याय की प्रतीक्षा कर रहे सैकड़ों लोगों को एक मंच प्रदान किया, जहाँ वे अपने विवादों का निपटारा आपसी सहमति से कर सके। व्यवहार न्यायालय के न्यायाधीश भावेश कुमार वट्टी की अध्यक्षता में आयोजित इस लोक अदालत का मुख्य लक्ष्य छोटे-मोटे विवादों से लेकर गंभीर मामलों तक, हर तरह के प्रकरणों का त्वरित और सौहार्दपूर्ण समाधान निकालना था।
क्या-क्या हुआ निपटारा?
इस लोक अदालत में सिविल प्रकरण, मोटरयान दुर्घटना से संबंधित मामले, बैंक ऋण वसूली के प्रकरण, विद्युत विभाग से जुड़े विवाद और अन्य विविध प्रकार के मामले शामिल थे। इन सभी मामलों में, पक्षकारों को एक-दूसरे के साथ बैठकर, मध्यस्थों और न्यायिक अधिकारियों की मदद से एक स्वीकार्य समाधान तक पहुँचने का अवसर मिला। यह प्रक्रिया न केवल समय बचाती है, बल्कि महंगे और लंबी अदालती प्रक्रियाओं से भी मुक्ति दिलाती है।
आंकड़े बोलते हैं सफलता की कहानी:
तिल्दा नेवरा नेशनल लोक अदालत की सफलता के आंकड़े बेहद प्रभावशाली हैं। कुल 258 प्रकरणों का आपसी सहमति से निराकरण किया गया। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह रही कि पीड़ितों और दावेदारों को कुल ₹35,69,248 (पैंतीस लाख उनहत्तर हजार दो सौ अड़तालीस रुपये) का रिवॉर्ड (मुआवजा/पारित राशि) प्रदान किया गया। यह राशि उन लोगों के लिए एक बड़ी राहत है जो लंबे समय से न्याय और मुआवजे का इंतजार कर रहे थे। लोक अदालत में बड़ी संख्या में नागरिकों की उपस्थिति ने भी इसकी सफलता में चार चांद लगा दिए, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जनता में इस तरह के आयोजनों के प्रति विश्वास और स्वीकार्यता बढ़ी है।
क्यों महत्वपूर्ण हैं लोक अदालतें?
लोक अदालतें भारतीय न्यायपालिका की एक महत्वपूर्ण पहल हैं जो वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र का हिस्सा हैं। इनका उद्देश्य अदालतों पर बढ़ते मुकदमों के बोझ को कम करना, गरीबों और वंचितों तक न्याय पहुंचाना और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना है। ये अदालतें आपसी बातचीत और समझौते पर जोर देती हैं, जिससे शत्रुता कम होती है और सामाजिक सौहार्द बढ़ता है। तिल्दा नेवरा में मिली सफलता इसी दर्शन का प्रमाण है।
धमतरी ट्रिपल मर्डर-दुष्कर्म: न्याय की लंबी लड़ाई का अंत, आरोपी को उम्रकैद
जहां तिल्दा नेवरा में सुलह का सूरज चमक रहा था, वहीं बिलासपुर उच्च न्यायालय में एक जघन्य अपराध पर न्याय की अंतिम मुहर लग रही थी। धमतरी जिले के बहुचर्चित ट्रिपल मर्डर और दुष्कर्म मामले में आरोपी जितेंद्र ध्रुव की अपील को बिलासपुर हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने निचली अदालत द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सज़ा को बरकरार रखने का आदेश दिया। यह फैसला उन पीड़ितों के लिए न्याय की अंतिम जीत है जिन्होंने अकल्पनीय क्रूरता का सामना किया।
जुलाई 2017 की भयावह रात:
