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काशी की भूमि से हिंद महासागर में गूंजती नई साझेदारी की धुन: भारत-मॉरीशस द्विपक्षीय शिखर वार्ता
वाराणसी, उत्तर प्रदेश: वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता, पवित्र गंगा के तट पर स्थित, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के केंद्र वाराणसी ने आज एक अभूतपूर्व कूटनीतिक आयोजन की मेजबानी की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मॉरीशस गणराज्य के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम के बीच एक उच्च-स्तरीय द्विपक्षीय शिखर वार्ता ने सदियों पुराने भारत-मॉरीशस संबंधों में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। यह मुलाकात महज एक औपचारिक बैठक नहीं, बल्कि दोनों देशों के साझा इतिहास, गहरे सांस्कृतिक जुड़ाव और भविष्य की महत्वाकांक्षी साझेदारी का प्रतीक है, जो हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगी।
काशी में कूटनीति का नया अध्याय
यह पहली बार है कि मॉरीशस का कोई प्रधानमंत्री अपनी भारत यात्रा के दौरान वाराणसी में भारतीय प्रधानमंत्री से मुलाकात कर रहा है। इस ऐतिहासिक आयोजन ने वाराणसी को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है। प्राचीन घाटों और मंदिरों के शहर में इस बैठक का आयोजन अपने आप में एक संदेश है – यह दर्शाता है कि भारत अपने संबंधों को केवल राजधानी शहरों तक सीमित नहीं रखता, बल्कि उन्हें देश के हर कोने में फैले सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ताने-बाने से जोड़ता है।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
सुबह से ही वाराणसी में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद थी और शहर को विशेष रूप से सजाया गया था। स्थानीय लोगों में भी इस ऐतिहासिक बैठक को लेकर उत्साह देखा गया। उम्मीद की जा रही थी कि यह मुलाकात न केवल दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करेगी, बल्कि वाराणसी के पर्यटन और वैश्विक पहचान को भी बढ़ावा देगी।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
विकास साझेदारी: एक साझा भविष्य की नींव
दोनों प्रधानमंत्रियों की चर्चा का मुख्य केंद्र बिंदु विकास साझेदारी और क्षमता निर्माण को गति देना रहा। इस बैठक में सहयोग के सभी पहलुओं की गहन समीक्षा की गई, जिसमें स्वास्थ्य सेवाएं, शैक्षिक संस्थान, नई प्रौद्योगिकियां, वैज्ञानिक अनुसंधान, ऊर्जा सुरक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं और बुनियादी ढांचे का विकास शामिल हैं।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
सूत्रों के अनुसार, भारत अपने सफल डिजिटल प्लेटफॉर्म, जैसे UPI और आधार, को मॉरीशस में लागू करने पर विचार कर रहा है, जिससे वहां डिजिटल परिवर्तन की प्रक्रिया को तेज किया जा सके। यह कदम न केवल मॉरीशस के नागरिकों के जीवन को आसान बनाएगा, बल्कि दोनों देशों के बीच डिजिटल कनेक्टिविटी को भी मजबूत करेगा। स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग का विस्तार मॉरीशस में मानव संसाधन विकास को बढ़ावा देगा, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में साझेदारी दोनों देशों को सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगी। भारत ने हमेशा छोटे विकासशील देशों के साथ अपने अनुभव और विशेषज्ञता साझा करने में अग्रणी भूमिका निभाई है, और मॉरीशस के साथ यह साझेदारी इसी भावना का विस्तार है।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
'सागर' विजन और हिंद महासागर की भू-राजनीति
इस द्विपक्षीय वार्ता का एक अत्यंत महत्वपूर्ण आयाम हिंद महासागर क्षेत्र में सहयोग को गहरा करना है। भारत मॉरीशस को हिंद महासागर क्षेत्र में एक अमूल्य साझेदार और घनिष्ठ समुद्री पड़ोसी के रूप में देखता है। यह देश भारत की 'पड़ोसी पहले' नीति और 'क्षेत्र भर में सुरक्षा और विकास के लिए आपसी और समग्र उन्नति' (Security and Growth for All in the Region - SAGAR) विजन के लिए केंद्रीय महत्व रखता है।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
