टुंडरा सरकारी स्कूल में फर्नीचर बिक्री विवाद: अभिभावकों का हंगामा, प्रिंसिपल पर आरोप

छत्तीसगढ़ के टुंडरा में सरकारी स्कूल के फर्नीचर को कबाड़ बताकर निजी स्कूलों को बेचने का मामला सामने आया है। अभिभावकों ने जमकर हंगामा किया और शाला विकास समिति पर गंभीर आरोप लगाए। जानें इस पूरे विवाद की तह तक।

Published on

 टुंडरा सरकारी स्कूल में 'कबाड़' बने लाखों के फर्नीचर, शाला विकास समिति पर उठे सवाल, अभिभावकों का आक्रोश चरम पर

कसडोल : टुंडरा सरकारी स्कूल में फर्नीचर बिक्री विवाद: अभिभावकों का हंगामा, प्रिंसिपल पर आरोप, शिक्षा के मंदिर में आज भ्रष्टाचार की स्याही से एक और दाग लगा है। छत्तीसगढ़ के कसडोल ब्लॉक स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय टुंडरा एक बड़े विवाद के केंद्र में आ गया है, जहां बच्चों के लिए खरीदी गई लाखों की कुर्सियों और मेजों को गुपचुप तरीके से 'कबाड़' बताकर निजी स्कूलों को बेच दिया गया। इस चौंकाने वाले खुलासे के बाद नाराज अभिभावकों ने स्कूल परिसर में जमकर हंगामा किया, जिसने शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा दिया है। यह सिर्फ फर्नीचर की बिक्री का मामला नहीं, बल्कि सरकारी संपत्ति के दुरुपयोग और पारदर्शिता की कमी का एक जीता-जागता उदाहरण है, जिस पर गहन जांच की आवश्यकता है।

मामले की जड़: एक गोपनीय बैठक और चौंकाने वाला प्रस्ताव

सूत्रों के अनुसार, यह पूरा प्रकरण लगभग आठ दिन पहले शाला विकास समिति (एसएमसी) की एक बैठक से शुरू हुआ। इस बैठक में स्कूल के प्रिंसिपल, शाला विकास समिति के अध्यक्ष और कुछ अन्य सदस्य मौजूद थे। चौंकाने वाली बात यह है कि इस बैठक में बच्चों के बैठने के लिए मौजूद फर्नीचर को बेचने का एक प्रस्ताव गुपचुप तरीके से तैयार किया गया। आमतौर पर, स्कूल की संपत्ति से जुड़े ऐसे बड़े फैसलों में व्यापक पारदर्शिता और अभिभावकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है, लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

Google Advertisement

'कबाड़' बताकर निजी स्कूलों को बेचा गया फर्नीचर

बैठक में कथित तौर पर यह तय किया गया कि इन कुर्सियों और मेजों को 'कबाड़' घोषित कर दिया जाएगा। इसके बाद इन्हें आसपास के निजी स्कूलों को 400 रुपये प्रति नग की दर से बेच दिया जाएगा। यह योजना इतनी गुप्त तरीके से बनाई गई कि स्थानीय लोगों और यहां तक कि कई अभिभावकों को भी इसकी भनक तक नहीं लगी। इस योजना को अंजाम देते हुए, नगर पंचायत टुंडरा के ज्ञान अमृत विद्यालय, शिवरीनारायण के धाविका पब्लिक स्कूल और ग्राम मोहतरा के एक निजी स्कूल को यह फर्नीचर बेच दिया गया।

सवाल यह उठता है कि क्या ये फर्नीचर वाकई कबाड़ थे? क्या उन्हें मरम्मत करके इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था? या फिर यह जानबूझकर किया गया एक ऐसा कृत्य था, जिसका मकसद सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग कर निजी लाभ कमाना था? अभिभावकों का आरोप है कि फर्नीचर की हालत इतनी खराब नहीं थी कि उसे कबाड़ में बेचा जाए। यह सीधा-सीधा बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, जिन्हें मूलभूत सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है।

अभिभावकों की पड़ताल और चौकाने वाला खुलासा

Google Advertisement

फर्नीचर बिक्री की खबर जब धीरे-धीरे फैलनी शुरू हुई, तो अभिभावकों में बेचैनी बढ़ने लगी। कुछ जागरूक अभिभावकों ने निजी स्कूलों में जाकर पड़ताल की। उनकी खोज ने एक चौंकाने वाला सच सामने ला दिया। उन्होंने पाया कि उनके ही सरकारी स्कूल से बेचे गए फर्नीचर उन निजी स्कूलों में इस्तेमाल किए जा रहे थे। यह जानकारी मिलते ही अभिभावकों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।