यह दिल दहला देने वाली घटना जुलाई 2017 में धमतरी जिले के तरसींवा गांव में घटी थी। उस काली रात में, आरोपी जितेंद्र ध्रुव ने एक ही परिवार के तीन सदस्यों की बर्बरता से हत्या कर दी थी। घटना की क्रूरता सुनकर आज भी रूह कांप उठती है। आरोपी ने घर में घुसकर पहले एक महिला के साथ दुष्कर्म किया और फिर उसकी हत्या कर दी। महिला के पति और उनके छोटे बेटे को भी मौत के घाट उतार दिया गया। परिवार का बड़ा बेटा, जो उस समय गंभीर रूप से घायल हो गया था, भाग्यशाली रहा कि वह बच गया। उसकी गवाही इस पूरे मामले में निर्णायक साबित हुई, क्योंकि उसने बाद में आरोपी की पहचान की थी।
वारदात का खौफनाक ब्यौरा:
रात के अंधेरे में आरोपी ने घर में सेंध लगाई। उसने सबसे पहले पति पर हमला किया और उसकी हत्या कर दी। जब बाकी परिवार जागा, तो आरोपी ने उन पर भी हथौड़े जैसे भारी हथियार से हमला किया। महिला को गंभीर रूप से घायल करने के बाद आरोपी ने उसके साथ दुष्कर्म किया और फिर लूट के इरादे से इस पूरी वारदात को अंजाम दिया। इस भयानक घटना में तीन बेकसूर जानें चली गईं, जबकि एक बच्चा ज़िंदगी और मौत से जूझते हुए बच गया।
साक्ष्य और गवाहों की भूमिका:
इस मामले में पुलिस और अभियोजन पक्ष ने अथक प्रयास किए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट, डीएनए और एफएसएल (फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी) की विस्तृत जांच रिपोर्ट, घटनास्थल से बरामद हथियार और महत्वपूर्ण गवाहों की गवाही, ये सभी साक्ष्य आरोपी के खिलाफ निर्णायक साबित हुए। विशेष रूप से, घायल प्रत्यक्षदर्शी बेटे की गवाही पर अदालत ने पूर्ण विश्वास जताया। उसकी आँखों देखी गवाही ने आरोपी को कटघरे में खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बिलासपुर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि घटनास्थल से मिले वैज्ञानिक सबूत और गवाहों के बयान आरोपी की संलिप्तता को पूरी तरह से साबित करते हैं। इन ठोस प्रमाणों के आधार पर हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा आरोपी को दी गई उम्रकैद की सज़ा को बरकरार रखा।
न्याय की जीत और समाज को संदेश:
यह फैसला सिर्फ एक व्यक्ति को सज़ा देने का नहीं है, बल्कि समाज में यह संदेश देने का भी है कि जघन्य अपराधों के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। यह पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए न्याय की एक लंबी और दर्दनाक लड़ाई का अंत है। यह भारतीय न्यायिक प्रणाली की क्षमता को भी दर्शाता है कि वह जटिल और संवेदनशील मामलों में भी सच्चाई तक पहुंचने और न्याय प्रदान करने में सक्षम है।
आज छत्तीसगढ़ में न्याय के दो अलग-अलग रंगों को देखा गया। तिल्दा नेवरा की लोक अदालत ने दर्शाया कि कैसे न्याय को सुलभ और मैत्रीपूर्ण बनाया जा सकता है, जिससे आम नागरिक आसानी से राहत पा सकें। वहीं, धमतरी ट्रिपल मर्डर केस में उच्च न्यायालय का फैसला यह बताता है कि कानून की पकड़ कितनी मजबूत है और कैसे सबसे क्रूर अपराधियों को भी उनके अंजाम तक पहुंचाया जाता है। ये दोनों घटनाएँ भारतीय न्याय व्यवस्था के बहुआयामी चरित्र और समाज में उसके महत्वपूर्ण योगदान को उजागर करती हैं। एक ऐसा तंत्र जहाँ सुलह भी है और सज़ा भी, जहाँ पीड़ित को मुआवजा भी मिलता है और अपराधी को दंड भी।
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