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तमिलनाडु सरकार ने कैदियों के समाज में सफल पुनर्वास और पुनरपराध को रोकने के उद्देश्य से एक अभूतपूर्व पायलट योजना की घोषणा की है। 1 सितंबर, 2025 से शुरू होने वाली यह योजना, तीन साल या उससे अधिक की सजा काट चुके कैदियों को पूर्व-रिलीज और पोस्ट-रिलीज रिवाइजेशन काउंसलिंग प्रदान करेगी। भारत में अपनी तरह की यह पहली पहल मानी जा रही है।

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तमिलनाडु की नई पहल: कैदियों के पुनर्वास के लिए पूर्व-रिलीज और पोस्ट-रिलीज काउंसलिंग योजना शुरू
तमिलनाडु की नई पहल: कैदियों के पुनर्वास के लिए पूर्व-रिलीज और पोस्ट-रिलीज काउंसलिंग योजना शुरू

तमिलनाडु की नई पहल, कैदियों के पुनर्वास के लिए पूर्व-रिलीज और पोस्ट-रिलीज काउंसलिंग योजना शुरू, तमिलनाडु सरकार ने कैदियों के समाज में सफल पुनर्वास और पुनरपराध को रोकने के उद्देश्य से एक अभूतपूर्व पायलट योजना की घोषणा की है। 1 सितंबर, 2025 से शुरू होने वाली यह योजना, तीन साल या उससे अधिक की सजा काट चुके कैदियों को पूर्व-रिलीज और पोस्ट-रिलीज रिवाइजेशन काउंसलिंग प्रदान करेगी। भारत में अपनी तरह की यह पहली पहल मानी जा रही है।

TNDPS के माध्यम से लागू होगी योजना, SMHA का सहयोग

यह महत्वपूर्ण योजना तमिलनाडु डिस्चार्ज्ड प्रिजनर्स एड सोसाइटी (TNDPS) के माध्यम से लागू की जाएगी। इसमें राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (SMHA) द्वारा मान्यता प्राप्त योग्य नैदानिक मनोवैज्ञानिकों (Clinical Psychologists) का सहयोग लिया जाएगा। जेलों और सुधारात्मक सेवाओं के महानिदेशक, महेश्वर दयाल ने बताया कि पायलट योजना की लगातार निगरानी की जाएगी ताकि इसके प्रभाव का आकलन किया जा सके और आवश्यकतानुसार संशोधन किए जा सकें।

पहले चरण में 350 कैदियों को मिलेगा लाभ

योजना के पहले चरण में, 1 सितंबर से शुरू होकर अगले चार महीनों में लगभग 350 कैदियों को शामिल किया जाएगा, जो जल्द ही रिहा होने वाले हैं। प्रत्येक कैदी को कुल तीन काउंसलिंग सत्र प्रदान किए जाएंगे: एक सत्र रिहाई से पहले और दो सत्र रिहाई के बाद। इन सत्रों का मुख्य उद्देश्य कैदियों को जेल से बाहर की दुनिया की चुनौतियों जैसे सामाजिक कलंक, परिवार से समर्थन की कमी और रोजगार संबंधी समस्याओं का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना है।

800 से अधिक मनोवैज्ञानिक और 10 लाख का प्रारंभिक बजट

अधिकारियों के अनुसार, 800 से अधिक SMHA-मान्यता प्राप्त मनोवैज्ञानिक इस कार्यक्रम में भाग ले सकते हैं। प्रत्येक काउंसलिंग सत्र की लागत 1,000 रुपये निर्धारित की गई है, जिससे प्रति कैदी कुल परामर्श लागत 3,000 रुपये होगी। जेल मनोवैज्ञानिक उन कैदियों की भी पहचान करेंगे जिन्हें शुरुआती सत्रों के अलावा दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक सहायता की आवश्यकता हो सकती है। राज्य सरकार ने इस पायलट योजना के लिए 10 लाख रुपये का प्रारंभिक बजट आवंटित किया है। अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि जेल के भीतर दी जाने वाली काउंसलिंग मुख्य रूप से जेल-संबंधी मुद्दों पर केंद्रित होती है, जबकि यह नई सेवा रिहाई के बाद कैदियों को आने वाली सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक चुनौतियों से निपटने में मदद करेगी।

विशेषज्ञों ने की सराहना, खासकर महिला कैदियों के लिए फायदेमंद

इस नई पहल का विशेषज्ञों ने व्यापक रूप से स्वागत किया है। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई के सेंटर फॉर क्रिमिनोलॉजी एंड जस्टिस के प्रोफेसर विजय राघवन ने इसे एक 'अग्रणी कदम' बताया। उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि यह योजना महिला कैदियों के लिए अत्यंत फायदेमंद साबित होगी, जिन्हें रिहाई के बाद अक्सर अधिक सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है। यह पहल भारत में कैदियों के पुनर्वास की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव ला सकती है।

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