हिंद महासागर वैश्विक व्यापार मार्गों के लिए एक महत्वपूर्ण धुरी है और हाल के वर्षों में इसकी सामरिक महत्ता बढ़ी है। चीन की बढ़ती मौजूदगी और विभिन्न वैश्विक शक्तियों के हितों के टकराव के बीच, इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखना भारत और मॉरीशस दोनों के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है। मॉरीशस अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण इस 'सागर' विजन को साकार करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मुलाकात हिंद महासागर में समुद्री सुरक्षा, सूचना साझाकरण और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में सहयोग को और मजबूत करेगी। दोनों देश समुद्री डकैती, अवैध मछली पकड़ने और मादक पदार्थों की तस्करी जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए मिलकर काम करने पर सहमत हुए हैं।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सेतु
भारत और मॉरीशस के संबंध केवल कूटनीतिक या आर्थिक नहीं हैं, बल्कि वे सदियों पुराने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धागों से बुने हुए हैं। 19वीं सदी में गिरमिटिया श्रमिकों के रूप में हजारों भारतीय मॉरीशस पहुंचे, और उन्होंने वहां भारतीय संस्कृति, भाषा और परंपराओं को जीवंत रखा। आज मॉरीशस की आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारतीय मूल का है, जो दोनों देशों को एक अद्वितीय सांस्कृतिक सेतु से जोड़ता है।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री रामगुलाम की मुलाकात इसी सांस्कृतिक जुड़ाव का सम्मान है। वाराणसी, जो भगवान शिव की नगरी और हिंदू धर्म के सबसे पवित्र शहरों में से एक है, इस बैठक के लिए एक आदर्श पृष्ठभूमि प्रदान करती है। यह आयोजन दोनों देशों के लोगों के बीच भावनात्मक संबंधों को मजबूत करेगा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
वैश्विक मंच पर साझा आवाज़
भारत और मॉरीशस दोनों विकासशील देशों की आवाज़ को बुलंद करने और एक न्यायपूर्ण तथा समावेशी विश्व व्यवस्था बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय संगठनों में, दोनों देश अक्सर समान मुद्दों पर एक साथ खड़े होते हैं। यह शिखर वार्ता वैश्विक चुनौतियों जैसे जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और गरीबी उन्मूलन के लिए साझा रणनीतियों पर चर्चा करने का अवसर भी प्रदान करती है। मॉरीशस जैसे छोटे द्वीप राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं, और भारत जलवायु अनुकूलन और शमन प्रयासों में उनकी सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध है।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
आगे की राह: एक उज्ज्वल भविष्य की ओर
वाराणसी में संपन्न हुई यह ऐतिहासिक द्विपक्षीय शिखर वार्ता भारत-मॉरीशस संबंधों में एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है। विकास साझेदारी के विस्तार से लेकर हिंद महासागर में सामरिक सहयोग को गहरा करने तक, और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने से लेकर वैश्विक मंच पर एक साझा आवाज़ बनने तक, यह मुलाकात दोनों देशों के लिए एक उज्ज्वल और समृद्ध भविष्य की नींव रखेगी।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
जैसे ही दोनों नेता गंगा के पवित्र तटों से विदा लेंगे, उनके द्वारा स्थापित की गई साझेदारी की गूंज निश्चित रूप से हिंद महासागर के पार तक फैलेगी, जो क्षेत्रीय स्थिरता, प्रगति और सांस्कृतिक सद्भाव का एक शक्तिशाली संदेश देगी। यह सिर्फ दो प्रधानमंत्रियों की बैठक नहीं थी, बल्कि दो राष्ट्रों के दिल और आत्मा का मिलन था, जो एक साथ मिलकर एक बेहतर कल का निर्माण करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।वाराणसी में भारत-मॉरीशस शिखर वार्ता
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