जब शासकीय फर्नीचर की बिक्री का यह बड़ा खुलासा हुआ, तो हर तरफ हड़कंप मच गया। मामले की गंभीरता को देखते हुए, जिन निजी स्कूलों ने यह फर्नीचर खरीदा था, उन्होंने भी आनन-फानन में लगभग 150 नग टेबल-कुर्सियों को तीन वाहनों में भरकर वापस शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय टुंडरा भेज दिया। यह कदम शायद विवाद को शांत करने और अपनी छवि बचाने के लिए उठाया गया था, लेकिन इसने आग में घी का काम किया।

स्कूल गेट पर हंगामा, प्रिंसिपल का खंडन

जैसे ही फर्नीचर से लदे वाहन वापस स्कूल पहुंचे, अभिभावकों का गुस्सा फूट पड़ा। बड़ी संख्या में आक्रोशित परिजन स्कूल गेट के सामने ही सभी वाहनों को रोककर धरने पर बैठ गए। उन्होंने स्कूल परिसर में घुसकर जमकर हंगामा किया और शाला विकास समिति तथा प्रिंसिपल के खिलाफ नारेबाजी की। उनका आरोप था कि यह एक सुनियोजित घोटाला है, जिसमें बच्चों के हक पर डाका डाला गया है।

Google Advertisement

हालांकि, शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय टुंडरा के प्रिंसिपल इस पूरे आरोप को सिरे से नकार रहे हैं। उनका दावा है कि स्कूल का "डिस्मेंटल" होना है, जिसकी वजह से कबाड़ सामानों को बिक्री कर शाला विकास समिति के खाते में बिक्री से मिली रकम को जमा करना था। प्रिंसिपल का यह तर्क सवालों के घेरे में है। क्या स्कूल डिस्मेंटल होने से पहले बच्चों के बैठने के लिए आए फर्नीचर को बिना किसी उचित प्रक्रिया के 'कबाड़' घोषित कर बेचा जा सकता है? क्या यह प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी थी? इन सवालों के जवाब शिक्षा विभाग को देने होंगे।

शिक्षा विभाग की चुप्पी और भविष्य की चिंताएं

यह घटना छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूलों के प्रबंधन और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाती है। एक ऐसे समय में जब सरकार शिक्षा के स्तर को सुधारने और सरकारी स्कूलों को मजबूत करने के दावे कर रही है, ऐसी घटनाएं इन दावों पर पानी फेर देती हैं। बच्चों के लिए आए फर्नीचर को कबाड़ बताकर बेचना न केवल वित्तीय अनियमितता है, बल्कि उन बच्चों के साथ भी अन्याय है, जो बेहतर सुविधाओं के हकदार हैं।

स्थानीय विधायक और जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) से इस मामले पर तुरंत संज्ञान लेने की उम्मीद की जा रही है। क्या इस पूरे प्रकरण की उच्च-स्तरीय जांच की जाएगी? क्या शाला विकास समिति के सदस्यों और प्रिंसिपल की भूमिका की विस्तृत जांच होगी? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे?

पारदर्शिता और जवाबदेही की दरकार

टुंडरा की यह घटना एक वेक-अप कॉल है। यह उजागर करती है कि कैसे सरकारी संस्थानों में नियमों को ताक पर रखकर मनमाने फैसले लिए जाते हैं, जिससे अंततः आम जनता और विशेष रूप से बच्चों को नुकसान होता है। शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही आज की सबसे बड़ी जरूरत है। जब तक ऐसी घटनाओं पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी और दोषियों को मिसाल बनने वाली सजा नहीं मिलेगी, तब तक ऐसे भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहेंगे, और सरकारी स्कूल अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसते रहेंगे। अभिभावकों का आक्रोश जायज है, और अब यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वे उनकी चिंताओं को सुनें और न्याय सुनिश्चित करें। यह सिर्फ फर्नीचर का नहीं, बल्कि बच्चों के भविष्य और सरकारी शिक्षा प्रणाली के विश्वास का मामला है।

Want to engage with this content?

Like, comment, or share this article on our main website for the full experience!

Go to Main Website for Full Features

Dr. Tarachand Chandrakar

Senior Journalist & Editor, Nidar Chhattisgarh

Dr. Tarachand Chandrakar is a respected journalist with decades of experience in reporting and analysis. His deep knowledge of politics, society, and regional issues brings credibility and authority to Nidar Chhattisgarh. Known for his unbiased reporting and people-focused journalism, he ensures that readers receive accurate and trustworthy news.

More by this author →
👉 Read Full Article on Website